यिरमियाह का ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42 • 43 • 44 • 45 • 46 • 47 • 48 • 49 • 50 • 51 • 52 • पवित्र बाईबल
अध्याय 5
1 “येरुसालेम की हर गली में जाओ; देखो और पता लगाओ; उसके चैकों में खोजोः यदि तुम को एक भी ऐसा व्यक्ति मिले, जो न्यायी और और सत्यनिष्ठ हो, तो मैं इस नगर को क्षमा प्रदान करूँगा।
2 वे जीवन्त ईश्वर की शपथ खाते हैं, किन्तु उनकी शपथें झूठी हैं।“
3 प्रभु! क्या तेरी आँखें सत्य की खोज नहीं करतीं? तूने उन्हें मारा, किन्तु उन्हें दुःख का अनुभव नहीं हुआ। तूने उन्हें रौंदा, किन्तु उन में सुधार नहीं हुआ। उन्होंने अपना मन पत्थर से भी कठोर बना लिया और पाश्चाताप करना अस्वीकार किया।
4 मैंने सोचा, “ये तो साधारण लोग हैं और कुछ नहीं समझते। ये प्रभु का मार्ग नहीं जानते और उसके आदेशों से अपरिचित हैं।
5 इसलिए अब मैं बड़ों के पास जाऊँगा और उन से बात करूँगा। वे तो प्रभु का मार्ग जानते हैं और उसके आदेशों से परिचित हैं।“ किन्तु सब ने एकमत हो कर जूआ तोड़ डाला और अपने बन्धन काट दिये हैं।
6 इसलिए जंगल का सिंह उन्हें मार गिरायेगा; मैंदान का भेड़िया उनका चीर-फाड़ करेगा; चीता उनके नगरों के पास घात लगाये बैठा रहेगा और जो कोई बाहर निकलेगा, वह टुकड़े-टुकड़े कर दिया जायेगा; क्योंकि उन्होंने बारम्बार विद्रोह किया और उनके अपराध असंख्य हैं।
7 “मैं तुझे क्यों क्षमा प्रदान करूँ? तेरे पुत्र मेरा परित्याग करते और झूठे देवताओं की शपथ खाते हैं। मैंने उनकी सब आवश्यकताओं को पूरा किया, फिर भी वे व्यभिचार करते और भीड़ लगा कर वेश्या के घर जाते हैं।
8 वे मोटे-ताजे मस्त घोड़ों की तरह अपने पड़ोसी की पत्नी पर हिनहिनाते हैं।
9 क्या मैं उन को दण्ड न दूँ और ऐसी प्रजा से प्रतिशोध न लूँ?“ यह प्रभु की वाणी है।
10 “उनकी दाखबारियों को लूटो, किन्तु उनका सर्वनाश मत करो। उनकी दाखलताएँ काट डालो; क्योंकि यह प्रजा ईश्वर की नहीं रही।
11 इस्राएल और यूदा के लोगों ने मेरे साथ घोर विश्वासघात किया।“ यह प्रभु की वाणी है।
12 उन्होंने यह कहते हुए प्रभु से विश्वासघात कियाः “वह कुछ नहीं करेगा। हम पर कोई विपत्ति नहीं आयेगी। हम तलवार या अकाल के शिकार नहीं बनेंगे।
13 नबी हवा मात्र हैं। उनके द्वारा प्रभु नहीं बोलता। वे जो धमकी देते हैं, वह उन में चरितार्थ हो।“
14 इसलिए सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः “क्योंकि तुम ऐसा कहते हो, मैं तुम्हारे मुँह में अपने शब्दों को आग और उन लोगों की लकड़ी बना दूँगा और वह आग उन लोगों को भस्म कर देगी।
15 इस्राएलियों! मैं तुम्हारे विरुद्ध एक दूरवर्ती राष्ट्र को भेजूँगा।“ यह प्रभु की वाणी है। “यह एक अजेय और प्राचीन राष्ट्र है, एक ऐसा राष्ट्र, जिसकी भाषा तुम नहीं जानते और जिसकी बातें तुम नहीं समझते।
