सामान्य काल

नवाँ सप्ताह

धन्य कुँवारी मरियम का निष्कलंक हृदय

📒पहला पाठ: 2 तिमथी 4: 1-8

1 मैं ईश्वर को और जीवितों तथा मृतकों के न्यायकर्ता ईसा मसीह को साक्षी बना कर मसीह के पुनरागमन तथा उनके राज्य के नाम पर तुम से यह अनुरोध करता हूँ-

2 सुसमाचार सुनाओ, समय-असमय लोगों से आग्रह करते रहो। बड़े धैर्य से तथा शिक्षा देने के उद्देश्य से लोगों को समझाओ, डाँटो और ढारस बँधाओ;

3 क्योंकि वह समय आ रहा है, जब लोग हितकारी शिक्षा नहीं सुनेंगे, बल्कि मनमाना आचरण करेंगे और अपने पास चाटुकार उपदेशकों की भीड़ जमा करेंगे।

4 वे सच्चाई के प्रति अपने कान बन्द करेंगे और कल्पित कथाओं के पीछे दौड़ेंगे।

5 परन्तु तुम सब बातों में सन्तुलित बने रहो, धैर्य से कष्ट सहो, सुसमाचार के प्रचार में लगे रहो और अपने सेवा-कार्य के सब कर्तव्य पूरे करते जाओ।

6 मैं प्रभु को अर्पित किया जा रहा हूँ। मेरे चले जाने का समय आ गया है।

7 मैं अच्छी लड़ाई लड़ चुका हूँ, अपनी दौड़ पूरी कर चुका हूँ और पूर्ण रूप से ईमानदार रहा हूँ।

8 अब मेरे लिए धार्मिकता का वह मुकुट तैयार है, जिसे न्यायी विचारपति प्रभु मुझे उस दिन प्रदान करेंगे – मुझ को ही नहीं, बल्कि उन सब को, जिन्होंने प्रेम के साथ उनके प्रकट होने के दिन की प्रतीक्षा की है।

📙सुसमाचार : संत लूकस 2: 41-51

41 ईसा के माता-पिता प्रति वर्ष पास्का पर्व के लिए येरूसालेम जाया करते थे।

42 जब बालक बारह बरस का था, तो वे प्रथा के अनुसार पर्व के लिए येरूसालेम गये।

43 पर्व समाप्त हुआ और वे लौट पडे़; परन्तु बालक ईसा अपने माता-पिता के अनजाने में येरूसालेम में रह गया।

44 वे यह समझ रहे थे कि वह यात्रीदल के साथ है; इसलिए वे एक दिन की यात्रा पूरी करने के बाद ही उसे अपने कुटुम्बियों और परिचितों के बीच ढूँढ़ते रहे।

45 उन्होंने उसे नहीं पाया और वे उसे ढूँढ़ते-ढूँढ़ते येरूसालेम लौटे।

46 तीन दिनों के बाद उन्होंने ईसा को मन्दिर में शास्त्रियों के बीच बैठे, उनकी बातें सुनते और उन से प्रश्न करते पाया।

47 सभी सुनने वाले उसकी बुद्धि और उसके उत्तरों पर चकित रह जाते थे।

48 उसके माता-पिता उसे देख कर अचम्भे में पड़ गये और उसकी माता ने उस से कहा “बेटा! तुमने हमारे साथ ऐसा क्यों किया? देखो तो, तुम्हारे पिता और मैं दुःखी हो कर तुम को ढूँढते रहे।“

49 उसने अपने माता-पिता से कहा, “मुझे ढूँढ़ने की ज़रूरत क्या थी? क्या आप यह नहीं जानते थे कि मैं निश्चय ही अपने पिता के घर होऊँगा?“

50 परन्तु ईसा का यह कथन उनकी समझ में नहीं आया।

51 ईसा उनके साथ नाज़रेत गये और उनके अधीन रहे। उनकी माता ने इन सब बातों को अपने हृदय में संचित रखा।

52 ईसा की बुद्धि और शरीर का विकास होता गया। वह ईश्वर तथा मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ते गये।