यिरमियाह का ग्रन्थ

अध्याय : 12345678910111213141516171819202122 •  232425262728293031323334353637383940414243444546474849505152 पवित्र बाईबल

अध्याय 6

1 “बेनयामीन की प्रजा! येरुसालेम से भाग जाओ, सुरक्षा के लिए भाग जाओ! तकोआ में तुरही बजाओ! बेत-हक्केरेम में झण्डा फहाराओ; क्योंकि उत्तर दिशा से विपत्ति और घोर विध्वंस आने वाला है।

2 मैं सियोन की सुन्दरी सुकुमारी पुत्री का विनाश करूँगा।

3 चरवाहे अपने झुण्डों के साथ उसके विरुद्ध अभियान करेंगे। वे उसके चारों ओर अपने तम्बू खड़ा करेंगे और अपने-अपने हिस्से में अपनी भेड़ें चरायेंगे।“

4 “येरुसालेम से युद्ध की तैयारी करो। उठो, दोपहर में उस पर आक्रमण करो। हाय! दिन ढल रहा है और साँझ की छाया बढ़ती जा रही है।

5 उठो! घोर रात में आक्रमण करें और उसके सुन्दर भवन ढाह दें।“

6 सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः “येरुसालेम की घेराबन्दी करने के लिए वृक्ष काट डालो। उस नगर को अवश्य दण्ड दिया जायेगा; वह अत्याचार से भरा है।

7 जिस प्रकार स्रोत से जल उमड़ता रहता है, उसी प्रकार उस में से दुष्टता निकलती रहती है। वहाँ हिंसा और विनाश ही सुनाई पड़ता है। उसकी बीमारी और उसके घाव सदा मेरे सामने हैं।

8 येरुसालेम! चेतावनी पर ध्यान दो। नहीं तो मैं तुझ से विमुख हो जाऊँगा और तुझ को उजाड़ कर निर्जन स्थान बना दूँगा।“

9 सर्वशक्तिमान् प्रभु यह कहता हैः ’दाखलता के अंगूरों की तरह इस्राएल के बचे हुए लोगों को एकत्र करो। अंगूर तोड़ने वाले की तरह उन को ढूँढ़-ढूँढ कर निकालो।“

10 मैं किन को सम्बोधित कर उन्हें चेतावनी दूँ, जिससे वे सुनें? उनके कान बहरे हैं। वे सुन नहीं सकते। वे प्रभु की वाणी को फटकार समझते हैं और उसे सुनना नहीं चाहते।

11 प्रभु का क्रोध मुझ में भर गया, मैं उसे अपने में बन्द नहीं रख सकता। प्रभु यह कहता है: “उसे गलियों में बच्चों को सुनाओ और नवयुवकों के दलों को; क्योंकि पुरुष और स्त्रियाँ, पके बाल वाले और वृद्ध, सब-के-सब बन्दी बनाये जायेंगे।

12 उनके घर, उनके खेत और उनकी पत्नियाँ दूसरों को दी जायेंगी; क्योंकि मैं देश के सब निवासियों पर अपना हाथ उठाउँगा।“ यह प्रभु की वाणी है।

13 “छोटे और बड़े, सब-के-सब अनुचित लाभ के लोभी हैं। नबी और याजक, सब-के-सब कपटपूर्ण आचरण करते हैं।

14 वे ’शान्ति, शान्ति’ कहते हुए मेरी प्रजा के घाव भरना चाहते हैं, किन्तु शान्ति कहाँ है?

15 क्या उन्हें अपने आचरण पर लज्जा हुई है? नहीं! वे किंचित् भी लज्जित नहीं हैं, वे यह भी नहीं जानते कि लज्जा क्या है। इसलिए दूसरों के साथ उनका भी पतन होगा। जब मैं उन को दण्ड दूँगा, तो वे ठोकर खा कर गिर जायेंगे।“ यह प्रभु की वाणी है।

16 प्रभु यह कहता हैः “चैराहों पर खड़े हो कर देखो। परम्परागत पथों का पता लगाओ। सन्मार्ग पा कर उसका अनुसरण करो और तुम को शान्ति मिलेगी। किन्तु वे कहते हैं, ’हम उस पर नहीं चलेंगे’।

17 मैंने तुम लोगों के लिए पहरेदार नियुक्त कर दिये, जिससे वे तुरही बजा कर तुम को सचेत करें। किन्तु वे कहते हैं, “हम ध्यान नहीं देंगे।

18 इसलिए राष्ट्रो! सुनो और जान लो कि उन पर क्या बीतेगी।

19 पृथ्वी! सुनो। मैं इस प्रजा पर विपत्तियाँ भेजूँगा, मैं इसे विश्वासघात का फल दूँगा; क्योंकि यह मेरे कथन पर ध्यान नहीं देती और मेरे आदेशों का तिरस्कार करती है।

20 शेबा से लाये हुए लोबान या दूर देश से प्राप्त सुगन्धित द्रव्य से मुझे क्या? मैं तुम्हारी होम-बलियाँ नहीं चाहता, तुम्हारे चढ़ावों में मेरी कोई रूचि नहीं।“

21 इसलिए प्रभु यह कहता हैः “मैं इन लोगों के मार्ग में रोड़े अटकाऊँगा जिन से ठोकर खा कर पिता और पुत्र गिर पड़ेंगे, पड़ोसी और मित्र नष्ट हो जायेंगे।“

22 प्रभु यह कहता हैः “देखो, उत्तर से एक जाति चली आ रही है, एक महान राष्ट्र पृथ्वी के सीमान्तों से बढ़ता आ रहा है।

23 वे धनुष और बरछा धारण कर आ रहे हैं। वे कठोर हैं, उन में रंचमात्र दया नहीं। उनका कोलाहल समुद्र के गर्जन-जैसा है। वे घोड़ों पर सवार हैं। सियोन की पुत्री! वे तुझ पर आक्रमण करने पंक्तिबद्ध हो कर चले आ रहे हैं।“

24 हम उनके विषय में सुन कर निराश हो गये हैं। प्रसवपीड़िता की वेदना की तरह आतंक ने हमें घेर लिया है।

25 खेतों की ओर मत जाओ, सड़कों पर मत टहलो; क्योंकि शत्रु के हाथ में तलवार है। चारों ओर आतंक छाया हुआ है।

26 मेरी प्रजा! टाट के कपड़े पहन लो, राख में लोटो। एकलौते पुत्र की मृत्यु के अवसर पर विलाप करते हुए शोक मनाओ; क्योंकि विनाश करने वाला तुम पर अचानक टूट पड़ेगा।

27 “मैंने तुम को अपनी प्रजा की कच्ची धातु के पारखी के रूप में नियुक्त किया। तुम उसका आचरण देख कर उसकी परीक्षा लो।

28 वे सब हठीले विद्रोही हैं और जहाँ-तहाँ मेरी निन्दा करते हैं वे काँसा और लोहा हैं और दुराचरण करते रहते हैं।

29 धौंकनी ज़ोरो से फ़ूँकती है, आग सीसा पिघलाती है, किन्तु परिष्कार की क्रिया व्यर्थ है। दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं छोड़ते।

30 वे ’खोटी चाँदी’ कहलाते हैं, क्योंकि प्रभु ने सबों का परित्याग किया है।”