प्रवक्ता ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • 51 • पवित्र बाईबल
अध्याय 34
1 व्यर्थ आशा नासमझ व्यक्ति को धोखा देती है और स्वप्नों के कारण मूर्खों का सिर फिर जाता है।
2 जो स्वप्नों का ध्यान रखता, वह मानो छाया पकड़ता या हवा का पीछा करता है।
3 स्वप्न में छाया मात्र दिखाई देता है, जैसे मुख के सामने दर्पण में उसका प्रतिबिम्ब।
4 क्या दूषण से पवित्रता और झूठ से सत्य निकल सकता है?
5 भविष्य-फल, शकुन और स्वप्न- ये सब व्यर्थ
6 और प्रसव-पीड़िता की कल्पनाएँ मात्र हैं। यदि स्वप्न सर्वोच्च प्रभु द्वारा न भेजा गया हो, तो उस पर कोई ध्यान मत दो।
7 स्वप्नों के कारण बहुत-से लोग भटक गये और उन पर भरोसा रख कर निराश हुए।
8 इन झूठी बातों के बिना संहिता प्रमाणित है और ईमानदार व्यक्ति के मुख में प्रज्ञा की परिपूर्णता है।
9 जिसने दूर की यात्रा की है, उसने बहुत सीख लिया ओैर जो अनुभवी है, वह ज्ञान की बातें कहता है।
10 (10-11 जिसे अनुभव नहीं, वह कम जानता है, किन्तु जिसने यात्रा की है, वह व्यवहार कुशल है।
12 मैंने अपनी यात्राओें में बहुत कुछ देखा और बहुत-सी बातोें का ज्ञान प्राप्त किया है।
13 मुझे कई बार जीवन की जोखिम का सामना करना पड़ा, किन्तु मैं अपने अनुभव के कारण बच गया।
14 जो प्रभु पर श्रद्धा रखते हैं, उनकी आयु लम्बी होगी और उन्हें प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त होगा;
15 क्योंकि उन्हें उसका भरोसा है, जो उनकी रक्षा करने में समर्थ हैं। प्रभु की आँखें अपने भक्तों पर टिकी रहती है।
16 जो प्रभु पर श्रद्धा रखता, वह किसी से नहीं डरता। वह कभी नहीं घबराता, क्योंकि उसे प्रभु का भरोसा है।
17 जो प्रभु पर श्रद्धा रखता, उसकी आत्मा धन्य है।
18 वह किस पर निर्भर रहता है? उसे कौन सँभालता है?
19 जो लोग प्रभु पर श्रद्धा रखते हैं, उन पर प्रभु की आँखे टिकी रहती हैं। प्रभु पक्की ढाल, सुदृढ़ आधार, लू से आश्रय, दोपहर की धूप से छाया है।
20 वह ठोकर खाने से बचाता और गिरने वालों की सहायता करता है। वह आत्मा को ऊपर उठता और आँखों को ज्योति प्रदान करता है।
21 जो प्रभु पर भरोसा रखते हैं, वह उन्हें सत्य और धर्म के मार्ग पर ले चलता है।
22 अन्याय की कमाई का चढ़ावा दूषित है। पापियों की भेटें प्रभु को ग्राह्य नहीं होतीं।
23 सर्वोच्च प्रभु को पापियों के चढ़ावे प्रिय नहीं होते, वह बलिदानों की बहुलता के कारण पाप क्षमा नहीं करता।
24 जो दरिद्रों की सम्पत्ति से बलिदान चढ़ाता है, वह उस व्यक्ति-जैसा है, जो पिता की आँखों के सामने उसके पुत्र का वध करता है।
25 भीख की रोटी से दरिद्र का निर्वाह होता है। जो उसे छीनता है, वह रक्तपात करता है।
26 जो अपने पड़ोसी की जीविका छीनता है, वह मानो उसका वध करता है,
27 जो मज़दूर का वेतन दबाता है, वह हत्यारे के बराबर है।
28 एक निर्माण करता और दूसरा ढा देता है। उस से क्या लाभ? दोनों ने व्यर्थ परिश्रम किया।
29 एक आशीर्वाद और दूसरा अभिशाप देता है। ईश्वर को किसकी बात माननी चाहिए?
30 कोई शव स्पर्श कर नहाता और फिर शव स्पर्श करता है, तो उसे नहाने से क्या लाभ?
31 यही उस व्यक्ति की दशा है, जो अपने पापों के लिए अनशन करता है और उसके बाद जा कर फिर वही पाप करता है।