सामान्य काल
तीसवाँ सप्ताह
आज के संत: अल्फोन्सुस रोड्रीगज़ धर्मबन्धु

📙 पहला पाठ: एफ़ेसियों 6: 10-20

10 अन्त में यह-आप लोग प्रभु से और उसके अपार सामर्थ्य से बल ग्रहण करें,

11 आप ईश्वर के अस्त्र-शस्त्र धारण करें, जिससे आप शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ हों;

12 क्योंकि हमें निरे मनुष्यों से नहीं, बल्कि इस अन्धकारमय संसार के अधिपतियों, अधिकारियों तथा शासकों और आकाश के दुष्ट आत्माओं से संघर्ष करना पड़ता है।

13 इसलिए आप ईश्वर के अस्त्र-शस्त्र धारण करें, जिससे आप दुर्दिन में शत्रु का सामना करने में समर्थ हों और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें।

14 आप सत्य का कमरबन्द कस कर, धार्मिकता का कवच धारण कर

15 और शान्ति-सुसमाचार के उत्साह के जूते पहन कर खड़े हों।

16 साथ ही विश्वास की ढाल धारण किये रहें। उस से आप दुष्ट के सब अग्निमय बाण बुझा सकेंगे।

17 इसके अतिरिक्त मुक्ति का टोप पहन लें और आत्मा की तलवार-अर्थात् ईश्वर का वचन-ग्रहण करें।

18 आप लोग हर समय आत्मा में सब प्रकार की प्रार्थना तथा निवेदन करते रहें। आप लोग जागते रहें और सब सन्तों के लिए निरन्तर विनती करते रहें।

19 आप मेरे लिए भी विनती करें, जिससे बोलते समय मुझे शब्द दिये जायें और मैं निर्भीकता से उस सुसमाचार का रहस्य घोषित कर सकूँ,

20 जिस सुसमाचार का मैं बेडि़यों से बँधा हुआ राजदूत हूँ। आप विनती करें, जिससे मैं निर्भीकता से सुसमाचार का प्रचार कर सकूँ, जैसा कि मेरा कर्तव्य है।


📕 सुसमाचार: संत लूकस 13: 31-35

31 उसी समय कुछ फ़रीसियों ने आ कर उन से कहा, “विदा लीजिए और यहाँ से चले जाइए, क्योंकि हेरोद आप को मार डालना चाहता है”।

32 ईसा ने उन से कहा, “जा कर उस लोमड़ी से कहो-मैं आज और कल नरकदूतों को निकालता और रोगियों को चंगा करता हूँ और तीसरे दिन मेरा कार्य समापन तक पहुँचा दिया जायेगा।

33 आज, कल और परसों मुझे यात्रा करनी है, क्योंकि यह हो नहीं सकता कि कोई नबी येरूसालेम के बाहर मरे।

34 “येरूसालेम! येरूसालेम! तू नबियों की हत्या करता और अपने पास भेजे हुए लोगों को पत्थरों से मार देता है। मैंने कितनी बार चाहा कि तेरी सन्तान को एकत्र कर लूँ, जैसे मुर्गी अपने चूज़ों को अपने डैनों के नीचे एकत्र कर लेती है, परन्तु तुम लोगों ने इनकार कर दिया।

35 देखो, तुम्हारा घर उजाड़ छोड़ दिया जायेगा। मैं तुम से कहता हूँ, तुम मुझे तब तक नहीं देखोगे, जब तक तुम यह न कहोगे, ’धन्य हैं वह, जो प्रभु के नाम पर आते हैं’!“