सामान्य काल
इकतीसवाँ सप्ताह
आज की संत: संत बेर्टिल्ला, कुँवारी
📙 पहला पाठ: फिलिप्पियों 2: 5-11
5 आप लोग अपने मनोभावों को ईसा मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लें।
6 वह वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें,
7 फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद
8 मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया।
9 इसलिए ईश्वर ने उन्हें महान् बनाया और उन को वह नाम प्रदान किया, जो सब नामों में श्रेष्ठ है,
10 जिससे ईसा का नाम सुन कर आकाश, पृथ्वी तथा अधोलोक के सब निवासी घुटने टेकें
11 और पिता की महिमा के लिए सब लोग यह स्वीकार करें कि ईसा मसीह प्रभु हैं।
📕 सुसमाचार: संत लूकस 14: 15-24
15 साथ भोजन करने वालों में किसी ने यह सुन कर ईसा से कहा, “धन्य है वह, जो ईश्वर के राज्य में भोजन करेगा!”
16 ईसा ने उत्तर दिया, “किसी मनुष्य ने एक बड़े भोज का आयोजन किया और बहुत-से लोगों को निमन्त्रण दिया।
17 भोजन के समय उसने अपने सेवक द्वारा निमन्त्रित लोगों को यह कहला भेजा कि आइए, क्योंकि अब सब कुछ तैयार है।
18 लेकिन वे सभी बहाना करने लगे। पहले ने कहा, ’मैंने खेत मोल लिया है और मुझे उसे देखने जाना है। तुम से मेरा निवेदन है, मेरी ओर से क्षमा माँग लेना।’
19 दूसरे ने कहा, ’मैंने पाँच जोड़े बैल ख़रीदे हैं और उन्हें परखने जा रहा हूँ। तुम से मेरा निवेदन है, मेरी ओर से क्षमा माँग लेना।’
20 और एक ने कहा, “मैंने विवाह किया है, इसलिए मैं नहीं आ सकता’।
21 सेवक ने लौट कर यह सब स्वामी को बता दिया। तब घर के स्वामी ने क्रुद्ध हो कर अपने सेवक से कहा, ’शीघ्र ही नगर के बाज़ारों और गलियों में जा कर कंगालों, लूलों, अन्धों और लँगड़ों को यहाँ बुला लाओ’।
22 जब सेवक ने कहा, ’स्वामी! आपकी आज्ञा का पालन किया गया है; तब भी जगह है’,
23 तो स्वामी ने नौकर से कहा, ’सड़कों पर और बाड़ों के आसपास जा कर लोगों को भीतर आने के लिए बाध्य करो, जिससे मेरा घर भर जाये;
24 क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, उन निमन्त्रित लोगों में कोई भी मेरे भोजन का स्वाद नहीं ले पायेगा’।”