प्रवक्ता ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • 51 • पवित्र बाईबल
अध्याय 30
1 जो अपने पुत्र को प्यार करता, वह उसे कोड़े लगाता है, जिससे बाद में उसे पुत्र से सुख मिले।
2 जो अपने पुत्र को अनुशासन में रखता, उसे सन्तोष मिलेगा और वह अपने सम्बन्धियों में उस पर गौरव कर सकेगा।
3 जो अपने पुत्र को अनुशासन में रखता, वह अपने शत्रु से ईर्ष्या उत्पन्न करेगा और अपने मित्रों में उस पर गौरव करेगा।
4 यदि ऐसे पुत्र के पिता की मृत्यु हो जाती, तो भी वह मानो अब तक जीवित है; क्योंकि वह अपना प्रतिरूप छोड़ गया है।
5 वह जीवन में पुत्र को देख कर आनन्दित रहा और मरते समय उसे दुःख नहीं हुआ। वह अपने शत्रुओें के सामने लज्जित नहीं हुआ:
6 वह ऐसा व्यक्ति छोड़ गया, जो शत्रुओें से उसके घर की रक्षा करेगा और उसके मित्रों को उनके उपकार का बदला देगा।
7 जो अपने पुत्र को सिर पर चढ़ाता, उसे अपने घावों पर पट्टी बाँधनी होगी और उसका हृदय हर चिल्लाहट पर काँप उठेगा।
8 जो घोड़ा पालतू नहीं बनाया गया, वह वश में नहीं रहता। यदि पुत्र भी स्वच्छन्द छोड़ा गया, तो उद्दण्ड बन जाता है।
9 अपने पुत्र को सिर पर चढ़ाओे और वह तुम को चकरा देगा; उसके साथ खेलो और वह तुम को दुःख पहुँचायेगा।
10 उसके साथ हँसी-मजाक़ मत करो, नहीं तो तुम्हें दुःख उठाना पडे़गा और तुम अन्त में उस पर दाँत पीसते रह जाओगे।
11 तुम उसे जवानी में पूरी स्वतन्त्रता मत दो और उसके अपराधोें की अनदेखी मत करो।
12 तुम जवानी में उसकी गरदन झुकाओे और बचपन में उसकी पसलियाँ तोड़ दो। नहीं तो वह हठी बन कर तुम्हारी बात नहीं मानेगा और तुम को उसके कारण दुःख होगा।
13 तुम अपने पुत्र को शिक्षा दो और अनुशासन में रखो। नहीं तो तुम को उसकी दुष्टता के कारण लज्जा होगी।
14 रोग से दुर्बल धनी की अपेक्षा स्वस्थ और हष्ट-पुष्ट दरिद्र अच्छा है।
15 संसार भर के सोने-चाँदी की अपेक्षा स्वस्थ शरीर अच्छा है। अपार सम्पत्ति की अपेक्षा सुदृढ़ मन अच्छा है।
16 स्वस्थ शरीर के बराबर कोई सम्पत्ति नहीं और प्रसन्न मन के बराबर कोई सुख नहीं।
17 दयनीय जीवन की अपेक्षा मृत्यु अच्छी है और दीर्घकालीन रोग की अपेक्षा अनन्त विश्राम।
18 रोगी के बन्द मुख के सामने रखा स्वादिष्ट व्यंजन क़ब्र पर चढ़ाये गये भोजन के बराबर है।
19 देवमूर्ति को अर्पित भोजन से क्या लाभ, क्योंकि वह न तो खा सकती औैर न सूँघ सकती है!
20 यह उस पापी की दशा है, जिसे प्रभु उत्पीड़ित करता है।
21 वह उसी तरह देखता रहता और आहें भरता है, जिस प्रकार ख़ोजा कुँवारी के सामने करता है।
22 उदासी के शिकार मत बनो और चिन्ता से अपने को तंग मत करो।
23 हृदय की प्रसन्नता मनुष्य में जीवन का संचार करती और उसे लम्बी आयु प्रदान करती है।
24 अपना मन बहलाओे, अपने हृदय को सान्त्वना दो और उदासी को अपने से दूर करो!
25 उदासी ने बहुतों का विनाश किया है और उस से कोई लाभ नहीं!
26 ईर्ष्या और क्रोध जीवन के दिन घटाते हैं और चिन्ता समय से पहले किसी को बूढ़ा बनाती है।
27 आनन्दमय हृदय खाने की रुचि बढ़ाता है, ऐसा व्यक्ति अपने भोजन का बहुत ध्यान रखता है।