चालीसा – काल
पुण्य सप्ताह
आज के संत: मिस्र के संत योहन एकान्तवासी
📒 पहला पाठ: इसायाह 50 : 4 – 9
4 प्रभु ने मुझे शिय बना कर वाणी दी है, जिससे मैं थके-माँदे लोगों को सँभाल सकूँ। वह प्रतिदिन प्रातः मेरे कान खोल देता है, जिससे मैं शिय की तरह सुन सकूँ।
5 प्रभु ने मेरे कान खोल दिये हैं; मैंने न तो उसका विरोध किया और न पीछे हटा।
6 मैंने मारने वालों के सामने अपनी पीठ कर दी और दाढ़ी नोचने वालों के सामने अपना गाल। मैंने अपमान करने और थूकने वालों से अपना मुख नहीं छिप़ाया।
7 प्रभु मेरी सहायता करता है; इसलिए मैं अपमान से विचलित नहीं हुआ। मैंने पत्थर की तरह अपना मुँह कड़ा कर लिया। मैं जानता हूँ कि अन्त में मुझे निराश नही होना पड़ेगा।
8 मेरा रक्षक निकट है, तो मेरा विरोधी कौन? हम एक दूसरे का सामना करें। मुझ पर अभियोग लगाने वाला कौन? वह आगे बढ़ने का साहस करे।
9 प्रभु-ईश्वर मेरी सहायता करता है, तो कौन मुझे दोषी ठहराने का साहस करेगा? मेरे सभी विरोधी वस्त्र की तरह जीर्ण हो जायेंगे, उन्हें कीड़े खा जायेंगे।
📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 26: 14 – 25
14 तब बारहों में से एक, यूदस इसकारियोती नामक व्यक्ति ने महायाजकों के पास जा कर
15 कहा, “यदि मैं ईसा को आप लोगों के हवाले कर दूँ, तो आप मुझे क्या देने को तैयार हैं?” उन्होंने उसे चाँदी के तीस सिक्के दिये।
16 उस समय से यूदस ईसा को पकड़वाने का अवसर ढूँढ़ता रहा।
17 बेख़मीर रोटी के पहले दिन शिष्य ईसा के पास आकर बोले, “आप क्या चाहते हैं? हम कहाँ आपके लिए पास्का-भोज की तैयारी करें?”
18 ईसा ने उत्तर दिया, “शहर में अमुक के पास जाओ और उस से कहो, ’गुरुवर कहते हैं- मेरा समय निकट आ गया है, मैं अपने शिष्यों के साथ तुम्हारे यहाँ पास्का का भोजन करूँगा’।”
19 ईसा ने जैसा आदेश दिया, शिष्यों ने वैसा ही किया और पास्का-भोज की तैयारी कर ली।
20 सन्ध्या हो जाने पर ईसा बारहों शिष्यों के साथ भोजन करने बैठे।
21 उनके भोजन करते समय ईसा ने कहा, “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – तुम में से ही एक मुझे पकड़वा देगा”।
22 वे बहुत उदास हो गये और एक-एक कर उन से पूछने लगे, “प्रभु! कहीं वह मैं तो नहीं हूँ?”
23 ईसा ने उत्तर दिया, “जो मेरे साथ थाली में खाता है, वह मुझे पकड़वा देगा।
24 मानव पुत्र तो चला जाता है, जैसा कि उसके विषय में लिखा है; परन्तु धिक्कार उस मनुष्य को, जो मानव पुत्र को पकड़वाता है! उस मनुष्य के लिए कहीं अच्छा यही होता कि वह पैदा ही नहीं हुआ होता।”
25 ईसा के विश्वासघाती यूदस ने भी उन से पूछा, “गुरुवर! कहीं वह मैं तो नहीं हूँ? ईसा ने उत्तर दिया, तुमने ठीक ही कहा”।