सामान्य काल
वर्ष का बाइसवाँ रविवार
आज के संत : संत ग्रेगोरी महान, पोप, धर्माचार्य


📙पहला पाठ: 1 कुरिन्थियों 2 : 10 – 16

10 ईश्वर ने अपने आत्मा द्वारा हम पर वही प्रकट किया है, क्योंकि आत्मा सब कुछ की, ईश्वर के रहस्य की भी, थाह लेता है।

11 मनुष्य के निजी आत्मा के अतिरिक्त कौन किसी का अन्तरतम जानता है? इसी तरह ईश्वर के आत्मा के अतिरिक्त कोई ईश्वर का अन्तरतम नहीं जानता।

12 हमें संसार का नहीं, बल्कि ईश्वर का आत्मा मिला है, जिससे हम ईश्वर के वरदान पहचान सकें।

13 हम उन वरदानों की व्याख्या करते समय मानवीय प्रज्ञा के शब्दों का नहीं, बल्कि आत्मा द्वारा प्रदत्त शब्दों का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार हम आध्यात्मिक शब्दावली में आध्यात्मिक तथ्यों की विवेचना करते है।।

14 प्राकृत मनुष्य ईश्वर के आत्मा की शिक्षा स्वीकार नहीं करता। वह उसे मूर्खता मानता और उसे समझने में असमर्थ है, क्योंकि आत्मा की सहायता से ही उस शिक्षा की परख हो सकती है।

15 आध्यात्मिक मनुष्य सब बातों की परख करता है, किन्तु कोई भी उस मनुष्य की परख नहीं करता है, किन्तु कोई भी उस मनुष्य की परख नहीं कर पाता;

16 क्योंकि (लिखा है – प्रभु का मन कौन जानता है? कौन उसे शिक्षा दे सकता है? हम में तो मसीह का मनोभाव विद्यमान है।


📕 सुसमाचार: संत लूकस 4: 31-37

31 वे गलीलिया के कफ़रनाहूम नगर आये और विश्राम के दिन लोगों को शिक्षा दिया करते थे।

32 लोग उनकी शिक्षा सुन कर अचम्भे में पड़ जाते थे, क्योंकि वे अधिकार के साथ बोलते थे।

33 सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्ला उठा,

34 “ईसा नाज़री! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं-ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।”

35 ईसा ने यह कहते हुए उसे डाँटा, ” चुप रह, इस मनुष्य से बाहर निकल जा”। अपदूत ने सब के देखते-देखते उस मनुष्य को भूमि पर पटक दिया और उसकी कोई हानि किये बिना वह उस से बाहर निकल गया।

36 सब विस्मित हो गये और आपस में यह कहते रहे, “यह क्या बात है! वे अधिकार तथा सामर्थ्य के साथ अशुद्ध आत्माओं को आदेश देते हैं और वे निकल जाते हैं।”

37 इसके बाद ईसा की चर्चा उस प्रदेश के कोने-कोने में फैल गयी।