सामान्य काल
इक्कीसवाँ सप्ताह
आज के संत : संत रेमण्ड नोन्नातुस पुरोहित
📙पहला पाठ:1 कुरिन्थियों 1 : 26-31
26 इस बात पर विचार कीजिए कि बुलाये जाते समय दुनिया की दृष्टि में आप लोगों में बहुत कम लोग ज्ञानी, शक्तिशाली अथवा कुलीन थे।
27 ज्ञानियों को लज्जित करने के लिए ईश्वर ने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में मूर्ख हैं। शक्तिशालियों को लज्जित करने के लिए उसने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में दुर्बल हैं।
28 गण्य-मान्य लोगों का घमण्ड चूर करने के लिए उसने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में तुच्छ और नगण्य हैं,
29 जिससे कोई भी मनुष्य ईश्वर के सामने गर्व न करे।
30 उसी ईश्वर के वरदान से आप लोग ईसा मसीह के अंग बन गये है। ईश्वर ने मसीह के अंग बन गये है। ईश्वर ने मसीह को हमारा ज्ञान, धार्मिकता, पवित्रता और उद्धार बना दिया है।
31 इसलिए, जैसा कि धर्मग्रन्थ में लिखा है- यदि कोई गर्व करना चाहे, तो वह प्रभु पर गर्व करे।
📕 सुसमाचार: संत मत्ती 25: 14 – 30
14 “स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जिसने विदेश जाते समय अपने सेवकों को बुलाया और उन्हें अपनी सम्पत्ति सौंप दी।
15 उसने प्रत्येक की योग्यता का ध्यान रख कर एक सेवक को पाँच हज़ार, दूसरे को दो हज़ार और तीसरे को एक हज़ार अशर्फ़ियाँ दीं। इसके बाद वह विदेश चला गया।
16 जिसे पाँच हज़ार अशर्फ़ियाँ मिली थीं, उसने तुरन्त जा कर उनके साथ लेन-देन किया तथा और पाँच हज़ार अशर्फ़ियाँ कमा लीं।
17 इसी तरह जिसे दो हज़ार अशर्फ़ियाँ मिली थीं, उसने और दो हज़ार कमा लीं।
18 लेकिन जिसे एक हज़ार अशर्फ़ियाँ मिली थीं, वह गया और उसने भूमि खोद कर अपने स्वामी का धन छिपा दिया।
19 “बहुत समय बाद उन सेवकों के स्वामी ने लौट कर उन से लेखा लिया।
20 जिसे पाँच हज़ार अशर्फ़ियाँ मिली थीं, उसने और पाँच हज़ार ला कर कहा, ’स्वामी! आपने मुझे पाँच हज़ार अशर्फ़ियाँ सौंपी थीं। देखिए, मैंने और पाँच हज़ार कमायीं।’
21 उसके स्वामी ने उस से कहा, ’शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनो।’
22 इसके बाद वह आया, जिसे दो हजार अशर्फ़ियाँ मिली थीं। उसने कहा, ’स्वामी! आपने मुझे दो हज़ार अशर्फ़ियाँ सौंपी थीं। देखिए, मैंने और दो हज़ार कमायीं।’
23 उसके स्वामी ने उस से कहा, ’शाबाश, भले और ईमानदार सेवक! तुम थोड़े में ईमानदार रहे, मैं तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूँगा। अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनो।’
24 अन्त में वह आया, जिसे एक हज़ार अशर्फ़ियाँ मिली थीं। उसने कहा, ’स्वामी! मुझे मालूम था कि आप कठोर हैं। आपने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनते हैं और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरते हैं।
25 इसलिए मैं डर गया और मैंने जा कर आपका धन भूमि में छिपा दिया। देखिए, यह आपका है, इसे लौटाता हूँ।’
26 स्वामी ने उसे उत्तर दिया, ’दुष्ट और आलसी सेवक! तुझे मालूम था कि मैंने जहाँ नहीं बोया, वहाँ लुनता हूँ और जहाँ नहीं बिखेरा, वहाँ बटोरता हूँ,
27 तो तुझे मेरा धन महाजनों के यहाँ जमा करना चाहिए था। तब मैं लौटने पर उसे सूद के साथ वसूल कर लेता।
28 इसलिए ये हज़ार अशर्फ़ियाँ इस से ले लो और जिसके पास दस हज़ार हैं, उसी को दे दो;
29 क्योंकि जिसके पास कुछ है, उसी को और दिया जायेगा और उसके पास बहुत हो जायेगा; लेकिन जिसके पास कुछ नहीं है, उस से वह भी ले लिया जायेगा, जो उसके पास है
30 और इस निकम्मे सेवक को बाहर, अन्धकार में फेंक दो। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।