सामान्य काल
अठरावाँ सप्ताह
आज के संत सिक्सतुस-11 पोप व साथी, शहीद संत कॅजेटन पुरोहित


📙पहला पाठ: यिरमियाह 31: 1-7

1 प्रभु की वाणी यह कहते हुए सुनाई पड़ी: “मैं उस समय इस्राएल के सब वंशों का ईश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा होंगे।“

2 प्रभु यह कहता है- “जो लोग तलवार से बच गये, उन्हें मरुभूमि में कृपा प्राप्त हुई। इस्राएल विश्राम की खोज में आगे़ बढ़ रहा था।

3 प्रभु उसे दूर से दिखाई पड़ा। “मैं अनन्त काल से तुम को प्यार करता आ रहा हूँ, इसलिए मेरी कृपादृष्टि निरन्तर तुम पर बनी रही।

4 कुमारी इस्राएल! मैं तुम्हें फिर बनाऊँगा और तुम्हारा नवनिर्माण हो जायेगा। तुम फिर हाथ में डफली ले कर गाने-बजाने वालों के साथ नाचोगी।

5 तुम फिर समारिया की पहाड़ियों पर दाखबारियाँ लगाओगी और जो उन्हें लगायेंगे, वे उनके फल खायेंगे।

6 वह दिन आ रहा है, जब एफ्रईम के पहाड़ी प्रदेश के पहरेदार पुकार कर यह कहेंगे- ’आओ! हम सियोन चलें, हम अपने प्रभु-ईश्वर के पास जायें।“

7 क्योंकि प्रभु यह कहता है- “याकूब के लिए आनन्द के गीत गाओ। जो राष्ट्रों में श्रेष्ठ है, उसका जयकार करो; उसका स्तुतिगान सुनाओ और पुकार कर कहो: ’प्रभु ने अपनी प्रजा का, इस्राएल के बचे हुए लोगों का उद्धार किया है’।


📕 सुसमाचार : संत मत्ती 15: 21-28

21 ईसा ने वहाँ से विदा हो कर तीरुस और सिदोन प्रान्तों के लिए प्रस्थान किया।

22 उस प्रदेश की एक कनानी स्त्री आयी और पुकार-पुकार कर कहती रही, “प्रभु! दाऊद के पुत्र! मुझ पर दया कीजिए। मेरी बेटी एक अपदूत द्वारा बुरी तरह सतायी जा रही है।”

23 ईसा ने उसे उत्तर नहीं दिया। उनके शिष्यों ने पास आ कर उन से यह निवेदन किया, “उसकी बात मान कर उसे विदा कर दीजिए, क्योंकि वह हमारे पीछे-पीछे चिल्लाती आ रही है”।

24 ईसा ने उत्तर दिया, “मैं केवल इस्राएल  के घराने की खोयी हुई भेड़ों के पास भेजा गया हूँ”।

25  इतने में उस स्त्री ने आ कर ईसा को दण्डवत् किया और कहा, “प्रभु! मेरी सहायता कीजिए”।

26 ईसा ने उत्तर दिया, “बच्चों की रोटी ले कर पिल्लों के सामने डालना ठीक नहीं है”।

27 उसने कहा, “जी हाँ, प्रभु! फिर भी स्वामी की मेज़ से गिरा हुआ चूर पिल्ले खाते ही हैं”।

28 इस पर ईसा ने उत्तर  दिया, “नारी! तुम्हारा विश्वास महान् है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो” और उसी क्षण उसकी बेटी अच्छी हो गयी।