पास्का – जागरण
पवित्र शनिवार
पहला पाठ : उत्पत्ति 1 : 1 – 2 : 2
1 प्रारंभ में ईश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की सृष्टि की।
2 सातवें दिन ईश्वर का किया हुआ कार्य समाप्त हुआ। उसने अपना समस्त कार्य समाप्त कर, सातवें दिन विश्राम किया।
दूसरा पाठ : उत्पत्ति 22 : 1 – 18
1 ईश्वर ने इब्राहीम की परीक्षा ली। उसने उस से कहा, ”इब्राहीम! इब्राहीम!” इब्राहीम ने उत्तर दिया, ”प्रस्तुत हूँ।”
2 ईश्वर ने कहा, ”अपने पुत्र को, अपने एकलौते को परमप्रिय इसहाक को साथ ले जा कर मोरिया देश जाओ। वहाँ, जिस पहाड़ पर मैं तुम्हें बताऊँगा, उसे बलि चढ़ा देना।”
3 इब्राहीम बड़े सबेरे उठा। उसने अपने गधे पर जीन बाँध कर दो नौकरों और अपने पुत्र इसहाक को बुला भेजा। उसने होम-बली के लिए लकड़ी तैयार कर ली और उस जगह के लिए प्रस्थान किया, जिसे ईश्वर ने बताया था।
4 तीसरे दिन, इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठायीं और उस जगह को दूर से देखा।
5 इब्राहीम ने अपने नौकरों से कहा, ”तुम लोग गधे के साथ यहाँ ठहरो। मैं लड़के के साथ वहाँ जाऊँगा। आराधना करने के बाद हम तुम्हारे पास लौट आयेंगे।
6 इब्राहीम ने होम-बली की लकड़ी अपने पुत्र इसहाक पर लाद दी। उसने स्वयं आग और छुरा हाथ में ले लिया और दोनों साथ-साथ चल दिये।
7 इसहाक ने अपने पिता इब्राहीम से कहा, ”पिताजी!” उसने उत्तर दिया, ”बेटा! क्या बात है?” उसने उत्तर दिया, ”देखिए, आग और लकड़ी तो हमारे पास है; किन्तु होम को मेमना कहाँ है?”
8 इब्राहीम ने उत्तर दिया, ”बेटा! ईश्वर होम के मेमने का प्रबन्ध कर देगा”, और वे दोनों साथ-साथ आगे बढ़े।
9 जब वे उस जगह पहुँच गये, जिसे ईश्वर ने बताया था, तो इब्राहीम ने वहाँ एक वेदी बना ली और उस पर लकड़ी सजायी। इसके बाद उसने अपने पुत्र इसहाक को बाँधा और उसे वेदी के ऊपर रख दिया।
10 तब इब्राहीम ने अपने पुत्र को बलि चढ़ाने के लिए हाथ बढ़ा कर छुरा उठा लिया।
11 किन्तु प्रभु का दूत स्वर्ग से उसे पुकार कर बोला, ”इब्राहीम! ”इब्राहीम! उसने उत्तर दिया, ”प्रस्तुत हूँ।”
12 दूत ने कहा, ”बालक पर हाथ नहीं उठाना; उसे कोई हानि नहीं पहुँचाना। अब मैं जान गया कि तुम ईश्वर पर श्रद्धा रखते हो – तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया।
13 इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठायीं और सींगों से झाड़ी में फँसे हुए एक मेढ़े को देखा। इब्राहीम ने जाकर मेढ़े को पकड़ लिया और उसे अपने पुत्र के बदले बलि चढ़ा दिया।
14 इब्राहीम ने उस जगह का नाम ”प्रभु का प्रबन्ध” रखा; इसलिए लोग आजकल कहते हैं, ”प्रभु पर्वत पर प्रबन्ध करता है।”
15 ईश्वर का दूत इब्राहीम को दूसरी बार पुकार कर
16 बोला, ”यह प्रभु की वाणी है। मैं शपथ खा कर कहता हूँ – तुमने यह काम किया : तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया;
17 इसलिए मैं तुम पर आशिष बरसाता रहूँगा। मैं आकाश के तारों और समुद्र के बालू की तरह तुम्हारे वंशजों को असंख्य बना दूँगा और वे अपने शत्रुओं के नगरों पर अधिकार कर लेंगे।
18 तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है; इसलिए तुम्हारे वंश के द्वारा पृथ्वी के सभी राष्ट्रों का कल्याण होगा।”
तीसरा पाठ : निर्गमन 14 : 15 – 15:1
