चालीसा – काल
तीसरा सप्ताह
आज के संत: रोम की संत फ्राँसिस्का
📒 पहला पाठ: होशेआ का ग्रन्थ 6: 1 – 6
1 ” आओ! हम प्रभु के पास लौटें। उसने हम को घायल किया, वही हमें चंगा करेगा; उसने हम को मारा है, वही हमारे घावों पर पट्टी बाँधेगा।
2 वह हमें दो दिन बाद जिलायेगा; तीसरे दिन वह हमें उठोयेगा और हम उसके सामने जीवित रहेंगे।
3 आओ! हम प्रभु का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयत्न करें। उसका आगमन भोर की तरह निश्चित है। वह पृथ्वी को सींचने वाली हितकारी वर्षा की तरह हमारे पास आयेगा।”
4 एफ्राईम! मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? यूदा! मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ? तुम्हारा प्रेम भोर के कोहरे के समान है, ओस के समान, जो शीघ्र ही लुप्त हो जाती है।
5 इसलिए मैंने नबियों द्वारा तुम्हें घायल किया। अपने मुख के शब्दों द्वारा तुम्हें मारा है;
6 क्योंकि मैं बलिदान की अपेक्षा प्रेम और होम की अपेक्षा ईश्वर का ज्ञान चाहता हूँ।
📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 18: 9 – 14
9 कुछ लोग बड़े आत्मविश्वास के साथ अपने को धर्मी मानते और दूसरों को तुच्छ समझते थे। ईसा ने ऐसे लोगों के लिए यह दृष्टान्त सुनाया,
10 “दो मनुष्य प्रार्थना करने मन्दिर गये, एक फ़रीसी और दूसरा नाकेदार।
11 फ़रीसी तन कर खड़ा हो गया और मन-ही-मन इस प्रकार प्रार्थना करता रहा, ’ईश्वर! मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ कि मैं दूसरे लोगों की तरह लोभी, अन्यायी, व्यभिचारी नहीं हूँ और न इस नाकेदार की तरह ही।
12 मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूँ और अपनी सारी आय का दशमांश चुका देता हूँ।’
13 नाकेदार कुछ दूरी पर खड़ा रहा। उसे स्वर्ग की ओर आँख उठाने तक का साहस नहीं हो रहा था। वह अपनी छाती पीट-पीट कर यह कह रहा था, ‘ईश्वर! मुझ पापी पर दया कर’।
14 मैं तुम से कहता हूँ – वह नहीं, बल्कि यही पापमुक्त हो कर अपने घर गया। क्योंकि जो अपने को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा; परन्तु जो अपने को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा।”