सामान्य – काल

तेरहवाँ सप्ताह

आज की संत: संत अन्तोनी मेरी जकरिया पुरोहित संस्थापक

📒पहला पाठ: आमोस 8: 4-6, 9-12

4 तुम लोग मेरी यह बात सुनो, तुम जो दीन-हीन को रौंदते हो और देश के गरीबों को समाप्त कर देना चाहते हो।

5 तुम कहते हो, “अमावस का पर्व कब बीतेगा, जिससे हम अपना अनाज बेच सकें ? विश्राम का दिन कब बीतेगा, जिससे हम अपना गेहूँ बेच सकें? हम अनाज की नाप छोटी कर देंगे, रुपये का वजन बढ़ायेंगे और तराजू को खोटा बनायेंगे।

6 हम चाँदी के सिक्के से दरिद्र को खरीद लेंगे और जूतों की जोड़ी के दाम पर कंगाल को। हम गेहूँ का कचरा तक बेच देंगे।”

9 यह प्रभु की वाणी हैः “उस दिन मैं मध्यान्ह में ही सूर्य को डुबा दूँगा और दोपहर में ही पृथ्वी पर अन्धकार फेलाऊँगा।

10 मैं तुम्हारे पर्वों को शोक में और तुम्हारे गीतों को विलाप में बदल दूँगा। मैं सबों को टाट के कपड़े पहनाऊँगा और सबों के सिर का मुण्डन कराऊँगा। मैं इस देश को वही शोक दिलाऊँगा, जो एकलौते पुत्र के लिए होता है और इसका अन्तिम दिन बहुत कड़ा होगा।”

11 यह प्रभु की वाणी है: “वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस देश में भूख भेजूँगा- रोटी की भूख और पानी की प्यास नहीं, बल्कि प्रभु की वाणी सुनने की भूख और प्यास।

12 तब वे प्रभु की वाणी की खोज में एक समुद्र से दूसरे समुद्र तक दौड़ते फिरेंगे और उत्तर से पूर्व तक भटकते रहेंगे, किन्तु वे उसे कहीं भी नहीं पायेंगे।

📙सुसमाचार: संत मत्ती – 9: 9-13

9 ईसा वहाँ से आगे बढ़े। उन्होंने मत्ती नामक व्यक्ति को चुंगी-घर में बैठा हुआ देखा और उससे कहा, “मेरे पीछे चले आओ”, और वह उठ कर उनके पीछे हो लिया।

10 एक दिन ईसा अपने शिष्यों के साथ मत्ती के घर भोजन पर बैठे और बहुत-से नाकेदार और पापी आ कर उनके साथ भोजन करने लगे।

11 यह देख कर फ़रीसियों ने उनके शिष्यों से कहा, “तुम्हारे गुरु नाकेदारों और पापियों के साथ क्यों भोजन करते हैं?”

12 ईसा ने यह सुन कर उन से कहा, “निरोगियों को नहीं, रोगियों को वैद्य की ज़रूरत होती है।

13 जा कर सीख लो कि इसका क्या अर्थ है- मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ। मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूँ।”