15 प्रभु ने मूसा से कहा, ”तुम मेरी दुहाई क्यों दे रहे हो? इस्राएलियों को आगे बढ़ने का आदेश दो।
1 तब मूसा और इस्राएली प्रभु के आदर में यह भजन गाने लगे : मैं प्रभु का गुणगान करना चाहता हूँ। उसने अपनी महिमा प्रकट की है उसने घोड़े के साथ घुड़सवार को समुद्र में फेंक दिया है।
चौथा पाठ: इसायाह 54 : 5 – 14
5 “तेरा सृष्टिकर्ता ही तेरा पति है। उसका नाम है- विश्वमण्डल का प्रभु। इस्राएल का परमपावन ईश्वर तेरा उद्धार करता है। वह समस्त पृथ्वी का ईश्वर कहलाता है।
6 “परित्यक्ता स्त्री की तरह दुःख की मारी! प्रभु तुझे वापस बुलाता है। क्या कोई अपनी तरुणाई की पत्नी को भुला सकता है?“ यह तेरे ईश्वर का कथन है।
7 “मैंने थोड़ी ही देर के लिए तुझे छोड़ा था। अब मैं तरस खा कर, तुझे अपने यहाँ ले जाऊँगा।
8 मैंने क्रेाध के आवेश में क्षण भर तुझ से मुँह फेर लिया था। अब मैं अनन्त प्रेम से तुझ पर दया करता रहूँगा।“ यह तेरे उद्धारकर्ता ईश्वर का कथन है।
9 “नूह के समय मैंने शपथ खा कर कहा था कि प्रलय की बाढ़ फिर पृथ्वी पर नहीं आयेगी। उसी तरह मैं शपथ खा कर कहता हूँ कि मैं फिर तुझ पर क्रोध नहीं करूँगा और फिर तुझे धमकी नहीं दूँगा।
10 “चाहे पहाड़ टल जायें और पहाड़ियाँ डाँवाडोल हो जायें, किन्तु तेरे प्रति मेरा प्रेम नहीं टलेगा और तेरे लिए मेरा शान्ति-विधान नहीं डाँवाडोल होगा।“ यह तुझ पर तरस खाने वाले प्रभु का कथन है।
11 “दुर्भाग्यशालिनी! आँधी और दुःख की मारी! मैं तेरे पत्थर चुन-चुन कर लगवा दूँगा और तेरी नींव नीलमणियों पर डालूँगा।
12 मैं तेरे कंगूरे लालमणियों से, तेरे फाटक स्फटिक से और तेरे परकोटे रत्नों से बनाऊँगा।
13 तेरी प्रजा प्रभु से शिक्षा ग्रहण करेगी और उसकी सुख-शान्ति की सीमा नहीं रहेगी।
14 तेरी नींव न्याय पर डाली जायेगी। तुझे कोई नहीं सतायेगा, तू कभी भयभीत नहीं होगी। आतंक तुझ से कोसों दूर रहेगा।
पाँचवाँ पाठ : इसायाह 55 : 1 – 11
1 “तुम सब, जो प्यासे हो, पानी के पास चले आओ। यदि तुम्हारे पास रुपया नहीं हो, तो भी आओ। मुफ़्त में अन्न ख़रीद कर खाओ, दाम चुकाये बिना अंगूरी और दूध ख़रीद लो।
2 जो भोजन नहीं है, उसके लिए तुम लोग अपना रुपया क्यों ख़र्च करते हो? जो तृप्ति नहीं दे सकता है, उसके लिए परिश्रम क्यों करते हो? मेरी बात मानो। तब खाने के लिए तुम्हें अच्छी चीज़ें मिलेंगी और तुम लोग पकवान खा कर प्रसन्न रहोगे।
3 कान लगा कर सुनो और मेरे पास आओ। मेरी बात पर ध्यान दो और तुम्हारी आत्मा को जीवन प्राप्त होगा। मैंने दाऊद से दया करते रहने की प्रतिज्ञा की थी। उसके अनुसार मैं तुम लोगों के लिए, एक चिरस्थायी विधान ठहराऊँगा।
4 मैंने राष्ट्रों के साक्य देने के लिए दाऊद को चुना और उसे राष्ट्रों का पथप्रदर्शक तथा अधिपति बना दिया है।
5 “तू उन राष्ट्रों को बुलायेगी, जिन्हें तू नहीं जानती थी और जो तुझे नहीं जानते थे, वे दौड़ते हुए तेरे पास जायेंगे। यह इसलिए होगा कि प्रभु, तेरा ईश्वर, इस्राएल का परमपावन ईश्वर, तुझे महिमान्वित करेगा।
6 “जब तक प्रभु मिल सकता है, तब तक उसके पास चली जा। जब तक वह निकट है, तब तक उसकी दुहाई देती रह।
7 पापी अपना मार्ग छोड़ दे और दुष्ट अपने बुरे विचार त्याग दे। वह प्रभु के पास लौट आये और वह उस पर दया करेगा; क्योंकि हमारा ईश्वर दयासागर है।
