सामान्य काल
छब्बीसवाँ सप्ताह
आज के संत: संत फ्रांसिस असीसी धर्मवीर
📙 पहला पाठ: अय्यूब 38: 1,12 – 21; 40: 3-5
1 प्रभु ने आँधी में से अय्यूब को इस प्रकार उत्तर दिया:
12 क्या तुमने अपने सारे जीवन में कभी भोर को बुलाया अथवा उषा को उसका स्थान बतलाया?
13 क्या तुमने आदेश दिया कि वह पृथ्वी के छोरों को पकड़ कर झटका दे, जिससे दुष्ट जन उसके तल पर से लुप्त हो जायें?
14 मुहर लगने से जैसे मिट्टी बदलती है, उसी तरह पृथ्वी बदलती है और वस्त्र की तरह उस पर रंग चढ़ जाता है।
15 उषा दुष्टों से उनका प्रकाश छीन लेती है और उनका ऊपर उठा हुआ हाथ तोड़ देती है।
16 क्या तुम समुद्र के स्रोतों तक उतरे हो या गर्त्त के तल पर टहल चुके हो?
17 क्या तुम्हें मृत्यु के फाटक दिखाये गये? क्या तुमने अधोलोक के फाटक देखे?
18 क्या तुम को पृथ्वी के विस्तार का कुछ अनुमान है? यदि तुम जानते हो, तो यह सब मुझे बता दो।
19 प्रकाश के निवास का मार्ग कहाँ है और अन्धकार का आवास कहाँ है?
20 क्या तुम दोनों को उनके अपने स्थान की ओर, उनके अपने निवास के मार्ग पर ले जा सकते हो?
21 यदि तुम यह सब जानते हो, तो उन से पहले तुम्हारा जन्म हुआ था और तुम्हारे वर्षों की संख्या असीम है!
3 अय्यूब ने यह कहते हुए प्रभु को उत्तर दिया:
4 मैं कुछ भी नहीं हूँ। मैं तुझे क्या उत्तर दूँ! मैं होंठों पद अपनी उँगली रखता हूँ।
5 मैं एक बार बोला, मैं दुबारा उत्तर नहीं दूँगा; मैं दो बार बोला, मैं और कुछ नहीं कहूँगा।
📕 सुसमाचार: संत लूकस 10: 13-16
13 “धिक्कार तुझे, खोराजि़न! धिक्कार तुझे, बेथसाइदा! जो चमत्कार तुम में किये गये हैं, यदि वे तीरुस और सीदोन में किये गये होते, तो उन्होंने न जाने कब से टाट ओढ़ कर और भस्म रमा कर पश्चात्ताप किया होता।
14 इसलिए न्याय के दिन तुम्हारी दशा की अपेक्षा तीरुस और सिदोन की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।
15 और तू, कफ़रनाहूम! क्या तू स्वर्ग तक ऊँचा उठाया जायेगा? नहीं, तू अधोलोक तक नीचे गिरा दिया जायेगा?
16 “जो तुम्हारी सुनता है, वह मेरी सुनता है और जो तुम्हारा तिरस्कार करता है, वह मेरा तिरस्कार करता है। जो मेरा तिरस्कार करता है, वह उसका तिरस्कार करता है, जिसने मुझे भेजा है।”