सामान्य काल
इकतीसवाँ सप्ताह
आज की संत: नोबलाक के संत लेओनार्ड, मठाध्यक्ष
📙 पहला पाठ: फिलिप्पियों 2: 12-18
12 प्रिय भाइयो! आप लोग सदा मेरी बात मानते रहे। अब मैं आप लोगों से दूर हूँ, इसलिए जिस समय मैं आपके साथ था, उस से कम नहीं, बल्कि और भी अधिक उत्साह से आप लोग डरते-काँपते हुए अपनी मुक्ति के कार्य में लगे रहें।
13 ईश्वर अपना प्रेमपूर्ण उद्देश्य पूरा करने के लिए आप लोगों में सदिच्छा भी उत्पन्न करता और उसके अनुसार कार्य करने का बल भी प्रदान करता है।
14 आप लोग भुनभुनाये और बहस किये बिना अपने सब कर्तव्य पूरा करें,
15 जिससे आप निष्कपट और निर्दोष बने रहें और इस कुटिल एवं पथभ्रष्ट पीढ़ी में ईश्वर की सच्ची सन्तान बन कर आकाश के तारों की तरह चमकें।
16 और संजीवन शिक्षा प्रदर्शित करते रहें। इस प्रकार मैं मसीह के आगमन के दिन इस बात पर गौरव कर सकूँगा कि मेरी दौड़-धूप मेरा परिश्रम व्यर्थ नहीं हुआ।
17 यदि मुझे आपके विश्वास-रूपी यज्ञ और धर्मसेवा में अपना रक्त भी बहाना पड़ेगा, तो आनन्दित होऊँगा और आप सबों के साथ आनन्द मनाऊँगा।
18 आप भी इसी कारण आनन्दित हों और मेरे साथ आनन्द मनायें।
📕 सुसमाचार: संत लूकस 14: 25-33
25 ईसा के साथ-साथ एक विशाल जन-समूह चल रहा था। उन्होंने मुड़ कर लोगों से कहा,
26 “यदि कोई मेरे पास आता है और अपने माता-पिता, पत्नी, सन्तान, भाई बहनों और यहाँ तक कि अपने जीवन से बैर नहीं करता, तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।
27 जो अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।
28 “तुम में ऐसा कौन होगा, जो मीनार बनवाना चाहे और पहले बैठ कर ख़र्च का हिसाब न लगाये और यह न देखे कि क्या उसे पूरा करने की पूँजी उसके पास है?
29 कहीं ऐसा न हो कि नींव डालने के बाद वह पूरा न कर सके और देखने वाले यह कहते हुए उसकी हँसी उड़ाने लगें,
30 ’इस मनुष्य ने निर्माण-कार्य प्रारम्भ तो किया, किन्तु यह उसे पूरा नहीं कर सका’।
31 “अथवा कौन ऐसा राजा होगा, जो दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो और पहले बैठ कर यह विचार न करे कि जो बीस हज़ार की फ़ौज के साथ उस पर चढ़ा आ रहा है, क्या वह दस हज़ार की फौज़ से उसका सामना कर सकता है?
32 यदि वह सामना नहीं कर सकता, तो जब तक दूसरा राजा दूर है, वह राजदूतों को भेज कर सन्धि के लिए निवेदन करेगा।
33 “इसी तरह तुम में जो अपना सब कुछ नहीं त्याग देता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।