इसायाह का ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • 51 • 52 • 53 • 54 • 55 • 56 • 57 • 58 • 59 • 60 • 61 • 62 • 63 • 64 • 65 • 66 • पवित्र बाईबल
अध्याय 3
1 देखो! प्रभु, विश्वमण्डल का प्रभु, येरुसालेम और यूदा से हर प्रकार की सहायता, भोजन और जल की आपूर्ति छीनने जा रहा है।
2 वीर और योद्वा, न्यायाधीश और नबी, शकुन विचारने वाला और नेता,
3 सेनापति पदाधिकारी और सभासद, निपुण ओझा और अभिचारक- सब हटा दिये जायेंगे।
4 मैं युवकों को उनके पदाधिकारी बनाऊँगा- निरे बच्चे उन पर मनमाना शासन करेंगे।
5 लोग एक दूसरे पर अत्याचार करेंगे – हर एक अपने पड़ोसी को लूटेगा। युवक वृद्ध के विरुद्ध खड़ा हो जायेगा और क्षुद्र व्यक्ति प्रतिष्ठित के विरुद्ध।
6 कोई अपने पिता के घर में ही अपने भाइयों में एक को पकड़ कर यह कहेगा, “तुम्हारे पास एक चादर बच गयी, तुम हमारे नेता बनो और इन खडँहरों के ढेर की रक्षा करें” ।
7 किन्तु वह उत्तर देगा, “मुझ से कुछ नहीं होगा। मेरे यहाँ न तो भोजन है और न वस्त्र, मुझे जनता का नेता मत बनाओ।”
8 येरुसालेम लड़खड़ा रहा है, यूदा प्रदेश गिर रहा है। उनके वचन और उनके कार्य प्रभु से विद्रोह करते हैं; वे उसकी महिमा को चुनौती देते हैं।
9 उनका रूख उनके विरुद्ध साक्ष्य दे रहा है, वे सोदोम की तरह अपने पाप घोषणा करते हैं, वे उसे नहीं छिपाते। धिक्कार उन्हें, वे स्वयं अपनी विपत्ति मोल लेते हैं!
10 देखो, धार्मिक मनुष्य का भला होगा। उसे अपने कर्मों का पुरस्कार मिलेगा।
11 धिक्कार विधर्मी को! उसका बुरा होगा। उसके कर्मों के अनुसार उसके साथ व्यवहार होगा।
12 मेरी प्रजा! युवक तुम पर अत्याचार करते और स्त्रियाँ तुम पर शासन करती हैं। मेरी प्रजा! तुम्हारे पथप्रदर्शक तुम को बहकाते और तुम को सन्मार्ग से भटकाते हैं।
13 प्रभु अपने न्यायासन पर बैठ गया, वह लोगों का न्याय करने जा रहा है।
14 प्रभु अपनी प्रजा के नेताओं और शासकों को अपने न्यायालय में बुलाता है: “तुम लोगों ने मेरी दाख़बारी लूटी और दरिद्रों की सम्पत्ति से अपने घर भर लिये हैं।
15 तुम किस अधिकार से मेरी प्रजा को पद-दलित करते और दरिद्रों को रौंदते हो?” यह सर्वशक्तिमान प्रभु की वाणी है।
16 प्रभु यह कहता है – “सियोन की पुत्रियाँ घमण्डी हैं। वे सिर उठाये, आँखें मटकाते और धूँधरू छमछमाते, फुदकते हुए आगे बढ़ती हैं।
17 इसलिए प्रभु सियोन की स्त्रियों के सिर पर खाज भेजेगा, वह उनकी खोपड़ी गंजी बना देगा।”
18 उस दिन प्रभु उनके आभूषण छीन लेगा: नूपुर, बिन्दी, कण्ठी,
19 बाली, कंकण, दुपट्ठा,
20 चूड़ामणि, भुजबन्द, करधनी, इत्र-दान और तावीज़;
21 अँगूठी, नथ,
22 की़मती वस्त्र, ओढ़नी, लबादा, बटुआ,
23 दर्पण, छालटी वस्त्र, किरीट और शाल।
24 तब सुगन्ध के बदले दुर्गन्ध होगी, कमरबन्द के बदले रस्सी, गूथे हुए केशों के बदले गंजापन, कीमती वस्त्रों के बदले टाट, सौन्दर्य के बदले गुलामी का दाग।
25 तुम्हारे पुरुष तलवार के घाट उतारे जायेंगे, तुम्हारे सैनिक युद्ध में खेत रहेंगे।
26 सियोन के फाटक आह भर कर विलाप करेंगे और नगर एकाकिनी की तरह ज़मीन पर बैठा रहेगा।