आगमन काल
दूसरा सप्ताह
आज की संत: धन्य कुँ. मरियम का निष्कलंक गर्भागमन

📙 पहला पाठ: उत्पत्ति 3: 9-15,20

9 प्रभु-ईश्वर ने आदम से पुकार कर कहा, “तुम कहाँ हो?’’
10 उसने उत्तर दिया, “मैं बगीचे में तेरी आवाज सुन कर डर गया, क्योंकि में नंगा हूँ और मैं छिप गया’’।
11 प्रभु ने कहा, “किसने तुम्हें बताया कि तुम नंगे हो? क्या तुमने उस वृक्ष का फल खाया, जिस को खाने से मैंने तुम्हें मना किया था?’’
12 मनुष्य ने उत्तर दिया, “मेरे साथ रहने कि लिए जिस स्त्री को तूने दिया, उसी ने मुझे फल दिया और मैंने खा लिया’’।
13 प्रभु-ईश्वर ने स्त्री से कहा, “तुमने क्या किया है?’’ और उसने उत्तर दिया, “साँप ने मुझे बहका दिया और मैंने खा लिया’’।
14 तब ईश्वर ने साँप से कहा, “चूँकि तूने यह किया है, तू सब घरेलू तथा जंगली जानवरों में शापित होगा। तू पेट के बल चलेगा और जीवन भर मिट्टी खायेगा।
15 मैं तेरे और स्त्री के बीच, तेरे वंश और उसके वंश में शत्रुता उत्पन्न करूँगा। वह तेरा सिर कुचल देगा और तू उसकी एड़ी काटेगा’’।

20 पुरुष ने अपनी पत्नी का नाम ‘हेवा’ रखा, क्योंकि वह सभी मानव प्राणियों की माता है।
📘 दूसरा पाठ: एफेसियों 1: 3-6, 11-12

3 धन्य है हमारे प्रभु ईसा मसीह का ईश्वर और पिता! उसने मसीह द्वारा हम लोगों को स्वर्ग के हर प्रकार के आध्यात्मिक वरदान प्रदान किये हैं।

4 उसने संसार की सृष्टि से पहले मसीह में हम को चुना, जिससे हम मसीह से संयुक्त हो कर उसकी दृष्टि में पवित्र तथा निष्कलंक बनें।

5 उसने प्रेम से प्रेरित हो कर आदि में ही निर्धारित किया कि हम ईसा मसीह द्वारा उसके दत्तक पुत्र बनेंगे। इस प्रकार उसने अपनी मंगलमय इच्छा के अनुसार

6 अपने अनुग्रह की महिमा प्रकट की है। वह अनुग्रह हमें उसके प्रिय पुत्र द्वारा मिला है,

11 (11-12 ईश्वर सब बातों में अपने मन की योजना पूरी करता है। उसके अनुसार उसने निर्धारित किया है कि हम (यहूदी मसीह द्वारा बुलाये जायें और हम लोगों के कारण उसकी महिमा की स्तुति हो। हम लोगों ने तो सब से पहले मसीह पर भरोसा रखा था।


📕 सुसमाचार: संत लूकस 1: 26-38

26 छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाज़रेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,

27 जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ़ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।

28 स्वर्गदूत ने उसके यहाँ अन्दर आ कर उससे कहा, “प्रणाम, प्रभु की कृपापात्री! प्रभु आपके साथ है।”

29 वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।

30 तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, “मरियम ! डरिए नहीं।आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।

31 देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।

32 वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,

33 वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।”

34 पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, “यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।”

35 स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, “पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।

36 देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;

37 क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।”

38 मरियम ने कहा, “देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।” और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।