निर्गमन ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • पवित्र बाईबल
अध्याय 27
1 ”बबूल की लकड़ी से पाँच हाथ लम्बी और पाँच हाथ चौड़ी एक वेदी बनवाओ। वह वेदी वर्गाकार हो। उसकी ऊँचाई तीन हाथ हो।
2 उसके चारों कोनों पर सींग बनवाओ। वेदी और सींग एक ही काष्ठ-खण्ड के बने हों। उसे काँसे से मढ़वाओ।3 राख उठाने के लिए पात्र, फावड़ियाँ, कटोरे, काँटे और अँगीठियाँ बनवाओ – ये सब सामान काँसे के बने हों।
4 उसके लिए काँसे की जाली की एक झंझरी बनवाओ और जाली के चारों कोनों पर काँसे के चार कड़े।
5 उसे वेदी के नीचे इस प्रकार लगवाओ कि वह वेदी की आधी ऊँचाई तक आये।
6 वेदी के लिऐ डण्डे बनवाओ। डण्डे बबूल की लकड़ी के हों। उन्हें काँसे से मढ़वाओ।
7 वे डण्डे कड़ों में इस तरह लगवाओ कि जब वेदी उठायी जाये, तो वे डण्डे उसकी दोनों ओर हों।
8 वेदी तख़्तों से बनवाओ। वह अन्दर खोखली हो। वह जैसी तुम को पर्वत पर दिखायी गयी है, वैसी ही बनायी जाये।
9 “निवास के लिए एक आँगन बनवाओ। आँगन का दक्षिणी किनारा एक सौ हाथ लम्बा हो। उसके लिए सौ हाथ लम्बे, बटी हुई छालटी के परदे,
10 बीस खूँटे और काँसे की बीस कुर्सियाँ बनवाओ। खूँटों के अँकुड़े और उन को जोड़ने के छड़ चाँदी के हों।
11 उत्तर की ओर के लिए ऐसा ही एक सौ हाथ लम्बे परदे बनवाओ। उनके लिए बीस खूँटे और काँसे की बीस कुर्सियाँ बनवाओ। खूँटों के अँकुड़े और उन को जोड़ने के लिए छड़ चाँदी के हों।
12 आँगन का पश्चिमी किनारा पचास हाथ का हो। उसके लिए परदे, दस खूँटे और दस कुर्सियाँ बनवाओ।
13 आँगन का पूर्वी किनारा भी पचास हाथ का हो।
14 द्वार के एक ओर के परदे पन्द्रह हाथ के हों, जिनके लिए तीन खूँटे और तीन कुर्सियाँ हों,
15 दूसरी ओर के परदे पन्द्रह हाथ के हों, जिनके भी तीन खूँटे और तीन कुर्सियाँ हों।
16 आँगन के द्वार के लिए बीस हाथ लम्बा और नीले, बैंगनी और लाल रंग के कपड़ों तथा बटी हुई छालटी के कपड़ों का परदा बनवाओ। उस में बेलबूटे कढ़े हों। उसके लिए चार खूँटे और चार कुर्सियाँ हों।
17 आँगन के चारों ओर के सब खूँटे चाँदी के छड़ों से जुड़े हुए हों। वे छड़ और उनके अँकुड़े चाँदी के और उनकी कुर्सियाँ काँसे की हों।
18 आँगन की लम्बाई एक सौ हाथ और चौड़ाई पचास हाथ हो। बटी हुई छालटी के उसके परदे पाँच हाथ ऊँचे हों और उनकी कुर्सियाँ काँसे की हों।
19 निवास के उपयोग का सारा सामान, तम्बू की सब खूँटियाँ और आँगन की सब खूँटियाँ काँसे की हों।
20 ”इस्राएलियों को आज्ञा दो कि वे दीपवृक्ष के लिए जैतून का निकाला हुआ शुद्ध तेल तुम्हारे पास लायें, जिससे दीपक निरन्तर जलता रहे।
21 दर्शन-कक्ष में अन्तरपट के बाहर, जो विधान-मंजूषा के सामने है, हारून और उसके पुत्र, सबेरे से शाम तक, उसे प्रभु के सामने जलता रखें। यह इस्राएलियों के लिए पीढ़ी-दर-पीढ़ी बना रहने वाला आदेश है।