सामान्य – काल
बारहवाँ सप्ताह
आज के संत: सिकन्दरिया के संत सिरिल धर्माध्यक्ष, धर्माचार्य
📒पहला पाठ : 2 राजाओं 24: 8-17
8 यहोयाकीन अट्ठारह वर्ष की उम्र में राजा बना और उसने येरूसालेम में तीन महीने तक शासन किया। उसकी माता का नाम नहुष्ता था और वह येरूसालेमवासी एल्नातान की पुत्री थी।
9 यहोयाकीन ने अपने पिता की तहर वही किया, जो प्रभु की दृष्टि में बुरा है।
10 उस समय बाबुल के राजा नबूकदनेज़र के सेनापतियों ने येरूसालेम पर आक्रमण किया और उसे चारो आरे से घेर लिया।
11 जब उसके सेनापति येरूसालेम का घेरा डाल चुके थे, तो बाबुल का राजा नबूकदनेज़र स्वयं पहुँचा
12 और यहोयाकीन ने अपनी माता, अपने दरबारियों, पदाधिकारियों और खो़जों के साथ बाबुल के राजा के सामने आत्मसमर्पण किया। बाबुल के राजा ने उसे बन्दी बनाया। यह नबूकदनेज़र के राज्यकाल का आठवाँ वर्ष था।
13 वह प्रभु के मन्दिर और राजमहल की सब बहुमूल्य वस्तुएँ उठा कर ले गया, जैसा कि प्रभु ने पहले से कहा था। उसने सोने की वह सब सामग्री तोड़ डाली, जिसे इस्राएल के राजा सुलेमान ने प्रभु के मन्दिर के लिए बनवाया था।
14 वह येरूसालेम के सब पदाधिकारियों और सैनिकों को-कुल मिला कर दस हज़ार लोगों को सब कारीगरों और लोहारों के साथ बन्दी बना कर ले गया। ‘देश में केवल दरिद्र जनता रह गयी।
15 वह यहोयाकीन को बाबुल ले गया। वह राजा की माता को, उसकी पत्नियों, ख़ोजो और देश के प्रतिष्ठित लोगों को भी येरूसालेम से बाबुल ले गया।
16 सात हज़ार सैनिक, एक हज़ार कारीगर और लोहार-जितने भी लोग युद्ध के योग्य थे- सब बाबुल के राजा द्वारा निर्वासित किये गये।
17 बाबुल के राजा ने यहोयाकीन के स्थान पर उसके चाचा मत्तन्या को राजा के रूप में नियुक्त किया और उसका नाम बदल कर सिदकीया रखा।
📙 सुसमाचार : संत मत्ती 7: 21-29
21 “जो लोग मुझे ‘प्रभु! प्रभु! कह कर पुकारते हैं, उन में सब-के-सब स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा।
22 उस दिन बहुत-से लोग मुझ से कहेंगे, ‘प्रभु! क्या हमने आपका नाम ले कर भविष्यवाणी नहीं की? आपका नाम ले कर अपदूतों को नहीं निकाला? आपका नाम ले कर बहुत-से चमत्कार नहीं दिखाये?’
23 तब मैं उन्हें साफ़-साफ़ बता दूँगा, ‘मैंने तुम लोगों को कभी नहीं जाना। कुकर्मियो! मुझ से दूर हटो।’
24 “जो मेरी ये बातें सुनता और उन पर चलता है, वह उस समझदार मनुष्य के सदृश है, जिसने चट्टान पर अपना घर बनवाया था।
25 पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। तब भी वह घर नहीं ढहा; क्योंकि उसकी नींव चट्टान पर डाली गयी थी।
26 “जो मेरी ये बातें सुनता है, किन्तु उन पर नहीं चलता, वह उस मूर्ख के सदृश है, जिसने बालू पर अपना घर बनवाया।
27 पानी बरसा, नदियों में बाढ़ आयी, आँधियाँ चलीं और उस घर से टकरायीं। वह घर ढह गया और उसका सर्वनाश हो गया।”
28 जब ईसा का यह उपदेश समाप्त हुआ, तो लोग उनकी शिक्षा पर आश्चर्यचकित थे;
29 क्योंकि वे उनको शास्त्रियों की तरह नहीं बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।