सामान्य – काल
पाँचवाँ सप्ताह
आज की संत: संत अपोल्लोनिया कुँवारी
📒 पहला पाठ: राजाओं का पहला ग्रन्थ 11: 29 – 32, 12,19
29 यरोबआम किसी दिन येरूसालेम से निकल कर कहीं जा रहा था कि रास्तें में उसे शिलो का नबी अहीया मिला। वे दोनों मैदान में अकेले थे।
30 अहीया एक नयी चादर पहने हुए था। उसने अपनी चादर के बारह टुकड़े किये
31 और यरोबआम से कहा, “दस टुकड़े ले लो; क्योंकि इस्राएल का प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं सुलेमान के राज्य के दस वंश उसके हाथ से छीन कर तुम्हें देता हूँ।
32 मेरे सेवक दाऊद और उस येरूसालेम के कारण जिसे मैंने इस्राएल के सब वंशों में से चुना था, वह एक ही वंश रख सकता है।
19 इस प्रकार इस्राएल दाऊद के घराने से अलग हो गया और आज तक ऐसा ही है।
📙 सुसमाचार : सन्त मारकुस: 7: 31 – 37
31 ईसा तीरूस प्रान्त से चले गये। वे सिदोन हो कर और देकापोलिस प्रान्त पार कर गलीलिया के समुद्र के पास पहुँचे।
32 लोग एक बहरे-गूँगे को उनके पास ले आये और उन्होंने यह प्रार्थना की कि आप उस पर हाथ रख दीजिए।
33 ईसा ने उसे भीड़ से अलग एकान्त में ले जा कर उसके कानों में अपनी उँगलियाँ डाल दीं और उसकी जीभ पर अपना थूक लगाया।
34 फिर आकाश की ओर आँखें उठा कर उन्होंने आह भरी और उससे कहा, “एफ़ेता”, अर्थात् “खुल जा”।
35 उसी क्षण उसके कान खुल गये और उसकी जीभ का बन्धन छूट गया, जिससे वह अच्छी तरह बोला।
36 ईसा ने लोगों को आदेश दिया कि वे यह बात किसी से नहीं कहें, परन्तु वे जितना ही मना करते थे, लोग उतना ही इसका प्रचार करते थे।
37 लोगों के आश्चर्य की सीमा न रही। वे कहते थे, “वे जो कुछ करते हैं, अच्छा ही करते है। वे बहरों को कान और गूँगों को वाणी देते हैं।”