प्रवक्ता ग्रन्थ

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अध्याय 25

1 मैं तीन बातें पसन्द करता हूँ; वे प्रभु और मनुष्यों को प्रिय हैं:

2 भाइयों का मित्रभाव, पड़ोसी का प्रेम और पति-पत्नी का सामंजस्य।

3 मेरा हृदय तीन प्रकार के लोगों से घृणा करता है और मुझे उनके आचरण से चिढ़ है:

4 घमण्डी दरिद्र, मिथ्यावादी धनी और मूर्ख एवं व्यभिचारी बूढ़ा।

5 तुमने युवावस्था में जो इकट्ठा नहीं किया, उसे वृद्धावस्था में कैसे पाओेगे?

6 कितना अच्छा लगता है, जब पके बाल न्याय करते और बूढ़े परामर्श देते हैं!

7 कितना अच्छा लगता है, जब बूढ़ों में प्रज्ञा हेाती है और प्रतिष्ठित लोगों में विवेक और सत्यपरामर्श!

8 प्रचुर अनुभव वृद्धों का मुकुट है और प्रभु पर श्रद्धा उनका गौरव।

9 मैं अपने मन में नौ बातों की प्रशंसा करता हूँ और दसवीं की भी चरचा करूँगा:

10 वह मनुष्य, जिसे अपने बच्चों में आनन्द आता है; वह, जो अपने जीवनकाल में अपने शत्रुओें का पतन देखता है;

11 धन्य है वह, जिसके एक समझदार पत्नी है, वह, जो बैल और गधे के जोड़े से नहीं जोतता, वह, जो अपनी जीभ से पाप नहीं करता, वह, जिसे अपने से छोटे मनुष्य की नौकरी नहीं करनी पड़ती!

12 धन्य है वह, जिसे सच्चा मित्र प्राप्त है और वह, जो ध्यान से सुनने वालों को सम्बोधित करता है!

13 वह कितन महान् है, जिसे प्रज्ञा और ज्ञान प्राप्त है! किन्तु जो प्रभु पर श्रद्धा रखता, उस से महान् कोई नहीं!

14 प्रभु पर श्रद्धा सर्वश्रेष्ठ है।

15 जिसे वह प्राप्त है, उसकी तुलना किसी से नहीं हो सकती।

16 भक्ति प्रभु पर श्रद्धा से प्रारम्भ होती है, किन्तु मनुष्य विश्वास द्वारा प्रभु से संयुक्त हो जाता है।

17 हृदय के दुःख के बराबर कोई दुःख नहीं। स्त्री की बुराई के बराबर कोई बुराई नहीं।

18 हृदय के घाव के बराबर कोई घाव नहीं।

19 स्त्री की दुष्टता के बराबर कोई दुष्टता नहीं।

20 बैरियों द्वारा दिये गये कष्ट के बराबर कोई कष्ट नहीं।

21 शत्रुओं के प्रतिशोध के बराबर कोई प्रतिशोध नहीं।

22 साँप के विष के बराबर कोई विष नहीं।

23 स्त्री के क्रोध के बराबर कोई क्रोध नहीं। दुष्ट पत्नी के साथ रहने की अपेक्षा मैं सिंह और पंखदार सर्प के साथ रहना अधिक पसन्द करूँगा।

24 स्त्री की दुष्टता उसकी आकृति बदल देती और उसका चेहरा रीछनी की तरह काला बना देती है।

25 उसका पति पड़ोसियों के बीच बैठ कर अनजान में आह भरता है।

26 स्त्री की दुष्टता की तुलना में हर दुष्टता छोटी है। उसे पापियों की गति प्राप्त हो!

27 शान्तिप्रिय पति के लिए बकवादी पत्नी बूढे़ के पैरों के लिए रेत के चढ़ाव के समान है।

28 स्त्री के सौन्दर्य के जाल में मत फँसो और स्त्री का लालच मत करो।

29 यदि पत्नी पति का भरण-पोषण करती है,

30 तो यह पति के लिए कठोर दासता और कलंक है।

31 टूटा हुआ दिल, उतरा हुआ चेहरा और मन की व्यथा- यह दुष्ट पत्नी का परिणाम है।

32 पति के निष्क्रिय हाथ और काँपते पैर: यह उस पत्नी का कार्य है, जो अपने पति को सुख नहीं देती।

33 स्त्री के द्वारा पाप का प्रारम्भ हुआ था, हम सब उसी के कारण मर जाते हैं।

34 पानी नहीं बहने दो और दुष्ट पत्नी को बोलने की छूट मत दो।

35 यदि वह तुम्हारे हाथ के संकेत पर नहीं चलती, तो तुम को अपने शत्रुओं के सामने लज्जित होना पड़ेगा।

36 तुम उस से अलग हो जाओ और उसे उसके अपने घर भेज दो।