पास्का – काल

पांचवा रविवार

आज के संत : संत लूइस मॉन्टफ़ोर्ट पुरोहित, संस्थापक

📒पहला पाठ : प्रेरित चरित 9 : 26 – 31

26  जब साऊल येरूसालेम पहुँचा, तो वह शिष्यों के समुदाय में सम्मिलित हो जाने की कोशिश करता रहा, किन्तु वे सब उसे से डरते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वह सचमुच ईसा का शिष्य बन गया है।

27  तब बरनाबस ने उसे प्रेरितों के पास ले जा कर उन्हें बताया कि साऊल ने मार्ग में प्रभु के दर्शन किये थे और प्रभु ने उस से बात की थी और यह भी बताया कि साऊल ने दमिश्क में निर्भीकता से ईसा के नाम का प्रचार किया था।

28  इसके बाद साऊल येरूसालेम में प्रेरितों के साथ आता-जाता रहा

29  और निर्भीकता से ईसा के नाम का प्रचार करता रहा। वह यूनानी-भाषी यहूदियों से बातचीत और बहस किया करता था, किन्तु वे लोग उसे मार डालना चाहते थे।

30  जब भाइयों को इसका पता चला, तो उन्होंने साऊल को कैसरिया ले जा कर तरसुस भेजा।

31  उस समय समस्त यहूदिया, गलीलिया तथा समारिया में कलीसिया को शान्ति मिली। उसका विकास होता जा रहा था और वह, प्रभु पर श्रद्धा रखती हुई और पवित्र आत्मा की सान्त्वना द्वारा बल प्राप्त करती हुई, बराबर बढ़ती जाती थी।

📘दूसरा पाठ : 1 योहन 3 : 18 – 24

18 बच्चो! हम वचन से नहीं, कर्म से, मुख से नहीं, हृदय के एक दूसरे को प्प्यार करें।

19 इसी से हम जान जायेंगे कि हम सत्य की सन्तान हैं और जब कभी हमारा अन्तः करण हम पर दोष लगायेगा, तो हम ईश्वर के सामने अपने को आश्वासन दे सकेंगे;

20 क्योंकि ईश्वर हमारे अन्तःकरण से बड़ा हौ और वह सब कुछ जानता है।

21 प्यारे भाइयो! यदि हमारा अन्तः करण हम पर दोष नहीं लगाता है, तो हम ईश्वर पर पूरा भरोसा रख सकते हैं।

22 हम उस से जो कुछ माँगेंगे, वह हमें वहीं प्रदान करेगा; क्योंकि हम उसकी आज्ञाओं को पालन करते हैं और वही करते हैं, जो उसे अच्छा लगता है।

23 और उसकी आाज्ञा यह है कि हम उसके पुत्र ईसा मसीह के नाम में विश्वास करें और एक दूसरे को प्यार करें, जैसा कि मसीह ने हमें आदेश दिया।

24 जो ईश्वर की आज्ञाओं का पालन करता है, वह ईश्वर में निवास करता है और ईश्वर उस में और हम जानते हैं कि वह हम में निवास करता है; क्योंकि उसने हम को आपना आत्मा प्रदान किया है।

📙सुसमाचार : संत योहन : 15: 1 – 8

1 मैं सच्ची दाखलता हूँ और मेरा पिता बागवान है।

2 वह उस डाली को, जो मुझ में नहीं फलती, काट देता है और उस डाली को जो फलती है, छाँटता है। जिससे वह और भी अधिक फल उत्पन्न करें।

3 मैंने तुम लोगो को जो शिक्षा दी है, उसके कारण तुम शुद्ध हो गये हो।

4 तुम मुझ में रहो और मैं तुम में रहूँगा। जिस तरह दाखलता में रहे बिना डाली स्वयं नहीं फल सकती, उसी तरह मुझ में रहे बिना तुम भी नहीं फल सकते।

5 मैं दाखलता हूँ और तुम डालियाँ हो। जो मुझ में रहता है और मैं जिसमें रहता हूँ वही फलता है क्योंकि मुझ से अलग रहकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।

6 यदि कोई मुझ में नहीं रहता तो वह सूखी डाली की तरह फेंक दिया जाता है। लोग ऐसी डालियाँ बटोर लेते हैं और आग में झोंक कर जला देते हैं।

7 यदि तुम मुझ में रहो और तुम में मेरी शिक्षा बनी रहती है तो चाहे जो माँगो, वह तुम्हें दिया जायेगा।

8 मेरे पिता की महिमा इस से प्रकट होगी कि तुम लोग बहुत फल उत्पन्न करो और मेरे शिष्य बने रहो।