अय्यूब(योब) का ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42
अध्याय 12
1 तब अय्यूब ने उत्तर में कहाः
2 तुम लोग निस्सन्देह बुद्धिमान् हो! तुम्हारे मरने पर प्रज्ञा मर जायेगी!
3 किन्तु तुम्हारी तरह मुझ में भी बुद्धि है। मैं तुम लोगों से कम नहीं। ये सब बातें कौन नहीं जानता?
4 मैं अपने मित्रों के लिए हँसी का पात्र बन गया हूँ। मैंने ईश्वर की दुहाई दी और उसने मेरी सुनी थी। मैं धर्मी और निरपराध हूँ, फिर भी हँसी का पात्र हूँ।
5 जो लाग आराम का जीवन बिताते है, वे दुःखियों का तिरस्कार करते और फिसलने वालों पर हँसते हैं।
6 डाकुओं के तम्बुओं में कुशल-क्षेम हैं, ईश्वर को चिढ़ाने वाले सुरक्षित हैं, उन्हें किसी बात की कमी नहीं।
7 पशुओं से पूछो, वे तुम्हें सिखायेंगे; आकाश के पक्षियों से पूछो, वे तुम्हें बतायेंगे।
8 पृथ्वी से पूछो, वह तुम्हें सिखायेगी; समुद्र की मछलियाँ तुम्हें बतायेंगी।
9 उन में कोई नहीं, जो यह नहीं जानता कि यह ईश्वर का कार्य है।
10 उसी के हाथ हर प्राणी का जीवन है और हर मनुष्य की साँस।
11 क्या कान शब्द नहीं पहचानता और जीभ भोजन नहीं चखती?
12 क्या बूढ़ों में बुद्धि नहीं होती? क्या लम्बी आयु के साथ विवेक नहीं आता?
13 ईश्वर में ही प्रज्ञा और सामर्थ्य हैं, सत्परामर्श और विवेक उसी का है।
14 वह जिसे ढाता, वह फिर नहीं बनता; वह जिस मनुष्य को बन्दी बनाता, उसे कोई मुक्त नहीं कर सकता।
15 यदि वह पानी रोक लेता, तो सूखा है; यदि वह उसे बहने दे तो बाढ होती है।
16 सामर्थ्य और विजय उसी की है; धोखा खाने वाला और धोखा देने वाला, दोनों उसके अधीन हैं।
17 वह परामर्शदाताओं को विवेकहीन और न्यायाधीशों को मूर्ख बना देता है।
18 वह राजाओं का अधिकार भंग करता और उन्हें निर्वासित कर देता है।
19 वह याजकों को विवेकहीन बनाता और शासकों को उनके आसनों से गिराता है।
20 वह वक्ताओं का मुँह बन्द करता और बूढ़ों का विवेक हर लेता है।
21 वह कुलीनों को घृणा का पात्र बनाता और शक्तिशालियों के शस्त्र छीनता है।
22 वह अगाध गर्त का अन्धकार दूर करता और मृत्यु की छाया प्रकाशमय कर देता है।
23 वह राष्ट्रों को महान् बना कर उनका सर्वनाश करता है; वह उनकी सीमाएँ बढ़ा कर उन्हें निर्वासित करता है।
24 वह संसार के नेताओं की बुद्धि छीन लेता और उन्हें मार्गहीन उजाड़खण्डों में भटकाता है।
25 वे घोर अंधकार में टटोलते-फिरते हैं और मद्यपों की तरह लड़खड़ाते हैं।