सामान्य काल
छब्बीसवाँ सप्ताह
आज की संत: संत थेयोडोर गुएरिन संस्थापिका
📙 पहला पाठ: अय्यूब 19: 21-27
21 मेरे मित्रों! मुझ पर दया करो! दया करो! क्योंकि प्रभु के हाथ ने मेरा स्पर्श किया है।
22 तुम ईश्वर की तरह मुझे क्यों सताते हो? तुम मुझे क्यों निगलना चाहते हो?
23 (23-24 ओह! कौन मेरे ये शब्द लिखेगा? कौन इन्हें लोहे की छेनी और शीशे से किसी स्मारक पर अंकित करेगा? इन्हें सदा के लिए चट्टान पर उत्कीर्ण करेगा?
25 मैं यह जानता हूँ कि मेरा रक्षक जीवित हैं और वह अन्त में पृथ्वी पर खड़ा हो जायेगा।
26 जब मैं जागूँगा, मैं खड़ा हो जाऊँगा, तब मैं इसी शरीर में ईश्वर के दर्शन करूँगा।
27 मैं स्वयं उसके दर्शन करूँगा, मेरी ही आँखे उसे देखेंगी। मेरा हृदय उसके दर्शनों के लिए तरसता है।
📕 सुसमाचार: संत लूकस 10: 1-12
1 इसके बाद प्रभु ने अन्य बहत्तर शिष्य नियुक्त किये और जिस-जिस नगर और गाँव में वे स्वयं जाने वाले थे, वहाँ दो-दो करके उन्हें अपने आगे भेजा।
2 उन्होंने उन से कहा, “फ़सल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं; इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे।
3 जाओ, मैं तुम्हें भेडि़यों के बीच भेड़ों की तरह भेजता हूँ।
4 तुम न थैली, न झोली और न जूते ले जाओ और रास्तें में किसी को नमस्कार मत करो।
5 जिस घर में प्रवेश करते हो, सब से पहले यह कहो, ’इस घर को शान्ति!’
6 यदि वहाँ कोई शान्ति के योग्य होगा, तो उस पर तुम्हारी शान्ति ठहरेगी, नहीं तो वह तुम्हारे पास लौट आयेगी।
7 उसी घर में ठहरे रहो और उनके पास जो हो, वही खाओ-पियो; क्योंकि मज़दूर को मज़दूरी का अधिकार है। घर पर घर बदलते न रहो।
8 जिस नगर में प्रवेश करते हो और लोग तुम्हारा स्वागत करते हैं, तो जो कुछ तुम्हें परोसा जाये, वही खा लो।
9 वहाँ के रोगियों को चंगा करो और उन से कहो, ’ईश्वर का राज्य तुम्हारे निकट आ गया है’।
10 परन्तु यदि किसी नगर में प्रवेश करते हो और लोग तुम्हारा स्वागत नहीं करते, तो वहाँ के बाज़ारों में जा कर कहो,
11 ’अपने पैरों में लगी तुम्हारे नगर की धूल तक हम तुम्हारे सामने झाड़ देते हैं। तब भी यह जान लो कि ईश्वर का राज्य आ गया है।’
12 मैं तुम से यह कहता हूँ – न्याय के दिन उस नगर की दशा की अपेक्षा सोदोम की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।