सामान्य काल
वर्ष का इकतीसवाँ रविवार
आज के संत: संत मार्टिन दे पोरेस धर्मसंघी
📙 पहला पाठ: विधि-विवरण 6: 2-6
2 यदि तुम अपने पुत्रों और पौत्रों के साथ जीवन भर अपने प्रभु-ईश्वर पर श्रद्धा रखोगे और उसके जो नियम तथा आदेश मैं तुम्हें दे रहा हूँ, यदि तुम उनका पालन करोगे, तो तुम्हारी आयु लम्बी होगी।
3 इस्राएल! यदि तुम सुनोगे और सावधानी से उनका पालन करोगे, तो तुम्हारा कल्याण होगा, तुम फलोगे-फूलोगे और जैसा कि प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों के ईश्वर ने कहा, वह तुम्हें वह देश प्रदान करेगा, जहाँ दूध और मधु की नदियाँ बहती हैं।
4 “इस्राएल! सुनो। हमारा प्रभु-ईश्वर एकमात्र प्रभु है।
5 तुम अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा और अपनी सारी शक्ति से प्यार करो।
6 जो शब्द मैं तुम्हें आज सुना रहा हूँ, वे तुम्हारे हृदय पर अंकित रहें।
📘 दूसरा पाठ: इब्रानियों 7: 23-28
23 वे बड़ी संख्या में पुरोहित नियुक्त किये जाते हैं, क्योंकि मृत्यु के कारण अधिक समय तक पद पर रहना उनके लिए सम्भव नहीं।
24 ईसा सदा बने रहते हैं, इसलिए उनका पौरोहित्य चिरस्थायी हैं।
25 यही कारण है कि जो लोग उनके द्वारा ईश्वर की शरण लेते हैं, वह उन्हें परिपूर्ण मुक्ति दिलाने में समर्थ हैं; क्योंकि वे उनकी ओर से निवेदन करने के लिए सदा जीवित रहते हैं।
26 यह उचित ही था कि हमें इस प्रकार का प्रधानयाजक मिले- पवित्र, निर्दोष, निष्कलंक, पापियों से सर्वथा भिन्न और स्वर्ग से भी ऊँचा।
27 अन्य प्रधानयाजक पहले अपने पापों और बाद में प्रजा के पापों के लिए प्रतिदिन बलिदान चढ़ाया करते हैं। ईसा को इसकी आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि उन्होंने यह कार्य एक ही बार में उस समय पूरा कर लिया, जब उन्होंने अपने को बलि चढ़ाया।
28 संहिता जो दुर्बल मनुष्यों को प्रधानयाजक नियुक्त करती है, किन्तु संहिता के समाप्त हो जाने के बाद ईश्वर की शपथ के अनुसार वह पुत्र पुरोहित नियुक्त किया जाता है, जिसे सदा के लिए परिपूर्ण बना दिया है।
📕 सुसमाचार: संत मारकुस 12: 28-34
28 तब एक शास्त्री ईसा के पास आया। उसने यह विवाद सुना था और यह देख कर कि ईसा ने सदूकियों को ठीक उत्तर दिया था, उन से पूछा, “सबसे पहली आज्ञा कौन सी है?“
29 ईसा ने उत्तर दिया, “पहली आज्ञा यह है- इस्राएल, सुनो! हमारा प्रभु-ईश्वर एकमात्र प्रभु है।
30 अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी बुद्धि और सारी शक्ति से प्यार करो।
31 दूसरी आज्ञा यह है- अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो। इनसे बड़ी कोई आज्ञा नहीं।“
32 शास्त्री ने उन से कहा, “ठीक है, गुरुवर! आपने सच कहा है। एक ही ईश्वर है, उसके सिवा और कोई नहीं है।
33 उसे अपने सारे हृदय, अपनी सारी बुद्धि और अपने सारी शक्ति से प्यार करना और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करना, यह हर प्रकार के होम और बलिदान से बढ़ कर है।“
34 ईसा ने उसका विवेकपूर्ण उत्तर सुन कर उस से कहा, “तुम ईश्वर के राज्य से दूर नहीं हो”। इसके बाद किसी को ईसा से और प्रश्न करने का साहस नहीं हुआ।