इसायाह का ग्रन्थ

अध्याय : 12345678910111213141516171819202122 •  2324252627282930313233343536373839404142434445464748495051525354555657585960616263646566 पवित्र बाईबल

अध्याय 54

1 “बन्ध्या! तुझे कभी पुत्र नहीं हुआ। अब आनन्द मना। तूने प्रसवपीड़ा का अनुभव नहीं किया। उल्लास के गीत गा, क्योंकि प्रभु यह कहता है, -’विवाहिता की अपेक्षा परित्यक्ता के अधिक पुत्र होंगे।’

2 “अपने शिविर का क्षेत्र बढ़ा। अपने तम्बू के कपड़े फैला। उसके रस्से और लम्बे कर। उसकी खूँटियाँ और दृढ़ कर;

3 क्योंकि तू दायें और बायें फैलेगी। तेरा वंश राष्ट्रों को अपने अधीन करेगा और तेरी सन्तति उजाड़ नगरों में बस जायेगी।

4 “डर मत- तुझे निराशा नही होगी। घबरा मत- तुझे लज्जित नहीं होना पड़ेगा। तू अपनी तरुणाई का कलंक भूल जायेगी, तुझे अपने विधवापन की निन्दा याद नहीं रहेगी।

5 “तेरा सृष्टिकर्ता ही तेरा पति है। उसका नाम है- विश्वमण्डल का प्रभु। इस्राएल का परमपावन ईश्वर तेरा उद्धार करता है। वह समस्त पृथ्वी का ईश्वर कहलाता है।

6 “परित्यक्ता स्त्री की तरह दुःख की मारी! प्रभु तुझे वापस बुलाता है। क्या कोई अपनी तरुणाई की पत्नी को भुला सकता है?“ यह तेरे ईश्वर का कथन है।

7 “मैंने थोड़ी ही देर के लिए तुझे छोड़ा था। अब मैं तरस खा कर, तुझे अपने यहाँ ले जाऊँगा।

8 मैंने क्रेाध के आवेश में क्षण भर तुझ से मुँह फेर लिया था। अब मैं अनन्त प्रेम से तुझ पर दया करता रहूँगा।“ यह तेरे उद्धारकर्ता ईश्वर का कथन है।

9 “नूह के समय मैंने शपथ खा कर कहा था कि प्रलय की बाढ़ फिर पृथ्वी पर नहीं आयेगी। उसी तरह मैं शपथ खा कर कहता हूँ कि मैं फिर तुझ पर क्रोध नहीं करूँगा और फिर तुझे धमकी नहीं दूँगा।

10 “चाहे पहाड़ टल जायें और पहाड़ियाँ डाँवाडोल हो जायें, किन्तु तेरे प्रति मेरा प्रेम नहीं टलेगा और तेरे लिए मेरा शान्ति-विधान नहीं डाँवाडोल होगा।“ यह तुझ पर तरस खाने वाले प्रभु का कथन है।

11 “दुर्भाग्यशालिनी! आँधी और दुःख की मारी! मैं तेरे पत्थर चुन-चुन कर लगवा दूँगा और तेरी नींव नीलमणियों पर डालूँगा।

12 मैं तेरे कंगूरे लालमणियों से, तेरे फाटक स्फटिक से और तेरे परकोटे रत्नों से बनाऊँगा।

13 तेरी प्रजा प्रभु से शिक्षा ग्रहण करेगी और उसकी सुख-शान्ति की सीमा नहीं रहेगी।

14 तेरी नींव न्याय पर डाली जायेगी। तुझे कोई नहीं सतायेगा, तू कभी भयभीत नहीं होगी। आतंक तुझ से कोसों दूर रहेगा।

15 यदि कोई तुझ पर आक्रमण करेगा, तो वह मुझ से प्रेरित नहीं होगा, तुझ पर जो आक्रमण करेगा, उसका तेरे कारण विनाश हो जायेगा।

16 देख, मैंने लोहार की सृष्टि की, जो कोयले में आग सुलगा कर युद्ध के लिए उत्तम शस्त्र बनाता है। मैंने सब कुछ का विनाश करने वाले विध्वसंक की भी सृष्टि की है।

17 तेरे विरुद्ध गढ़ा हुआ कोई शस्त्र सफल नहीं होगा। जो तुझ पर अभियोग लगाता है, तू उसका खण्डन करेगी। यह प्रभु के सेवकों का भाग्य है। मैं, प्रभु, उन्हें न्याय दिलाता हूँ।“ यह प्रभु का कथन है।