इसायाह का ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • 51 • 52 • 53 • 54 • 55 • 56 • 57 • 58 • 59 • 60 • 61 • 62 • 63 • 64 • 65 • 66 • पवित्र बाईबल
अध्याय 32
1 देखो, एक राजा धार्मिकता से राज्य करेगा और शासक न्याय से शासन करेंगे।
2 उन में प्रत्येक आँधी से आश्रय-जैसा होगा, तूफ़ान से शरणस्थान-जैसा, सन्तप्त प्रदेश में बड़ी चट्टान की छाया-जैसा ।
3 तब देखने वाले अपनी आँखें बन्द नहीं करेंगे और सुनने वालों के कान ध्यान से सुनेंगे।
4 अविवेकी लोगों में सद्बुद्धि आयेगी और हकलाने वाली जीभ धाराप्रवाह बोलेगी।
5 तब मूर्ख का सम्मान नहीं किया जायेगा और धूर्त की प्रतिष्ठा नहीं होगी;
6 क्योंकि मूर्ख निरर्थक बातें कहता और अपने मन में बुराई की बात सोचता है। वह अधर्म का आचरण करता और प्रभु की निन्दा करता है। वह भूखों की भूख दूर नहीं करता और प्यासों को पानी नहीं पिलाता।
7 धूर्त की कार्यप्रणाली कपटपूर्ण है। वह ऐसी दुष्ट योजनाएँ बनाता है कि जब दरिद्र अपना पक्ष प्रस्तुत करते हैं, तो झूठी बातों द्वारा उनका विनाश हो जाता है;
8 किन्तु सहृदय मनुष्य उच्च योजनाएँ बनाता और उन्हें कार्यान्वित भी करता है।
9 अकर्मण्य स्त्रियों! जागो और मेरे कहने पर ध्यान दो। निश्चिन्त युवतियों! मेरी बात ध्यान से सुनो।
10 तुम अब निश्चिन्त बैठी हो, किन्तु एक वर्ष से थोड़ा अधिक समय बीतने पर तुम भय से काँपोगी। दाखबारियाँ निराश करेंगी और अंगूर की फ़सल नहीं होगी।
11 अकर्मण्य स्त्रियों! थर्राओ। निश्चिन्त युवतियो! भय से काँपो¨। अपने वस्त्र उतार कर कमर में टाट ओढ़ लो।
12 छाती पीटते हुए विलाप करो- रमणीय खेतों के लिए, उपजाऊ दाखबारियों के लिए,
13 मेरी प्रजा की भूमि के लिए, जहाँ झाड़-झंखाड़ उठ रहा है। आनन्दमय घरों के लिए और उत्सवप्रिय नगरी के लिए शोक मनाओ।
14 राजमहल का परित्याग हो चुका है, कोलाहल-भरा नगर उजाड़ पड़ा है: क़िला और बुर्ज गधों के अड्डे बन गये और पशुओं के चरागाह।
15 यह दशा तब तक बनी रहेगी, जब तक हमें ऊपर की ओर आत्मा का वरदान नहीं मिलेगा। तब मरुभूमि फल-उद्यान बन जायेगी और फल-उद्यान वन में बदल जायेगा।
16 न्याय मारुभूमि में निवास करेगा और धर्मिकता फल-उद्यान में।
17 धर्मिकता शान्ति उत्पन्न करेगी और न्याय चिरस्थायी सुरक्षा।
18 मेरी प्रजा शान्तिमय प्रदेश में, सुरक्षित भवनों तथा सुरम्य स्थानों में निवास करेगी।
19 यद्यपी ओलों की वर्षा वन का विनाश करेगी और नगर पूरी तरह नष्ट कर दिया जायेग,
20 किन्तु उन्हें सुख-शान्ति प्राप्त होगी। जहाँ कहीं जल होगा, तुम खेती करोगे और तुम्हारे गाय-बैल और गधे स्वच्छन्द चरेंगे।