फरवरी 26, 2023

चालीसा काल का पहला इतवार

🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥

📒 पहला पाठ : उत्पत्ति 2:7-9; 3:1-7

2:7) प्रभु ने धरती की मिट्ठी से मनुष्य को गढ़ा और उसके नथनों में प्राणवायु फूँक दी। इस प्रकार मनुष्य एक सजीव सत्व बन गया।

8) इसके बाद ईश्वर ने पूर्व की ओर, अदन में एक वाटिका लगायी और उस में अपने द्वारा गढ़े मनुष्य को रखा।

9) प्रभु-ईश्वर ने धरती से सब प्रकार के वृक्ष उगायें, जो देखने में सुन्दर थे और जिनके फल स्वादिष्ट थे। वाटिका के बीचोंबीच जीवन-वृक्ष था और भले-बुरे के ज्ञान का वृक्ष भी।

3:1) ईश्वर ने जिन जंगली जीव-जन्तुओं को बनाया था, उन में साँप सब से धूर्त था। उसने स्त्री से कहा, ”क्या ईश्वर ने सचमुच तुम को मना किया कि वाटिका के किसी वृक्ष का फल मत खाना”?

2) स्त्री ने साँप को उत्तर दिया, ”हम वाटिका के वृक्षों के फल खा सकते हैं।

3) परन्तु वाटिका के बीचोंबीच वाले वृक्ष के फलों के विषय में ईश्वर ने यह कहा – तुम उन्हें नहीं खाना। उनका स्पर्श तक नहीं करना, नहीं तो मर जाओगे।”

4) साँप ने स्त्री से कहा, ”नहीं! तुम नहीं मरोगी।”

5) ईश्वर जानता है कि यदि तुम उस वृक्ष का फल खाओगे, तो तुम्हारी आँखें खुल जायेंगी। तुम्हें भले-बुरे का ज्ञान हो जायेगा और इस प्रकार तुम ईश्वर के सदृश बन जाओगे।

6) अब स्त्री को लगा कि उस वृक्ष का फल स्वादिष्ट है, वह देखने में सुन्दर है और जब उसके द्वारा ज्ञान प्राप्त होता है, तो वह कितना लुभावना है! इसलिए उसने फल तोड़ कर खाया। उसने पास खड़े अपने पति को भी उस में से दिया और उसने भी खा लिया।

7) तब दोनों की आँखें खुल गयीं और उन्हें पता चला कि वे नंगे हैं। इसलिए उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़-जोड़ कर अपने लिए लंगोट बना लिये।

📕 दूसरा पाठ : रोमियों 5:12-19

12) एक ही मनुष्य द्वारा संसार में पाप का प्रवेश हुआ और पाप द्वारा मृत्यु का। इस प्रकार मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गयी, क्योंकि सब पापी है।

13) मूसा की संहिता से पहले संसार में पाप था, किन्तु संहिता के अभाव में पाप का लेखा नहीं रखा जाता हैं।

14) फिर भी आदम से ले कर मूसा तक मृत्यु उन लोगों पर भी राज्य करती रही, जिन्होंने आदम की तरह किसी आज्ञा के उल्लंघन द्वारा पाप नहीं किया था। आदम आने वाले मुक्तिदाता का प्रतीक था।

15) फिर भी आदम के अपराध तथा ईश्वर के वरदान में कोई तुलना नहीं हैं। यह सच है कि एक ही मनुष्य के अपराध के कारण बहुत-से लोग मर गये; किंतु इस परिणाम से कहीं अधिक महान् है ईश्वर का अनुग्रह और वह वरदान, जो एक ही मनुष्य-ईसा मसीह-द्वारा सबों को मिला है।

16) एक ही मनुष्य के अपराध तथा ईश्वर के वरदान में कोई तुलना नहीं हैं। एक के अपराध के फलस्वरूप दण्डाज्ञा तो दी गयी, किंतु बहुत-से अपराधों के बाद जो वरदान दिया गया, उसके द्वारा पाप से मुक्ति मिल गयी हैं।

17) यह सच है कि मृत्यु का राज्य एक मनुष्य के अपराध के फलस्वरूप-एक ही के द्वारा- प्रारंभ हुआ, किंतु जिन्हें ईश्वर की कृपा तथा पापमुक्ति का वरदान प्रचुर मात्रा मे मिलेगा, वे एक ही मनुष्य-ईसा मसीह-के द्वारा जीवन का राज्य प्राप्त करेंगे।

18) इस प्रकार हम देखते हैं कि जिस तरह एक ही मनुष्य के अपराध के फलस्वरूप सबों को दण्डाज्ञा मिली, उसी तरह एक ही मनुष्य के प्रायश्चित्त के फलस्वरूप सबों को पापमुक्ति और जीवन मिला।

19) जिस तरह एक ही मनुष्य के आज्ञाभंग के कारण सब पापी ठहराये गये, उसी तरह एक ही मनुष्य के आज्ञापालन के कारण सब पापमुकत ठहराये जायेंगे।

📙 सुसमाचार : मत्ती 4:1-11

प्रभु की परीक्षा

(1) उस समय आत्मा ईसा को निर्जन प्रदेश ले चला, जिससे शैतान उनकी परीक्षा ले ले।

(2) ईसा चालीस दिन और चालीस रात उपवास करते रहे। इसके बाद उन्हें भूख लगी

(3) और परीक्षक ने पास आ कर उन से कहा, “यदि आप ईश्वर के पुत्र हैं, तो कह दीजिए कि ये पत्थर रोटियाँ बन जायें”।

(4) ईसा ने उत्तर दिया, “लिखा है- मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है।”

(5) तब शैतान ने उन्हें पवित्र नगर ले जाकर मंदिर के शिखर पर खड़ा कर दिया।

(6) और कहा, यदि आप ईश्वर के पुत्र हैं तो नीचे कूद जाइए; क्योंकि लिखा है- तुम्हारे विषय में वह अपने दूतों को आदेश देगा। वे तुम्हें अपने हाथों पर सँभाल लेंगे कि कहीं तुम्हारे पैरों को पत्थर से चोट न लगे।”

(7) ईसा ने उस से कहा, “यह भी लिखा है- अपने प्रभु-ईश्वर की परीक्षा मत लो”।

(8) फिर शैतान उन्हें एक अत्यन्त ऊँचे पहाड़ पर ले गया और संसार के सभी राज्य और उनका वैभव दिखला कर

(9) बोला, “यदि आप दण्डवत् कर मेरी आराधना करें, तो मैं आपको यह सब दे दूँगा”!

(10) ईसा ने उत्तर दिया हट जा शैतान! लिखा है अपने प्रभु- ईश्वर की आराधना करो, और केवल उसी की सेवा करो।”

(11) इस पर शैतान उन्हें छोड़ कर चला गया, और स्वर्गदूत आ कर उनकी सेवा-परिचर्या करते रहे।