सामान्य काल
सत्ताईसवाँ सप्ताह
आज की संत: माला-विनती की माता मरियम
📙 पहला पाठ: गलातियों 1: 6-12
6 मुझे आश्चर्य होता है कि जिसने आप लोगों को मसीह के अनुग्रह द्वारा बुलाया, उसे आप इतना शीघ्र त्याग कर एक दूसरे सुसमाचार के अनुयायी बन गये हैं।
7 दूसरा तो है ही नहीं, किन्तु कुछ लोग आप में अशान्ति उत्पन्न करते और मसीह का सुसमाचार विकृत करना चाहते हैं।
8 लेकिन जो सुसमाचार मैंने आप को सुनाया, यदि कोई- चाहे वह मैं स्वयं या कोई स्वर्गदूत ही क्यों न हो- उस से भिन्न सुसमाचार सुनाये, तो वह अभिशप्त हो!
9 मैं जो कह चुका हूँ, वही दुहराता हूँ- जो सुसमाचार आप को मिला है, यदि कोई उस से भिन्न सुसमाचार सुनाये, तो वह अभिशप्त हो!
10 मैं अब किसका कृपापात्र बनने की कोशिश कर रहा हूँ – मनुष्यों का अथवा ईश्वर का? क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता हूँ? यदि मैं अब तक मनुष्यों को प्रसन्न करना चाहता, तो मैं मसीह का सेवक नहीं होता।
11 भाइयो! मैं आप लोगों को विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने जो सुसमाचार सुनाया, वह मनुष्य-रचित नहीं है।
12 मैंने किसी मनुष्य से उसे न तो ग्रहण किया और न सीखा, बल्कि उसे ईसा मसीह ने मुझ पर प्रकट किया।
📕 सुसमाचार: संत लूकस 10: 25-37
25 किसी दिन एक शास्त्री आया और ईसा की परीक्षा करने के लिए उसने यह पूछा, “गुरूवर! अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?”
26 ईसा ने उस से कहा, “संहिता में क्या लिखा है?” तुम उस में क्या पढ़ते हो?”
27 उसने उत्तर दिया, “अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो”।
28 ईसा ने उस से कहा, “तुमने ठीक उत्तर दिया। यही करो और तुम जीवन प्राप्त करोगे।”
29 इस पर उसने अपने प्रश्न की सार्थकता दिखलाने के लिए ईसा से कहा, “लेकिन मेरा पड़ोसी कौन है?”
30 ईसा ने उसे उत्तर दिया, “एक मनुष्य येरूसालेम से येरीख़ो जा रहा था और वह डाकुओं के हाथों पड़ गया। उन्होंने उसे लूट लिया, घायल किया और अधमरा छोड़ कर चले गये।
31 संयोग से एक याजक उसी राह से जा रहा था और उसे देख कर कतरा कर चला गया।
32 इसी प्रकार वहाँ एक लेवी आया और उसे देख कर वह भी कतरा कर चला गया।
33 इसके बाद वहाँ एक समारी यात्री आया और उसे देख कर उस को तरस हो आया।
34 वह उसके पास गया और उसने उसके घावों पर तेल और अंगूरी डाल कर पट्टी बाँधी। तब वह उसे अपनी ही सवारी पर बैठा कर एक सराय ले गया और उसने उसकी सेवा शुश्रूषा की।
35 दूसरे दिन उसने दो दीनार निकाल कर मालिक को दिये और उस से कहा, ’आप इसकी सेवा-शुश्रूषा करें। यदि कुछ और ख़र्च हो जाये, तो मैं लौटते समय आप को चुका दूँगा।’
36 तुम्हारी राय में उन तीनों में कौन डाकुओं के हाथों पड़े उस मनुष्य का पड़ोसी निकला?”
37 उसने उत्तर दिया, “वही जिसने उस पर दया की”। ईसा बोले, “जाओ, तुम भी ऐसा करो”।