जुलाई 31, 2023, सोमवार के पाठ

वर्ष का सत्रहवाँ सामान्य सप्ताह

📒पहला पाठ: निर्गमन ग्रन्थ 32: 15-24, 30-34

15) मूसा विधान की दोनों पाटियाँ हाथ में लिये पर्वत से उतर कर लौटा। पाटियों पर सामने और पीछे, दोनों ओर लेख अंकित थे।

16) वे पाटियाँ ईश्वर की बनायी हुई थीं और उन पर जो लिपि अंकित थी, वह ईश्वर की अपनी लिपि थी।

17) योशुआ ने लोगों का कोलाहल सुन कर मूसा से कहा, शिविर में से लड़ाई जैसी आवाज़ आ रही है।

18) उसने उत्तर दिया, ”यह न तो विजेताओं का उल्लास है और न पराजितों का विलाप। मैं तो गाने की आवाज़ सुन रहा हूँ।”

19) शिविर के पास पहुँच कर मूसा ने बछड़े की प्रतिमा और लोगों का नृत्य देखा। उसका क्रोध भड़क उठा और उसने अपने हाथ की पाटियों को पहाड़ के निचले भाग पर पटक कर टुकड़े-टुकड़े कर दिये।

20) उसने लोगों का बनाया हुआ बछड़ा ले कर जला दिया। उसने उसकी राख पीस कर चूर-चूर कर डाली और उसे पानी में छिड़क कर इस्राएलियों को पिला दिया।

21) तब मूसा ने हारून से पूछा, ”इन लोगों ने तुम्हारे साथ कौन-सा अन्याय किया, जो तुमने इन्हें इतने घोर पाप में डाल दिया हैं?”

22) हारून ने उत्तर दिया, ”महोदय आप क्रोध न करें। आप जानते ही हैं कि इन लोगों का झुकाव पाप की ओर है।

23) इन्होंने मुझ से कहा, “हमारे लिए एक ऐसा देवता बनाइए, जो हमारे आगे-आगे चले, क्योंकि हम नहीं जानते कि जो मनुष्य हम को मिस्र से निकाल लाया, उस मूसा का क्या हुआ।

24) तब मैंने इन से कहा, ”जिसके पास सोने के आभूषण हों, वे उन्हें उतार कर ला दें उन्होंने मुझे सोना ला दिया। मैंने उसे आग में डाला और इस प्रकार यह बछड़ा बन गया।”

30) दूसरे दिन मूसा ने इस्राएलियों से कहा, ”तुम लोगों ने घोर पाप किया है। मैं अब पर्वत पर प्रभु के पास जा रहा हूँ। यदि हो सका, तो मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित करूँगा।”

31) मूसा ने प्रभु के पास आ कर कहा, हाय; इन लोगों ने घोर पाप किया है। इन्होंने अपने लिए सोने का देवता बनाया है।

32) ओह; यदि तू इन्हें क्षमा कर दे; नहीं तो, मेरा नाम अपनी लिखी हुई पुस्तक से निकाल दे।

33) प्रभु ने उत्तर दिया, ”जिसने मेरे विरुद्ध पाप किया है, उसी को मैं अपनी पुस्तक से निकाल दूँगा।

34) अब तुम जा कर लोगों को उस स्थान ले चलो, जिसे मैंने तुम्हें बताया हैं। मेरा दूत तुम्हारे आग-आगे चलेगा। जब दण्ड देने का दिन आयेगा, तब मैं लोगों को उनके पाप का दण्ड दूँगा।”

📘सुसमाचार: मत्ती 13: 31-35

31) ईसा ने उनके सामने एक और दृष्टान्त प्रस्तुत किया, “स्वर्ग का राज्य राई के दाने के सदृश है, जिसे ले कर किसी मनुष्य ने अपने खेत में बोया।

32) वह तो सब बीजों से छोटा है, परन्तु बढ़ कर सब पोधों से बड़ा हो जाता है और ऐसा पेड़ बनता है कि आकाश के पंछी आ कर उसकी डालियों में बसेरा करते हैं।”

33) ईसा ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया,”स्वर्ग का राज्य उस ख़मीर के सदृश है, जिसे लेकर किसी स्त्री ने तीन पंसेरी आटे में मिलाया और सारा आटा खमीर हो गया”।

34) ईसा दृष्टान्तों में ही ये सब बातें लोगों को समझाते थे। वह बिना दृष्टान्त के उन से कुछ नहीं कहते थे,

35) जिससे नबी का यह कथन पूरा हो जाये- मैं दृष्टान्तों में बोलूँगा। पृथ्वी के आरम्भ से जो गुप्त रहा, उसे मैं प्रकट करूँगा।