एज़ेकिएल का ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • पवित्र बाईबल
अध्याय 41
1 इसके बाद वह मुझे मध्य भाग में ले गया और भित्तिस्तम्भों को नापा। प्रत्येक ओर के भित्तिस्तम्भों की चैडाई छह हाथ थी।
2 प्रवेशद्वार की चैडाई दस हाथ थी और प्रवेशद्वार के दोनों ओकर की दीवारें पाँच-पाँच हाथ की थीं। उसने मध्य भाग की लंबाई नापी, जो चालीस हाथ थी और उसकी चैडाई बीस हाथ।
3 उसने अंतःकक्ष में जा कर प्रवेशद्वार के भित्तिस्तम्भ नापे। वे दो-दो हाथ के थे। प्रवेशद्वार की चैडाई छः हाथ थी और प्रवेशद्वार के दोनों ओर की दीवारें सात-सात हाथ की थीं।
4 और उसने मध्य भाग के सामने के कक्ष की लंबाई नापी, जो बीस हाथ थी और उसकी चैडाई बीस हाथ। उसने मुझ से कहा, “यही परम-पवित्र-स्थान है”
5 तब उसने मंदिर की दीवार नापी। वह छः हाथ मोटी थी। मन्दिर के चारों ओर बगल के कमरों की चैडाई चार हाथ थी
6 तीन मंजिलों में एक के ऊपर एक बने हुए बगल मे कमरों की संख्या हर मजिल में तीस थी। बगल के कमरों को सहारा देने के लिए मंदिर की दीवार के चारों ओर कुर्सियाँ बनी थीं, जिससे उनका भार मन्दिर की दीवार पर न पडे।
7 बगल के कमरे जैसे-जैसे एक मंजिल के बाद दूसरी मंजिल की ओर ऊपर होते गये थे। वैसे-वैसे मंदिर के चारों ओर एक मंजिल के बाद दूसरी मंजिल पर बनी कुर्सी के विस्तार के अनुरूप क्रमशः अधिक चैडे हाते गये थे। मन्दिर की बगल से सीढी ऊपर जाती थीः इस प्रकार सब से नीचली मंजिल से बीच की मंजिल हो कर ऊपर की मंजिल तक पहुँचा जा सकता था।
8 मैंने यह भी देखा कि मन्दिर के चारों ओर ऊँचा मंच है। बगल के कमरों की नीवों की चैडाई पूर-पूरे छः हाथ लम्बी माप-छड़ी के बराबर थी
9 बगल के कमरों की बाहरी दीवार की चैडाई पांच हाथ थी और मंच का वह भाग, जो खाली छोड़ा गया था, पाँच हाथ था। मन्दिर के मंच और प्रांगण की
10 बगल के कमरों के बीच मन्दिर के चारों ओर हर तरफ, बीस हाथ चोडा खाली स्थान था।
11 बगल के कमरों के दरवाज़े मंच के उस भाग की ओर खुलते थे, जो खाली था- एक दरवाज़ा उत्तर की ओर खुलता था और दूसरा दरवाज़ा दक्षिण की ओर। चारों ओर उस खाली भाग की चैडाई पांच हाथ थीं।
12 वह भवन, जिसका मुख पश्चिम में अवस्थित मन्दिर के प्रांगण के सामने था, सत्तर हाथ चैड़ा था। उस भवन के चारों ओर की दीवार पांच हाथ मोटी थी और उसकी लम्बाई नब्बे हाथ थी।
13 उसने मन्दिर को नापा। वह सौ हाथ था। प्रांगण और दीवारों-सहित उस भवन की लंबाई सत्तर हाथ थी।
14 तथा मन्दिर और प्रांगण के पूर्वी अग्रभाग की चैड़ाई सौ हाथ।
15 उसने भवन, जिसका मुख पश्चिम में अवस्थित प्रांगण के सामने था और उसके दोनों ओर की दीवारों की लंबाई नापी। वह सौ हाथ थीं। मंदिर के मध्य भाग, उसके अंतःकक्ष और बाहरी द्वारमण्डप
16 में तख्ते जडे थे और तीनों में चारों ओर जालीदार खिड़िकियाँ लगी थीं। देहली के आमने-सामने मंदिर मे तख्ते जड़े थे- फर्श से ले कर खिडकियों तक (खिडकियाँ ढँकी थीं।
17 (17-18 दरवाज़े के ऊपर वाले स्थान तक, यहाँ तक कि अंतःकक्ष और बाहर तक। अंतःकक्ष और मध्य भाग की दीवारों पर चारों ओर केरूब और खजूर वृक्ष की आकृतियाँ खुदी थीं- दो केरूबों के बीच एक खजूर वृक्ष। प्रत्येक केरूब के दो मुख थेः।
19 एक ओर के खजूर वृक्ष के सामने मनुष्य का मुख और दूसरी ओर के खजूर वृक्ष के सामने युवा सिंह का मुख। मन्दिर में चारों ओर उनकी आकृतियाँ खुदी थीं।
20 फर्श से ले कर दरवाज़े के ऊपर तक की दीवार पर केरूब और खजूर वृक्ष खुदे थे।
21 (21-22 मध्य भाग के द्वार की चैखटें वर्गाकार थीं। पवित्र-स्थान के सामने कोई वस्तु थी, जो लकड़ी की वेदी-जैसी प्रतीत होती थी। वह तीन हाथ ऊँची, तीन हाथ लंबी और दो हाथ चैड़ी थी। उसके कोने, उसका आधार और उसकी दीवारें लकड़ी की थीं। उसने मुझ से कहा, ”यही प्रभु के सामने की मेज है”
23 मध्य भाग और पवित्र-स्थान में दोहरे दरवाजे लगे थे।
24 दरवाज़ों में दो पल्ले थे, प्रत्येक दरवाज़े में दो कब्जे वाले डिल्ले।
25 मध्य भाग के दरवाजों पर उसी तरह केरूब और खजूर वृक्ष खुदे थे, जिस तरह दीवारों पर तथा बाहर द्वारमण्डप के सामने लकड़ी का छज्जा था।
26 द्वारमण्डप की बगल वाली दीवारों पर दोनों ओर जालीदार खिडकियाँ और खजूर वृक्ष थे।