सामान्य – सप्ताह

वर्ष का सत्रहवाँ रविवार

आज के संत: संत अल्फोन्सा मुट्टथुपाइथु कुँवारी, धर्मसंधिनी

📙पहला पाठ: 2 राजाओं 4: 42-44

42 एक मनुष्य बाल-शालिशा से आया और उसने ईश्वर -भक्त को प्रथम फल के रूप में जौ की बीस रोटियाँ और नये अनाज का बोरा दिया। तब एलीशा ने कहा “लोगों को खाने के लिए दे दो”

43 किन्तु उसके नौकर ने कहा, “मैं इतने को ही एक सौ लोगों में कैसे बाँट सकता हूँ?” उसने उत्तर दिया, “लोगों को खाने के लिए दो, क्योंकि प्रभु ने यह कहा है- वे खायेंगे और उस में से कुछ बच भी जायेगा”।

44 उसने लोगों को खिलाया। उन्होंने खा लिया और जैसा कि प्रभु ने कहा था, उस में से कुछ बच भी गया।


📘दूसरा पाठ: एफेसियों 4: 1-6

1 ईश्वर ने आप लोगों को बुलाया है। आप अपने इस बुलावे के अनुसार आचरण करें – यह आप लोगों से मेरा अनुरोध है, जो प्रभु के कारण कै़दी हूँ।

2 आप पूर्ण रूप से विनम्र, सौम्य तथा सहनशील बनें, प्रेम से एक दूसरे को सहन करें

3 और शान्ति के सूत्र में बँध कर उस एकता को बनाये रखने का प्रयत्न करते रहें, जिसे पवित्र आत्मा प्रदान करता है।

4 एक ही शरीर है, एक ही आत्मा और एक ही आशा, जिसके लिए आप लोग बुलाये गये हैं।

5 एक ही प्रभु है, एक ही विश्वास और एक ही बपतिस्मा।

6 एक ही ईश्वर है, जो सबों का पिता, सब के ऊपर, सब के साथ और सब में व्याप्त है।


📕सुसमाचार: संत योहन 6: 1-15

1 इसके बाद ईसा गलीलिया अर्थात् तिबेरियस के समुद्र के उस पर गये।

2 एक विशाल जनसमूह उनके पीछे हो लिया, क्योंकि लोगों ने वे चमत्कार देखे थे, जो ईसा बीमारों के लिए करते थे।

3 ईसा पहाड़ी पर चढ़े और वहाँ अपने शिष्यों के साथ बैठ गये।

4 यहूदियों का पास्का पर्व निकट था।

5 ईसा ने अपनी आँखें ऊपर उठायीं और देखा कि एक विशाल जनसमूह उनकी ओर आ रहा है। उन्होंने फिलिप से यह कहा, “हम इन्हें खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ खरीदें?”

6 उन्होंने फिलिप की परीक्षा लेने के लिए यह कहा। वे तो जानते ही थे कि वे क्या करेंगे।

7 फिलिप ने उन्हें उत्तर दिया, “दो सौ दीनार की रोटियाँ भी इतनी नहीं होंगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल सके”।

8 उनके शिष्यों में एक, सिमोन पेत्रुस के भाई अन्द्रेयस ने कहा,

9 “यहाँ एक लड़के के पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं, पर यह इतने लोगों के लिए क्या है,”

10 ईसा ने कहा, “लोगों को बैठा दो”। उस जगह बहुत घास थी। लोग बैठ गये। पुरुषों की संख्या लगभग पाँच हज़ार थी।

11 ईसा ने रोटियाँ ले लीं, धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और बैठे हुए लोगों में उन्हें उनकी इच्छा भर बँटवाया। उन्होंने मछलियाँ भी इसी तरह बँटवायीं।

12 जब लोग खा कर तृप्त हो गये, तो ईसा ने अपने शिष्यों से कहा, “बचे हुए टुकड़े बटोर लो, जिससे कुछ भी बरबाद न हो”।

13 इस लिए शिष्यों ने उन्हें बटोर लिया और उन टुकड़ों से बारह टोकरे भरे, जो लोगों के खाने के बाद जौ की पाँच रोटियों से बच गये थे।

14 लोग ईसा का यह चमत्कार देख कर बोल उठे, “निश्चय ही यह वे नबी हैं, जो संसार में आने वाले हैं”।

15 ईसा समझ गये कि वे आ कर मुझे राजा बनाने के लिए पकड़ ले जायेंगे, इसलिए वे फिर अकेले ही पहाड़ी पर चले गये।