चालीसा – काल
चालीसे का तीसरा रविवार

आज के संत: संत कैथरीन ड्रेक्सेल

📒 पहला पाठ: निर्गमन ग्रन्थ : 20 : 1 – 17

1 ईश्वर ने मूसा से यह सब कहा,
2 ”मैं प्रभु तुम्हारा ईश्वर हूँ। मैं तुमको मिस्र देश से गुलामी के घर से निकाल लाया।
3 मेरे सिवा तुम्हारा कोई ईश्वर नहीं होगा।
4 ”अपने लिये कोई देव मूर्ति मत बनाओ। ऊपर आकाश में या नीचे पृथ्वी तल पर या पृथ्वी के नीचे के जल में रहने वाले किसी भी प्राणी अथवा वस्तु का चित्र मत बनाओ।
5 उन मूर्तियों को दण्डवत कर उनकी पूजा मत करो; क्योंकि मैं प्रभु, तुम्हारा ईश्वर, ऐसी बातें सहन नहीं करता जो मुझ से बैर करते हैं, मैं तीसरी और चौथी पीढ़ी तक उनकी सन्तति को उनके अपराधों का दण्ड देता हूँ।
6 जो मुझे प्यार करते हैं और मेरी आज्ञाओं का पालन करते है मैं हजार पीढ़ियों तक उन पर दया करता हूँ।
7 प्रभु अपने ईश्वर का नाम व्यर्थ मत लो; क्योंकि जो व्यर्थ ही प्रभु का नाम लेता है, प्रभु उसे अवश्य दण्डित करेगा।
8 विश्राम-दिवस को पवित्र मानने का ध्यान रखो।
9 तुम छः दिनों तक परिश्रम करते रहो और अपना सब काम करो;
10 परन्तु सातवाँ दिन तुम्हारे प्रभु ईश्वर के आदर में विश्राम का दिन है। उस दिन न तो तुम कोई काम करो न तुम्हारा पुत्र, न तुम्हारी पुत्री, न तुम्हारा नौकर, न तुम्हारी नौकरानी, न तुम्हारे चौपाये और न तुम्हारे शहर में रहने वाला परदेशी।
11 छः दिनों में प्रभु ने आकाश, पृथ्वी, समुद्र और उन में से जो कुछ है वह सब बनाया है और उसने सातवें दिन विश्राम किया। इसलिए प्रभु ने विश्राम दिवस को आशिष दी है और उसे पवित्र ठहराया है।
12 अपने माता-पिता का आदर करों जिससे तुम बहुत दिनों तक उस भूमि पर जीते रहो, जिसे तुम्हारा प्रभु ईश्वर तुम्हें प्रदान करेगा।
13 हत्या मत करो।
14 व्यभिचार मत करो।
15 चोरी मत करो।
16 अपने पड़ोसी के विरुद्ध झूठी गवाही मत दो। अपने पड़ोसी के घर-बार का लालच मत करो।
17 न तो अपने पड़ोसी की पत्नी का, न उसके नौकर अथवा नौकरानी का, न उसके बैल अथवा गधे का – उसकी किसी भी चीज का लालच मत करो।”

📕 दूसरा पाठ : 1 कुरिन्थियों : 1: 18, 22 – 25

18 जो विनाश के मार्ग पर चलते हैं, वे क्रूस की शिक्षा को “मूर्खता” समझते हैं। किन्तु हम लोगों के लिए, जो मुक्ति के मार्ग पर चलते हैं, वह ईश्वर का सामर्थ्य है;
22 यहूदी चमत्कार माँगते और यूनानी ज्ञान चाहते हैं,
23 किन्तु हम क्रूस पर आरोपित मसीह का प्रचार करते हैं। यह यहूदियों के विश्वास में बाधा है और गै़र-यहूदियों के लिए ’मूर्खता’।
24 किन्तु मसीह चुने हुए लोगों के लिए, चाहे वे यहूदी हों या यूनानी, ईश्वर का सामर्थ्य और ईश्वर की प्रज्ञा है;
25 क्योंकि ईश्वर की ’मूर्खता’ मनुष्यों से अधिक विवेकपूर्ण और ईश्वर की ’दुर्बलता’ मनुष्यों से अधिक शक्तिशाली है।

📙 सुसमाचार : सन्त योहन 2: 13 – 25

13 यहूदियों का पास्का पर्व निकट आने पर ईसा येरूसालेम गये।
14 उन्होंने मन्दिर में बैल, भेड़ें और कबूतर बेचने वालों को तथा अपनी मेंज़ों के सामने बैठे हुए सराफों को देखा।
15 उन्होंने रस्सियों का कोड़ा बना कर भेड़ों और बेलों-सहित सब को मन्दिर से बाहर निकाल दिया, सराफों के सिक्के छितरा दिये, उनकी मेजे़ं उलट दीं
16 और कबूतर बेचने वालों से कहा, “यह सब यहाँ से हटा ले जाओ। मेरे पिता के घर को बाजार मत बनाओ।”
17 उनके शिष्यों को धर्मग्रन्थ का यह कथन याद आया- तेरे घर का उत्साह मुझे खा जायेगा।
18 यहूदियों ने ईसा से कहा, “आप हमें कौन-सा चमत्कार दिखा सकते हैं, जिससे हम यह जानें कि आप को ऐसा करने का अधिकार है?”
19 ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, “इस मन्दिर को ढा दो और मैं इसे तीन दिनों के अन्दर फिर खड़ा कर दूँगा”।
20 इस पर यहूदियों ने कहा, “इस मंदिर के निर्माण में छियालीस वर्ष लगे, और आप इसे तीन दिनों के अन्दर खड़ा कर देंगे?”
21 ईसा तो अपने शरीर के मन्दिर के विषय में कह रहे थे।
22 जब वह मृतकों में से जी उठे, तो उनके शिष्यों को याद आया कि उन्होंने यह कहा था; इसलिए उन्होंने धर्मग्रन्ध और ईसा के इस कथन पर विश्वास किया।
23 जब ईसा पास्का पर्व के दिनों में येरूसालेम में थे, तो बहुत-से लोगों ने उनके किये हुए चमत्कार देख कर उनके नाम में विश्वास किया।
24 परन्तु ईसा को उन पर कोई विश्वास नहीं था, क्योंकि वे सब को जानते थे।
25 इसकी ज़रूरत नहीं थी कि कोई उन्हें मनुष्य के विषय में बताये। वे तो स्वयं मनुष्य का स्वभाव जानते थे।