फरवरी 18, 2023 – सामान्य काल का छठवाँ सप्ताह, शनिवार
संत चावरा कुरियाकोस एलियस
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📒 पहला पाठ : इब्रानियों 11:1-7
1) विश्वास उन बातों की स्थिर प्रतीक्षा है, जिनकी हम आशा करते हैं और उन वस्तुओं के अस्तित्व के विषय में दृढ़ धारणा है, जिन्हें हम नहीं देखते।
2) विश्वास के कारण हमारे पूर्वज ईश्वर के कृपापात्र बने।
3) विश्वास द्वारा हम समझते हैं कि ईश्वर के शब्द द्वारा विश्व का निर्माण हुआ है और अदृश्य से दृश्य की उत्पत्ति हुई है।
4) विश्वास के कारण हाबिल ने काइन की अपेक्षा कहीं अधिक श्रेष्ठ बलि चढ़ायी। विश्वास के कारण वह धार्मिक समझे गये, क्योंकि ईश्वर ने उनका चढ़ावा स्वीकार किया। विश्वास के कारण वह मर कर भी बोल रहे हैं।
5) विश्वास के कारण मृत्यु का अनुभव किये बिना हेनोख आरोहित कर लिये गये। वह फिर नहीं दिखाई पड़े, क्योंकि ईश्वर ने उन्हें आरोहित किया था। धर्मग्रन्थ उसके विषय में कहता है कि आरोहित किये जाने के पहले वह ईश्वर के कृपापात्र बन गये थे।
6) विश्वास के अभाव में कोई ईश्वर का कृपापात्र नहीं बन सकता। जो ईश्वर के निकट पहुँचना चाहता है, उसे विश्वास करना है कि ईश्वर है और वह उन लोगों का कल्याण करता है, जो उसकी खोज में लगे रहते हैं।
7) ईश्वर से उस समय तक अदृश्य बातों की सूचना पा कर नूह ने अपना परिवार बचाने के लिए विश्वास के कारण बड़ी सावधानी से पोत का निर्माण किया। उन्होंने अपने विश्वास द्वारा संसार को दोषी ठहराया और वह उस धार्मिकता के अधिकारी बने, जो विश्वास पर आधारित है।
📚 सुसमाचार : सन्त मारकुस 9:2-13
2) छः दिन बाद ईसा ने पेत्रुस, याकूब और योहन को अपने साथ ले लिया और वह उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर एकान्त में ले चले। उनके सामने ही ईसा का रूपान्तरण हो गया।
3) उनके वस्त्र ऐसे चमकीले और उजले हो गये कि दुनिया का कोई भी धोबी उन्हें उतना उजला नहीं कर सकता।
4) शिष्यों को एलियस और मूसा दिखाई दिये-वे ईसा के साथ बातचीत कर रहे थे।
5) उस समय पेत्रुस ने ईसा से कहा, “गुरुवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है! हम तीन तम्बू खड़े कर दें- एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।”
6) उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, क्योंकि वे सब बहुत डर गये थे।
7) तब एक बादल आ कर उन पर छा गया और उस बादल में से यह वाणी सुनाई दी, “यह मेरा प्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।”
8) इसके तुरन्त बाद जब शिष्यों ने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी, तो उन्हें ईसा के सिवा और कोई नहीं दिखाई पड़ा।
9) ईसा ने पहाड़ से उतरते समय उन्हें आदेश दिया कि जब तक मानव पुत्र मृतकों में से न जी उठे, तब तक तुम लोगों ने जो देखा है, उसकी चर्चा किसी से नहीं करोगे।
10) उन्होंने ईसा की यह बात मान ली, परन्तु वे आपस में विचार-विमर्श करते थे कि ’मृतकों में से जी उठने’ का अर्थ क्या हो सकता है।
11) उन्होंने ईसा से पूछा, “शास्त्री यह क्यों कहते हैं कि पहले एलियस को आना है?”
12) ईसा ने उत्तर दिया, “एलियस अवश्य पहले सब ठीक करने आता है। फिर मानव पुत्र के विषय में यह क्यों लिखा है कि वह बहुत दुःख उठायेगा और तिरस्कृत किया जायेगा?
13) मैं तुम से कहता हूँ – एलियस आ चुका है और उसके विषय में जैसे लिखा है, उन्होंने उसके साथ वैसा ही मनमाना व्यवहार किया है।”
अथवा पहला पाठ : 2 कुरिन्थियों 4:1-2, 5-7
1) ईश्वर की दया ने हमें यह सेवा-कार्य सौंपा है, इसलिए हम कभी हार नहीं मानते।
2) हम लोकलज्जावश कुछ बातें छिपाना नहीं चाहते। हम न तो छल-कपट करते और न ईश्वर का वचन विकृत करते हैं। हम प्रकट रूप से सत्य का प्रचार करते हैं। यही उन सब मनुष्यों के पास हमारी सिफ़ारिश है, जो ईश्वर के सामने हमारे विषय में निर्णय करना चाहते हैं।
5) हम अपना नहीं, बल्कि प्रभु ईसा मसीह का प्रचार करते हैं। हम ईसा के कारण अपने को आप लोगों का दास समझते हैं।
6) ईश्वर ने आदेश दिया था कि अन्धकार में प्रकाश हो जाये। उसी ने हमारे हृदयों को अपनी ज्योति से आलोकित कर दिया है, जिससे हम ईश्वर की वह महिमा जान जायें, जो मसीह के मुखमण्डल पर चमकती है।
7) यह अमूल्य निधि हम में-मिट्टी के पात्रों में रखी रहती है, जिससे यह स्पष्ट हो जाये कि यह अलौकिक सामर्थ्य हमारा अपना नहीं, बल्कि ईश्वर का है।
📚 सुसमाचार : सन्त मत्ती 9:35-38
35) ईसा सभागृहों में शिक्षा देते, राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते, हर तरह की बीमारी और दुबर्लता दूर करते हुए, सब नगरों और गाँवों में घूमते थे।
36) लोगों को देखकर ईसा को उन पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थके माँदे पड़े हुए थे।
37) उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, “फसल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं।
38) इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे।”