सामान्य – काल
पहला सप्ताह
आज के संत: कैन्टबरी के संत एड्रिएन
📒 पहला पाठ: समूएल का पहला ग्रन्थ 1:9-20
9 किसी दिन जब अन्ना का परिवार शिलो में भोजन कर चुका था, तो वह उठ कर प्रभु के मन्दिर गयी। उस समय याजक एली मन्दिर के द्वार के पास अपने आसन पर बैठा हुआ था। ।
10 अन्ना दुःखी हो कर प्रभु से प्रार्थना करती थी और आँसू बहाती हुई
11 उसने यह प्रतिज्ञा की, “विश्वमण्डल के प्रभु! यदि तू अपनी दासी की दयनीय दशा देख कर उसकी सुधि लेगा, यदि तू अपनी दासी को नहीं भुलायेगा और उसे पुत्र प्रदान करेगा, तो मैं उसे जीवन भर के लिए प्रभु को अर्पित करूँगी और कभी उसके सिर पर उस्तरा नहीं चलाया जायेगा।
12 जब वह बहुत देर तक प्रभु से प्रार्थना करती रही, तो एली उसका मुख देखने लगा।
13 और धीमे स्वर से बोलती थी। उसके होंठ तो हिल रहे थे, किन्तु उसकी आवाज नहीं सुनाई दे रही थी। इसलिए एली को लगा कि वहनशे में है।
14 उसने उस से कहा, “कब तकनशे में रहोगी! जाओ और नषा उतरने दो।”
15 अन्ना ने यह उत्तर दिया, “महोदय! ऐसी बात नहीं है। मैं बहुत अधिक दुःखी हूँ। मैंने न तो अंगूरी पी और न कोई दूसरी नशीली चीज़। मैं प्रभु के सामने अपना हृदय खोल रही थी।
16 अपनी दासी को बदचलन न समझें- मैं दुःख और शोक से व्याकुल हो कर इतनी देर तक प्रार्थना करती रही।”
17 एली ने उस से कहा, “शान्ति ग्रहण कर जाओ। इस्राएल का प्रभु तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करे!”
18 इस पर अन्ना यह उत्तर दे कर चली गयी, “आपकी कृपा- दृष्टि आपकी दासी पर बनी रहे।” उसने भोजन किया और उसकी उदासी दूर हो गयी।
19 दूसरे दिन वे सबेरे उठे और प्रभु की आराधना करने के बाद रामा में अपने घर लौट गये। एल्काना का अपनी पत्नी अन्ना से संसर्ग हुआ और प्रभु ने उसे याद किया।
20 अन्ना गर्भवती हो गयी। उसने पुत्र प्रसव किया और यह कह कर उसका नाम समूएल रखा, “क्योंकि मैंने उस को प्रभु से माँगा है।”
📙 सुसमाचार: संत मारकुस 1: 21-28
21 वे कफ़नाहूम आये। जब विश्राम दिवस आया, तो ईसा सभागृह गये और शिक्षा देते रहे।
22 लोग उनकी शिक्षा सुनकर अचम्भे में पड़ जाते थे; क्योंकि वे शास्त्रियों की तरह नहीं, बल्कि अधिकार के साथ शिक्षा देते थे।
23 सभागृह में एक मनुष्य था, जो अशुद्ध आत्मा के वश में था। वह ऊँचे स्वर से चिल्लाया,
24 “ईसा नाज़री! हम से आप को क्या? क्या आप हमारा सर्वनाश करने आये हैं? मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं- ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष।”
25 ईसा ने यह कहते हुए उसे डाँटा, “चुप रह! इस मनुष्य से बाहर निकल जा”।
26 अपदूत उस मनुष्य को झकझोर कर ऊँचे स्वर से चिल्लाते हुए उस से निकल गया।
27 सब चकित रह गये और आपस में कहते रहे, “यह क्या है? यह तो नये प्रकार की शिक्षा है। वे अधिकार के साथ बोलते हैं। वे अशुद्ध आत्माओं को भी आदेश देते हैं और वे उनकी आज्ञा मानते हैं।”
28 ईसा की चर्चा शीघ्र ही गलीलिया प्रान्त के कोने-कोने में फैल गयी।