सामान्य काल
वर्ष का अठरावाँ रविवार
आज के संत: संत योहन मरिय वियानी पुरोहितों के संरक्षक


📙पहला पाठ : निर्गमन 16: 2-4, 12-15, 31

2 इस्राएलियों का सारा समुदाय मरूभूमि में मूसा और हारून के विरुद्ध भुनभुनाने लगा।
3 इस्राएलियों ने उन से कहा, ”हम जिस समय मिस्र देश में मांस की हड्डियों के सामने बैठते थे और इच्छा-भर रोटी खाते थे, यदि हम उस समय प्रभु के हाथ मर गये होते, तो कितना अच्छा होता! आप हम को इस मरूभूमि में इसलिए ले आये हैं कि हम सब-के-सब भूखों मर जायें।”
4 प्रभु ने मूसा से कहा, ”मैं तुम लोगों के लिए आकाश से रोटी बरसाऊँगा। लोग बाहर निकल कर प्रतिदिन एक-एक दिन का भोजन बटोर लिया करेंगे। मैं इस तरह उनकी परीक्षा लूँगा और देखूँगा कि वे मेरी संहिता का पालन करते हैं या नहीं।

12 ”मैं इस्राएलियों का भुनभुनाना सुन चुका हूँ। तुम उन से यह कहना-शाम को तुम लोग मांस खा सकोगे और सुबह इच्छा-भर रोटी। तब तुम जान जाओगे कि मैं,प्रभु तुम लोगों का ईश्वर हूँ।”
13 उसी शाम को बटेरों का झुण्ड उड़ता हुआ आया और छावनी पर बैठ गया और सुबह छावनी के चारों और कुहरा छाया रहा।
14 कुहरा दूर हो जाने पर मरुभूमि की ज़मीन पर पाले की तरह एक पतली दानेदार तह दिखाई पड़ी।
15 इस्राएली यह देखकर आपस में कहने लगे, ”मानहू” अर्थात् ”यह क्या है?” क्योंकि उन्हें मालूम नहीं था कि यह क्या था। मूसा ने उन से कहा, ”यह वही रोटी है, जिसे प्रभु तुम लोगों को खाने के लिए देता है।

31 इस्राएल के वंशजों ने उस रोटी का नाम मन्ना रखा। वह धनिये के बीज के समान सफ़ेद था और उसका स्वाद मधु के पुओं-जैसा था।


📘दूसरा पाठ: एफेसियों 4: 17, 20 – 24

17 मैं आप लोगों से यह कहता हूँ और प्रभु के नाम पर यह अनुरोध करता हूँ कि आप अब से गैर-यहूदियों-जैसा आचरण नहीं करें,

20 आप लोगों को मसीह से ऐसी शिक्षा नहीं मिली।

21 यदि आप लोगों ने उनके विषय में सुना और उस सत्य के अनुसार शिक्षा ग्रहण की है, जो ईसा में प्रकट हुई,

22 तो आप लोगों को अपना पहला आचरण और पुराना स्वभाव त्याग देना चाहिए, क्योंकि वह बहकाने वाली दुर्वासनाओं के कारण बिगड़ता जा रहा है।

23 आप लोग पूर्ण रूप से नवीन आध्यात्मिक विचारधारा अपनायें

24 और एक नवीन स्वभाव धारण करें, जिसकी सृष्टि ईश्वर के अनुसार हुई है और जो धार्मिकता तथा सच्ची पवित्रता में व्यक्त होता है।


📕 सुसमाचार : संत योहन 6: 24-35

24 जब उन्होंने देखा कि वहाँ न तो ईसा हैं और न उनके शिष्य ही, तो वे नावों पर सवार हुए और ईसा की खोज में कफरनाहूम चले गये।

25 उन्होंने समुद्र पार किया और ईसा को वहाँ पा कर उन से कहा, “गुरुवर! आप यहाँ कब आये?”

26 ईसा ने उत्तर दिया, “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – तुम चमत्कार देखने के कारण मुझे नहीं खोजते, बल्कि इसलिए कि तुम रोटियाँ खा कर तृप्त हो गये हो।

27 नश्वर भोजन के लिए नहीं, बल्कि उस भोजन के लिए परिश्रम करो, जो अनन्त जीवन तक बना रहता है और जिसे मानव पुत्र तुन्हें देगा ; क्योंकि पिता परमेश्वर ने मानव पुत्र को यह अधिकार दिया है।”

28 लोगों ने उन से कहा, “ईश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?”

29 ईसा ने उत्तर दिया, “ईश्वर की इच्छा यह है- उसने जिसे भेजा है, उस में विश्वास करो”।

30 लोगों ने उन से कहा, “आप हमें कौन सा चमत्कार दिखा सकते हैं, जिसे देख कर हम आप में विश्वास करें? आप क्या कर सकते हैं?

31 हमारे पुरखों ने मरुभूमि में मन्ना खाया था, जैसा कि लिखा है- उसने खाने के लिए उन्हें स्वर्ग से रोटी दी।”

32 ईसा ने उत्तर दिया, “मै तुम लोगों से यह कहता हूँ – मूसा ने तुम्हें जो दिया था, वह स्वर्ग की रोटी नहीं थी। मेरा पिता तुम्हें स्वर्ग की सच्ची रोटी देता है।

33 ईश्वर की रोटी तो वह है, जो स्वर्ग से उतर कर संसार को जीवन प्रदान करती है।”

34 लोगों ने ईसा से कहा, “प्रभु! आप हमें सदा वही रोटी दिया करें”।

35 उन्होंने उत्तर दिया, “जीवन की रोटी मैं हूँ। जो मेरे पास आता है, उसे कभी भूख नहीं लगेगी और जो मुझ में विश्वास करता है, उसे कभी प्यास नहीं लगेगी।