प्रवक्ता ग्रन्थ

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अध्याय 21

1 पुत्र! क्या तुमने पाप किया है? तो फिर ऐसा मत करो और अपने पुराने पापों के लिए क्षमा माँगो।

2 साँप के सामने की तरह पाप से दूर भाग जाओ। यदि पास आओगे, तो वह तुम को काटेगा।

3 उसके दाँत सिंह के दांँतों-जैसे हैं; वे मनुष्य की आत्माओें का विनाश करते हैं।

4 प्रत्येक अपराध दुधारी तलवार-जैसा हैः उसके घाव का इलाज नहीं होता।

5 डाँट-डपट और अक्खड़पन सम्पत्ति का विनाश करते हैं; इनके द्वारा घमण्डी का घर उजाड़ा जाता है।

6 दरिद्र की प्रार्थना सीधे ईश्वर के कान तक पहुँचती है; उसे शीघ्र ही न्याय दिलाया जायेगा।

7 जो सुधार नापसन्द करता, वह पापी के मार्ग पर चलता है; किन्तु जो प्रभु पर श्रद्धा रखता, वह हृदय से पश्चात्ताप करेगा।

8 सब लोग डींग मारने वाले को पहचानते हैं; किन्तु समझदार व्यक्ति अपनी ग़लतियांँ जानता है।

9 जो पराये धन से अपना घर बनाता है, वह मानो अपने मक़बरे के लिए पत्थर बटोरता है।

10 पापियों की सभा सन की गठरी-जैसी है। उसका अन्त प्रज्वलित आग में होता है।

11 पापियों का मार्ग प्रशस्त हैं, उस में रोड़े नहीं हैं, किन्तु वह मृतकों के निवास के गर्त्त में ले जाता है।

12 संहिता के पालनकर्ता की बुद्धि स्थिर है।

13 प्रज्ञा प्रभु पर श्रद्धा की परिपूर्णता है।

14 जो बुद्धिमान् नहीं है, वह सुशिक्षित नहीं बना सकता।

15 किन्तु एक ऐसी बुद्धिमानी होती है, जो बुराई से भरी हुई है और जहाँ कटुता है, वहाँ बुद्धिमानी नहीं।

16 प्रज्ञ का ज्ञान बाढ़ की तरह बढ़ता है और उसका परामर्श संजीवन जल का स्त्रोत है।

17 मूर्ख का हृदय टूटे घड़े के सदृश है; उस में कोई भी ज्ञान नहीं ठहर पाता।

18 जब समझदार व्यक्ति ज्ञान की बात सुनता, तो वह उसकी प्रशंसा करता और अपनी ओर से उस में कुछ जोड़ देता है; किन्तु लम्पट उसे सुन कर नापसन्द करता और उसे अपनी पीठ पीछे फेंक देता है।

19 मूर्ख की बकवाद यात्रा में बोझ-जैसी है, किन्तु बुद्धिमान् की बातें मनोहर हैं।

20 लोग सभा में बुद्धिमान् की सम्मति को महत्व देते और उसके शब्दों पर विचार करते हैं।

21 मूर्ख की दृष्टि में प्रज्ञा टूट-फूटे मकान जैसी है। बेसमझ का ज्ञान है- बेसिर-पैर की बातें।

22 मूर्ख के लिए अनुशासन पैरों में बेड़ियों जैसा या दाहिने हाथ में हथकड़ियों-जैसा है।

23 मूर्ख खिलखिला कर हँसता है, किन्तु समझदार अधिक-से-अधिक मुस्कराता है।

24 प्रज्ञ के लिए अनुशासन सोने आभूषण जैसा या दाहिनी बाँह में भुजबन्द-जैसा है।

25 मूर्ख किसी के घर निधड़क घुस जाता, किन्तु समझदार सविनय खड़ा रहता है।

26 मूर्ख द्वार पर घर के अन्दर झाँकता, किन्तु सभ्य मनुष्य बाहर खड़ा रहता है।

27 असभ्य मनुष्य द्वार पर कान लगा कर सुनता, किन्तु समझदार व्यक्ति उसे लज्जा की बात समझता है।

28 गप्पी के होंठ बकवाद करते हैं, किन्तु समझदार व्यक्ति के शब्द तराजू पर तोले हुए हैं।

29 मूर्खों का हृदय उनकी जीभ पर बसता है, किन्तु ज्ञानियों की जीभ उनके हृदय में बसती है।

30 जब दुष्ट अपने विरोधी को कोसता, तो वह अपने को कोसता है।

31 चुग़लख़ोर अपने को दूषित करता और अपने को पड़ोस में घृणा का पात्र बना लेता है।