फरवरी 06, 2023 – सामान्य काल का पाँचवाँ सप्ताह, सोमवार

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📒 पहला पाठ : उत्पत्ति ग्रन्थ 1:1-19

1) प्रारंभ में ईश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की सृष्टि की।

2) पृथ्वी उजाड़ और सुनसान थी। अर्थाह गर्त पर अन्धकार छाया हुआ था और ईश्वर का आत्मा सागर पर विचरता था।

3) ईश्वर ने कहा, ”प्रकाश हो जाये”, और प्रकाश हो गया।

4) ईश्वर को प्रकाश अच्छा लगा और उसने प्रकाश और अन्धकार को अलग कर दिया।

5) ईश्वर ने प्रकाश का नाम ‘दिन’ रखा और अन्धकार का नाम ‘रात’। सन्ध्या हुई और फिर भोर हुआ यह पहला दिन था।

6) ईश्वर ने कहा, ”पानी के बीच एक छत बन जाये, जो पानी को पानी से अलग कर दे”, और ऐसा ही हुआ।

7) ईश्वर ने एक छत बनायी और नीचे का पानी और ऊपर का पानी अलग कर दिया।

8) ईश्वर ने छत का नाम ‘आकाश’ रखा। सन्ध्या हुई और फिर भोर हुआ यह दूसरा दिन था।

9) ईश्वर ने कहा, ”आकाश के नीचे का पानी एक ही जगह इक्कट्ठा हो जाये और थल दिखाई पड़े”, और ऐसा ही हुआ।

10) ईश्वर ने थल का नाम ‘पृथ्वी’ रखा और जलसमूह का नाम ‘समुद्र’। और वह ईश्वर को अच्छा लगा।

11) ईश्वर ने कहा ”पृथ्वी पर हरियाली लहलहाये, बीजदार पौधे और फलदार पेड़ उत्पन्न हो जायें, जो अपनीअपनी जाति के अनुसार बीजदार फल लाये”, और ऐसा ही हुआ।

12) पृथ्वी पर हरियाली उगने लगी : अपनीअपनी जाति के अनुसार बीज पैदा करने वाले पौधे और बीजदार फल देने वाले पेड़। और यह ईश्वर को अच्छा लगाा।

13) सन्ध्या हुई और फिर भोर हुआ यह तीसरा दिन था।

14) ईश्वर ने कहा, ”दिन और रात को अलग कर देने के लिए आकाश में नक्षत्र हों। उनके सहारे पर्व निर्धारित किये जायें और दिनों तथा वर्षों की गिनती हो।

15) वे पृथ्वी को प्रकाश देने के लिए आकाश में जगमगाते रहें” और ऐसा ही हुआ।

16) ईश्वर ने दो प्रधान नक्षत्र बनाये, दिन के लिए एक बड़ा और रात के लिए एक छोटा; साथसाथ तारे भी।

17) ईश्वर ने उन को आकाश में रख दिया, जिससे वे पृथ्वी को प्रकाश दें,

18) दिन और रात का नियंत्रण करें और प्रकाश तथा अन्धकार को अलग कर दें और यह ईश्वर को अच्छा लगा।

19) सन्ध्या हुई और फिर भोर हुआ यह चौथा दिन था।

📚 सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 6:53-56

53) समुद्र के उस पार गेनेसरेत पहुँच कर उन्होंने नाव किनारे लगा दी।

54) ज्यों ही वे भूमि पर उतरे, लोगों ने ईसा को पहचान लिया और वे उस सारे प्रदेश से दौड़ते हुए आये।

55) जहाँ कहीं ईसा का पता चलता था, वहाँ वे चारपाइयों पर पड़े रोगियों को उनके पास ले आते थे।

56) गाँव, नगर या बस्ती, जहाँ कहीं भी ईसा आते थे, वहाँ लोग रोगियों को चैकों पर रख कर अनुनय-विनय करते थे कि वे उन्हें अपने कपड़े का पल्ला भर छूने दें। जितनों ने उनका स्पर्श किया, वे सब-के-सब अच्छे हो गये।