16 उनका तरकश खुली हुई क़ब्र है। उनके सभी सैनिक शूरवीर हैं।
17 वे तुम्हारी फ़सल और रोटी खाते हैं, वे तुम्हारे पुत्र-पुत्रियों को खाते हैं। वे तुम्हारी भेड़-बकरियाँ और गाय-बैल खाते हैं। वे तुम्हारी दाखलता और अंजीर खाते हैं। जब वे तलवार के साथ आते हैं, तो वे तुम्हारे किलाबन्द नगर नष्ट करते हैं, जिन पर तुम भरोसा रखते हो।”
18 प्रभु यह कहता हैः “मैं उस समय भी तुम्हारा पूरी तरह विनाश नहीं करूँगा।
19 जब लोग यह पूछेंगे कि हमारे प्रभु-ईश्वर ने हमारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया, तो तुम उन को यह उत्तर दोगे, ’जैसे तुम लोगों ने मुझे त्याग कर अपने देश में पराये देवताओं की सेवा की है, वैसे ही तुम एक ऐसे देश में, जो तुम्हारा नहीं है, पराये लोगों की सेवा करोगे’।
20 “याकूब के वंशजों के सामने यह घोषित करो, यूदा में इसका प्रचार करोः
21 मूर्ख और नासमझ लोगो! जो आँखें रहते भी नहीं देखते, कान रहते भी नहीं सुनते, इस बात पर ध्यान दो।“
22 प्रभु कहता हैः “क्या तुम मुझ पर श्रद्धा नहीं रखते? क्या तुम मेरे सामने नहीं काँपते हो? मैंने रेती को समुद्र की सीमा निर्धारित किया, जिसे वह कभी पार नहीं कर सकेगा। चाहे लहरें कितना ही उछलें, उनका कुछ प्रभाव नहीं पड़ता। चाहे वे कितना ही गर्जन करें, वे उसे पार नहीं कर सकतीं।
23 किन्तु यह प्रजा हठीली और विद्रोही है, यह मुझे त्याग कर चली जाती है।
24 यह अपने मन में यह नहीं कहती, ’हम अपने प्रभु-ईश्वर पर श्रद्धा रखें, जो समय पर पानी बरसाता है- शिशिर ऋतु और वसन्त ऋतु की वर्षा, जिससे हमें निश्चित समय पर फसल मिलती है।’
25 तुम्हारे कुकर्मों के कारण समय पर वर्षा नहीं होती। तुम्हारे पापों ने तुम को उन वरदानों से वंचित कर दिया है।
26 “मेरी प्रजा के बीच दुष्टों की कमी नहीं, जो चिड़ीमारों की तरह झुक कर घात लगाये बैठे हैं। वे लोगों को फन्दे लगा कर फँसाते है।
27 पक्षियों से भरी टोकरी के समान उनके घर लूट के माल से भरे हैं। वे छल-कपट से धनी बने और समाज में बड़े समझे जाते हैं।
28 वे मोटे-ताजे हैं; उनके शरीर पर चरबी चढ़ गयी है। उनके कुकर्मों की सीमा नहीं। वे अनाथों को न्याय नहीं दिलाते और दरिद्रों के अधिकारों की रक्षा नहीं करते।
29 क्या मैं इसके लिए उन्हें दण्ड न दूँ,“ यह प्रभु की वाणी है। “क्या मैं ऐसी प्रजा से प्रतिशोध न लूँ?
30 इस देश में जो घटित हुआ है, वह भयंकर और घृणित है।
31 नबी झूठी भवियवाणियाँ करते हैं, याज़क भ्रष्टाचार करते हैं और मेरी प्रजा को यह सब प्रिय है। किन्तु तुम लोग अन्त में क्या करोगे?