सामान्य काल
इकतीसवाँ सप्ताह
लातेरन महामन्दिर का प्रतिष्ठान पर्व-दिवस

📙 पहला पाठ: एजेकिएल 47: 1-2, 8-9,-12

1 वह मुझे मंदिर के द्वार पर वापस ले आया। वहाँ मैंने देखा कि मन्दिर की देहली के नीचे से पूर्व की ओर जल निकल कर बह रहा है, क्योंकि मन्दिर का मुख पूर्व की ओर था। जल वेदी के दक्षिण में मन्दिर के दक्षिण पाश्र्व के नीचे से बह रहा था।

2 वह मुझे उत्तरी फाटक से बाहर-बाहर घुमा कर पूर्व के बाह्य फाटक तक ले गया। वहाँ मैंने देखा कि जल दक्षिण पाश्र्व से टपक रहा है।

8 उसने मुझ से कहा, “यह जल पूर्व की ओर बह कर अराबा घाटी तक पहुँचता और समुद्र में गिरता है। यह उस समुद्र के खारे पानी को मीठा बना देता है।

9 यह नदी जहाँ कहीं गुज़रती है, वहाँ पृथ्वी पर विचरने वाले प्राणियों को जीवन प्रदान करती है। वहाँ बहुत-सी मछलिया पाय जायेंगी, क्योंकि वह धारा समुद्र का पानी मीठा कर देती है। और जहाँ कहीं भी पहुचती है, जीवन प्रदान करती है।

12 नदी के दोनों तटों पर हर प्रकार के फलदार पेड़े उगेंगे- उनके पत्ते नहीं मुरझायेंगें और उन पर कभी फलों की कमी नहीं होगी। वे हर महीने नये फल उत्पन्न करेंगे; क्योंकि उनका जल मंदिर से आता है। उनके फल भोजन और उनके पत्ते दवा के काम आयेंगे।


📘 दूसरा पाठ: कुरिन्थियों 3: 9-11,16-17

📕 सुसमाचार: संत योहन 2: 13-22

13 यहूदियों का पास्का पर्व निकट आने पर ईसा येरूसालेम गये।

14 उन्होंने मन्दिर में बैल, भेड़ें और कबूतर बेचने वालों को तथा अपनी मेंज़ों के सामने बैठे हुए सराफों को देखा।

15 उन्होंने रस्सियों का कोड़ा बना कर भेड़ों और बेलों-सहित सब को मन्दिर से बाहर निकाल दिया, सराफों के सिक्के छितरा दिये, उनकी मेजे़ं उलट दीं

16 और कबूतर बेचने वालों से कहा, “यह सब यहाँ से हटा ले जाओ। मेरे पिता के घर को बाजार मत बनाओ।”

17 उनके शिष्यों को धर्मग्रन्थ का यह कथन याद आया- तेरे घर का उत्साह मुझे खा जायेगा।

18 यहूदियों ने ईसा से कहा, “आप हमें कौन-सा चमत्कार दिखा सकते हैं, जिससे हम यह जानें कि आप को ऐसा करने का अधिकार है?”

19 ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, “इस मन्दिर को ढा दो और मैं इसे तीन दिनों के अन्दर फिर खड़ा कर दूँगा”।

20 इस पर यहूदियों ने कहा, “इस मंदिर के निर्माण में छियालीस वर्ष लगे, और आप इसे तीन दिनों के अन्दर खड़ा कर देंगे?”

21 ईसा तो अपने शरीर के मन्दिर के विषय में कह रहे थे।

22 जब वह मृतकों में से जी उठे, तो उनके शिष्यों को याद आया कि उन्होंने यह कहा था; इसलिए उन्होंने धर्मग्रन्ध और ईसा के इस कथन पर विश्वास किया।