8 प्रभु यह कहता है- तुम लोगों के विचार मेरे विचार नहीं हैं और मेरे मार्ग तुम लोगों के मार्ग नहीं हैं।
9 जिस तरह आकाश पृथ्वी के ऊपर बहुत ऊँचा है, उसी तरह मेरे मार्ग तुम्हारे मार्गों से और मेरे विचार तुम्हारे विचारों से ऊँचे हैं।
10 जिस तरह पानी और बर्फ़ आकाश से उतर कर भूमि सींचे बिना, उसे उपजाऊ बनाये और हरियाली से ढके बिना वहाँ नहीं लौटते, जिससे भूमि बीज बोने वाले को बीज और खाने वाले को अनाज दे सके,
11 उसी तरह मेरी वाणी मेरे मुख से निकल कर व्यर्थ ही मेरे पास नहीं लौटती। मैं जो चाहता था, वह उसे कर देती है और मेरा उद्देश्य पूरा करने के बाद ही वह मेरे पास लौट आती है।
छठा पाठ: बारुक 3 : 9 – 15, 32 – 4 : 4
9 इस्राएल! जीवन देने वाली आज्ञाएँ सुनो। कान लगा कर कर सच्चा ज्ञान प्राप्त करो।
10 इस्राएल! तुम क्यों अपने शत्रुओं के देश में हो? तुम क्यों विदेश में बूढे हो गये हो? तुम विदेश में दुःख के दिन काटते हो।
11 तुम मृतकों द्वारा अशुद्ध बन गये हो। अधोलोक जाने वालों में तुम्हारी गिनती हो गयी है।
12 यह इसलिए हो रहा है कि तुमने प्रज्ञा का स्रोत त्याग दिया है।
13 यदि तुम ईश्वर के मार्ग पर चले होते, तो तुम सदा के लिए शान्ति में जीवन बिताते।
14 यह समझ लो कि ज्ञान कहाँ है; सामर्थ्य कहाँ है, बुद्धिमानी कहाँ है, जिससे तुम जान जाओ कि लम्बी आयु और जीवन कहाँ है, आँखों की ज्योति और शान्ति कहाँ है।
15 कौन प्रज्ञा के निवासस्थान तक पहुँचा है? किसने उसके खजाने में प्रवेश किया है?
32 सर्वज्ञ ही उसका मार्ग जानता है, उसने अपनी बुद्धि से उसका पता लगाया है। उसने सदा के लिए पृथ्वी की नींव डाली है और उसे जीव-जन्तुओं से भर दिया है।
4 इस्राएल! हम कितने सौभाग्यशाली है! ईश्वर की इच्छा हम पर प्रकट की गयी है।
सातवाँ पाठ : एजेकिएल 36 : 16 – 17, 18
16 प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई पड़ी,
17 “मानवपुत्र! इस्राएल के लोगों ने, अपनी निजी देश में रहते समय, उसे अपने आचरण और व्यवहार से अशुद्ध कर दिया। मेरे सामने उनका आचरण रजस्वला स्त्री की अशुद्धता-जैसा था।
18 उन्होंने देश में रक्त बहा कर और देवमूर्तियों को स्थापित कर उसे अपवित्र कर दिया, इसलिए मैंने उन पर अपना क्रोध प्रदार्शित किया।
19 मैंने उन्हें राष्ट्रों में तितर-बितर कर दिया और वे विदेशों में बिखर गये। मैंने उनके आचरण और व्यवहार के अनुसार उनका न्याय किया है।
20 उन्होंने दूसरे राष्ट्रों में पहुँच कर मेरे पवित्र नाम का अनादर कराया। लोग उनके विषय में कहते थे, ’यह प्रभु की प्रजा है, फिर भी इन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा।’
21 परन्तु मुझे अपने पवित्र नाम का ध्यान है, जिसका अनादर इस्राएलियों ने देश-विदेश में, जहाँ वे गये थे, कराया है।
22 “इसलिए इस्राएल की प्रजा से कहना- प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः इस्राएल की प्रजा! मैं जो करने जा रहा हूँ वह तुम्हारे कारण नहीं करूँगा, बल्कि अपने पवित्र नाम के कारण, जिसका अनादर तुम लोगों ने देश-विदेश में कराया।
23 मैं अपने महान् नाम की पवित्रता प्रमाणित करूँगा, जिस पर देश-विदेश में कलंक लग गया है और जिसका अनादर तुम लोगों ने वहाँ जा कर कराया है। जब मैं तुम लोगों के द्वारा राष्ट्रों के सामने अपने पवित्र नाम की महिमा प्रदर्शित करूँगा, तब वे जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।
