इसायाह का ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • 51 • 52 • 53 • 54 • 55 • 56 • 57 • 58 • 59 • 60 • 61 • 62 • 63 • 64 • 65 • 66 • पवित्र बाईबल
अध्याय 9
1 अन्धकार में भटकने वाले लोगों ने एक महती ज्योति देखी है, अन्धकारमय प्रदेश में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है।
2 तूने उन लोगों का आनन्द और उल्लास प्रदान किया है। जैसे फ़सल लुनते समय या लूट बाँटते समय उल्लास होता है, वे वैसे ही तेरे सामने आनन्द मना रहे हैं।
3 उन पर रखा हुआ भारी जूआ, उनके कन्धों पर लटकने वाली बहँगी, उन पर अत्याचार करने वाले का डण्डा- यह सब तूने तोड़ डाला है, जैसा कि मिदयान के दिन हुआ था।
4 सैनिकों के सभी भारी जूते और समस्त रक्त-रंजित वस्त्र जला दिये गये हैं।
5 यह इस लिए हुआ कि हमारे लिए एक बालक उत्पन्न हुआ है, हम को एक पुत्र मिला है। उसके कन्धों पर राज्याधिकार रखा गया है और उसका नाम होगा- अपूर्व परामर्शदाता, शक्तिशाली ईश्वर, शाश्वत पिता, शान्ति का राजा।
6 वह दऊद के सिंहासन पर विराजमान हो कर सदा के लिए शन्ति, न्याय और धार्मिकता का साम्राज्य स्थापित करेगा। विश्वमण्डल के प्रभु का अनन्य प्रेम यह कार्य सम्पन्न करेगा।
7 प्रभु ने याकूब के विरुद्ध एक सन्देश भेजा है, वह इस्राएल में चरितार्थ होगा।
8 एफ्रईम की सारी जनता और समारिया के सभी निवासी, उनका अनुभव करेंगे, जो अपने घमण्ड और अहंकार में कहते हैं,
9 “ईंट की दीवारें गिर गयी हैं, हम पत्थरों से उनका पुनर्निर्माण करेंगे; गूलर के पेड़ कट गये हैं, हम उनकी जगह देवदार लगायेंगे”।
10 किन्तु प्रभु ने उनके विरोधियों को भड़काया और उनके शत्रुओं को उनके विरुद्ध खड़ा किया है, जिससे वे इस्राएल को फाड़ कर खा जायेंः
11 पूर्व में अरामियों को ओर पश्चिम में फ़िलिस्तयों को। फिर भी उसका क्रोध शान्त नहीं होता, उसका हाथ उठा रहता है।
12 किन्तु ये लोग अपने को मारने वाले की ओर नहीं अभिमुख हुए हैं; उन्होंने सर्वशक्तिमान् प्रभु की शरण नहीं ली।
13 इसलिए प्रभु ने एक ही दिन इस्राएल का सिर और पूँछ, खजूर और सरकण्डा, दोनों को काटा है।
14 नेता और प्रतिष्ठित लोग सिर हैं, झूठी शिक्षा देने वाले नबी पूँछ हैं।
15 इस प्रजा के पथप्रदर्शकों ने उसे भटकाया और भटकायी हुई प्रजा नष्ट हो गयी है।
16 प्रभु उसके युवकों पर प्रसन्न नहीं होगा, वह उसके अनाथों और विधवाओं पर दया नहीं करेगा; क्योंकि सब-के-सब अधर्मी और अपराधी हैं, सभी व्यक्ति मूर्खतापूर्ण बातें करते हैं। फिर भी उसका क्रोध शान्त नहीं होता, उसका हाथ उठा रहता है।
17 दुष्टता उस आग की तरह जलती है, जो कँटीले झाड़-झंखाड़ भस्म कर देती और जंगल की झाडियाँ जला कर धूएँ के बादलों में उड़ा देती है।
18 सर्वशक्तिमान् प्रभु का क्रोध देश को झुलसाता है। प्रजा आग का शिकार बनती है। कोई अपने भाई पर दया नहीं करता ।
19 लोग दाहिनी ओर से छीन कर खाते हैं और भूखे रह जाते हैं। वे बायीं और से फाड कर खाते है और तृप्त नहीं होते । सभी अपने पड़ोसी को खाते हैं।
20 मनस्से एफ्रईम को खाता है और एफ्रईम मनस्से को। वे मिल कर यूदा पर टूट पड़ते हैं। फिर भी उसका क्रोध शान्त नहीं होता, उसका हाथ उठा रहता है।