30 जनवरी 2023 – सामान्य काल का चौथा सप्ताह, सोमवार
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📒 पहला पाठ : इब्रानियो 11:32-40
32) मैं और क्या कहूँ? गिदियोन, बराक, समसोन, यिफ़्तह, दाऊद, समूएल और अन्य नबियों की चरचा करने की मुझे फुरसत नहीं।
33) उन्होंने अपने विश्वास द्वारा राज्यों को अपने अधीन कर लिया, न्याय का पालन किया, प्रतिज्ञाओं का फल पाया, सिंहों का मुँह बन्द दिया
34) और प्रज्वलित आग बुझायी। वे तलवार की धार से बच गये और दुर्बल होने पर भी शक्तिशाली बन गये। उन्होंने युद्ध में वीरता का प्रदर्शन किया और विदेशी सेनाओं को भगा दिया।
35) स्त्रियों ने अपने पुनर्जीवित मृतकों को फिर प्राप्त किया। कुछ लोग यन्त्रणा सह कर मर गये और उस से इसलिए छुटकारा नहीं चाहते थे कि उन्हें श्रेष्ठतर पुनरुत्थान प्राप्त हो।
36) उपहास, कोड़ों, बेडि़यों और बन्दीगृह द्वारा कुछ लोगों की परीक्षा ली गयी है।
37) कुछ लोग पत्थरों से मारे गये, कुछ आरे से चीर दिये गये और कुछ तलवार के घाट उतारे गये। कुछ लोग दरिद्रता, अत्याचार और उत्पीड़न के शिकार बन कर भेड़ों और बकरियों की खाल ओढ़े इधर-उधर भटकते रहे।
38) संसार उनके योग्य नहीं था। उन्हें उजाड़ स्थानों, पहाड़ी प्रदेशों, गुफाओं और धरती के गड्ढों की शरण लेनी पड़ी।
39) वे सभी अपने विश्वास के कारण ईश्वर के कृपापात्र बने गये। फिर भी उन्हें प्रतिज्ञा का फल प्राप्त नहीं हुआ
40) क्योंकि ईश्वर ने हम को दृष्टि में रख कर एक श्रेष्ठत्तर योजना बनायी थी। वह चाहता था कि वे हमारे साथ ही पूर्णता तक पहुँचे।
📚 सुसमाचार : सन्त मारकुस 5:1-20
(1) ईसा यह विशाल जनसमूह देखकर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गए। उनके शिष्य उनके पास आये।
(2) और वे यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगेः
(3) “धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
(4) धन्य हैं वे जो नम्र हैं! उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।
(5) धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं! उन्हें सान्त्वना मिलेगी।
(6) घन्य हैं, वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं! वे तृप्त किये जायेंगे।
(7) धन्य हैं वे, जो दयालू हैं! उन पर दया की जायेगी।
(8) धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल हैं! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।
(9) धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं! वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
(10) धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
(11) धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं।
(12) खुश हो और आनन्द मनाओ – स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा। तुम्हारे पहले के नबियों पर भी उन्होंने इसी तरह अत्याचार किया।
(13) “तुम पृथ्वी के नमक हो। यदि नमक फीका पड़ जाये, तो वह किस से नमकीन किया जायेगा? वह किसी काम का नहीं रह जाता। वह बाहर फेंका और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाता है।
(14) “तुम संसार की ज्योति हो। पहाड़ पर बसा हुआ नगर छिप नहीं सकता।
(15) लोग दीपक जला कर पैमाने के नीचे नहीं, बल्कि दीवट पर रखते हैं, जहाँ से वह घर के सब लोगों को प्रकाश देता है।
(16) उसी प्रकार तुम्हारी ज्योति मनुष्यों के सामने चमकती रहे, जिससे वे तुम्हारे भले कामों को देख कर तुम्हारे स्वर्गिक पिता की महिमा करें।
(17) “यह न समझो कि मैं संहिता अथवा नबियों के लेखों को रद्द करने आया हूँ। उन्हें रद्द करने नहीं, बल्कि पूरा करने आया हूँ।
(18) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – आकाश और पृथ्वी भले ही टल जाये, किन्तु संहिता की एक मात्रा अथवा एक बिन्दु भी पूरा हुए बिना नहीं टलेगा।
(19) इसलिए जो उन छोटी-से-छोटी आज्ञाओं में एक को भी भंग करता और दूसरों को ऐसा करना सिखाता है, वह स्वर्गराज्य में छोटा समझा जायेगा। जो उनका पालन करता और उन्हें सिखाता है, वह स्वर्गराज्य में बड़ा समझा जायेगा।
(20) मैं तुम लोगों से कहता हूँ – यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फ़रीसियों की धार्मिकता से गहरी नहीं हुई, तो तुम स्वर्गराज्य में प्रवेश नहीं करोगे।