24 “मैं तुम लोगों को राष्ट्रों में से निकाल कर और देश-विदेश से एकत्र कर तुम्हारे अपने देश वापस ले जाऊँगा।
25 मैं तुम लोगों पर पवित्र जल छिडकूँगा और तुम पवित्र हो जाओगे। मैं तुम लोगों को तुम्हारी सारी अपवित्रता से और तुम्हारी सब देवमूर्तियों के दूषण से शुद्ध कर दूँगा।
26 मैं तुम लोगों को एक नया हृदय दूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूँगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निाकल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूँगा।
27 मैं तुम लोगों में अपना आत्मा रख दूँगा, जिससे तुम मेरी संहिता पर चलोगे और ईमानदारी से मेरी आज्ञाओं का पालन करोग।
28 तुम लोग उस देश में निवास करोगे, जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया है। तुम मेरी प्रजा होगे और मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा।
आठवाँ पाठ : रोमियों 6 : 3 – 11
3 क्या आप लोग यह नहीं जानते कि ईसा मसीह का तो बपतिस्मा हम सबों को मिला है, वह उनकी मृत्यु का बपतिस्मा हैं?
4 हम उनकी मृत्यु का बपतिस्मा ग्रहण कर उनके साथ इसलिए दफनाये गये हैं कि जिस तरह मसीह पिता के सामर्थ्य से मृतकों में से जी उठे हैं, उसी तरह हम भी एक नया जीवन जीयें।
5 यदि हम इस प्रकार उनके साथ मर कर उनके साथ एक हो गये हैं, तो हमें भी उन्हीं की तरह जी उठना चाहिए।
6 हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारा पुराना स्वभाव उन्हीं के साथ क्रूस पर चढ़ाया जा चुका हैं, जिससे पाप का शरीर मर जाये और हम फिर पाप के दास न बने;
7 क्योंकि जो मर चुका है, वह पाप की गुलामी से मुक्त हो गया हैं।
8 हमें विश्वास है कि यदि हम मसीह के साथ मर गये हैं, तो हम उन्ही के जीवन के भी भागी होंगे;
9 क्योंकि हम जानते हैं कि मसीह मृतको में से जी उठने के बाद फिर कभी नहीं मरेंगे। अब मृत्यु का उन पर कोई वश नहीं।
10 वह पाप का हिसाब चुकाने के लिए एक बार मर गये और अब वह ईश्वर के लिए ही जीते हैं।
11 आप लोग भी अपने को ऐसा ही समझें-पाप के लिए मरा हुआ और ईसा मसीह में ईश्वर के लिए जीवित।
📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस 16 : 1 – 7
1 विश्राम-दिवस के बाद मरियम और सलोमी ने सुगन्धित द्रव्य खरीदा, ताकि जा कर ईसा के शरीर का विलोपन करें।
2 वे सप्ताह के प्रथम दिन बहुत सबेरे, सूर्योदय होते ही, कब्र पर पहुंचीं।
3 वे आपस में यह कह रही थीं, “कौन हमारे लिए कब्र के द्वार पर से पत्थर लुढ़का कर हटा देगा?”
4 किन्तु जब उन्होंनं आंखें ऊपर उठा कर देखा, तो पता चला कि वह पत्थर, जो बहुत बड़ा था, अलग लुढ़काया हुआ है।
5 वे कब्र में अन्दर गयीं और यह देख कर चकित-सी रह गयीं कि लम्बा श्वेत वस्त्र पहने एक नवयुवक दाहिने बैठा हुआ है।
6 उसने उन से कहा, “डरिए नहीं। आप लोग ईसा नाज़री को ढूँढ़ रहीं हैं, जो क्रूस पर चढ़ाये गये थे। वे जी उठे हैं- वे यहाँ नहीं हैं। देखिए, यही जगह है, जहाँ उन्होंने उन को रखा था।
7 जा कर उनके शिष्यों और पेत्रुस से कहिए कि वे आप लोगों से पहले गलीलिया जायेंगे। वहां आप लोग उनके दर्शन करेंगे, जैसा कि उन्होंने आप लोगों से कहा था।”