आगमन का तीसरा सप्ताह, गुरुवार
📒 पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 54:1-10
1) “बन्ध्या! तुझे कभी पुत्र नहीं हुआ। अब आनन्द मना। तूने प्रसवपीड़ा का अनुभव नहीं किया। उल्लास के गीत गा, क्योंकि प्रभु यह कहता है, -’विवाहिता की अपेक्षा परित्यक्ता के अधिक पुत्र होंगे।’
2) “अपने शिविर का क्षेत्र बढ़ा। अपने तम्बू के कपड़े फैला। उसके रस्से और लम्बे कर। उसकी खूँटियाँ और दृढ़ कर;
3) क्योंकि तू दायें और बायें फैलेगी। तेरा वंश राष्ट्रों को अपने अधीन करेगा और तेरी सन्तति उजाड़ नगरों में बस जायेगी।
4) “डर मत- तुझे निराशा नही होगी। घबरा मत- तुझे लज्जित नहीं होना पड़ेगा। तू अपनी तरुणाई का कलंक भूल जायेगी, तुझे अपने विधवापन की निन्दा याद नहीं रहेगी।
5) “तेरा सृष्टिकर्ता ही तेरा पति है। उसका नाम है- विश्वमण्डल का प्रभु। इस्राएल का परमपावन ईश्वर तेरा उद्धार करता है। वह समस्त पृथ्वी का ईश्वर कहलाता है।
6) “परित्यक्ता स्त्री की तरह दुःख की मारी! प्रभु तुझे वापस बुलाता है। क्या कोई अपनी तरुणाई की पत्नी को भुला सकता है?“ यह तेरे ईश्वर का कथन है।
7) “मैंने थोड़ी ही देर के लिए तुझे छोड़ा था। अब मैं तरस खा कर, तुझे अपने यहाँ ले जाऊँगा।
8) मैंने क्रेाध के आवेश में क्षण भर तुझ से मुँह फेर लिया था। अब मैं अनन्त प्रेम से तुझ पर दया करता रहूँगा।“ यह तेरे उद्धारकर्ता ईश्वर का कथन है।
9) “नूह के समय मैंने शपथ खा कर कहा था कि प्रलय की बाढ़ फिर पृथ्वी पर नहीं आयेगी। उसी तरह मैं शपथ खा कर कहता हूँ कि मैं फिर तुझ पर क्रोध नहीं करूँगा और फिर तुझे धमकी नहीं दूँगा।
10) “चाहे पहाड़ टल जायें और पहाड़ियाँ डाँवाडोल हो जायें, किन्तु तेरे प्रति मेरा प्रेम नहीं टलेगा और तेरे लिए मेरा शान्ति-विधान नहीं डाँवाडोल होगा।“ यह तुझ पर तरस खाने वाले प्रभु का कथन है।
📙 सुसमाचार : लूकस 7:24-30
24) योहन द्वारा भेजे हुए शिष्यों के चले जाने के बाद ईसा लोगों से योहन के विषय में कहने लगे, “तुम निर्जन प्रदेश में क्या देखने गये थे? हवा से हिलते हुए सरकण्डे को? नहीं!
25) तो, तुम क्या देखने गये थे? बढि़या कपड़े पहने मनुष्य को? नहीं! कीमती वस्त्र पहनने वाले और भोग-विलास में जीवन बिताने वाले महलों में रहते हैं।
26) आखि़र तुम क्या देखने निकले थे? किसी नबी को? निश्चय ही! मैं तुम से कहता हूँ, – नबी से भी महान् व्यक्ति को।
27) यह वही है, जिसके विषय में लिखा है-देखो, मैं अपने दूत को तुम्हारे आगे भेजता हूँ। वह तुम्हारा मार्ग तैयार करेगा।
28) मैं तुम से कहता हूँ, मनुष्यों में योहन बपतिस्ता से बड़ा कोई नहीं। फिर भी, ईश्वर के राज्य में जो सब से छोटा है, वह योहन से बड़ा है।
29) “सारी जनता और नाकेदारों ने भी योहन की बात सुन कर और उसका बपतिस्मा ग्रहण कर ईश्वर की इच्छा पूरी की,
30) परन्तु फ़रीसियों और शास्त्रियों ने उसका बपतिस्मा ग्रहण नहीं कर अपने विषय में ईश्वर का आयोजन व्यर्थ कर दिया।