अय्यूब(योब) का ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42
अध्याय 14
1 स्त्री से उत्पन्न मानव थोड़े दिनों का है और कष्टों से घिरा है।
2 वह फूल की तरह खिल का मुरझाता, छाया की तरह शीघ्र ही विलीन हो जाता है।
3 क्या तू ऐसे मनुष्य पर ध्यान देता और उसे न्याय के लिए अपने सामने बुलाता है?
4 क्या कोई अशुद्ध से शुद्ध निकाल सकता है? नहीं! कोई नहीं!
5 तूने उनके जीवन के दिनों और महीनों की संख्या निश्चित की है। वह तेरे द्वारा निर्धारित सीमा पार नहीं कर सकता।
6 इसलिए उस से अपनी दृष्टि हटा ले, उसे रहने दे, जिससे वह किराये के मज़दूर की तरह अपना समय पूरा करे।
7 वृक्ष के लिए आशा रहती है। वह कट जाने पर फिर हरा होता और उस में से अंकुर निकलते हैं।
8 उसकी जड़ें भले ही जीर्ण हो गयी हों, उसका ठूँठ मिट्टी में सूख गया हो,
9 फिर भी वह पानी की गन्ध मिलते ही पनप उठेगा और उस में नये पौधे की तरह अंकुर फूटेंगे।
10 किन्तु मनुष्य मर कर पड़ा रहता है, वह प्राण निकलते ही समाप्त हो जाता है।
11 भले ही समुद्र से पानी लुप्त हो जाये और नदी तप कर सूख जाये,
12 फिर भी मृतक पडे़ रहेंगे और नहीं उठ पायेंगे। जब तक आकाश का अन्त नहीं होगा, वे नहीं जागेंगे; उनकी नींद नहीं टूटेगी।
13 ओह! यदि तू मुझे अधोलोक में छिपाता! अपना क्रोध शान्त हो जाने तक कहीं आश्रय देता! यदि तू एक अवधि निश्चित करता, जब तू मुझे फिर याद करता!
14 यदि मनुष्य मर कर पुनर्जीवित होता, तो मैं अपने पूरे सेवाकाल में तब तक प्रतीक्षा करता रहता, जब तक उस से मेरी मुक्ति का समय नहीं आ जाता।
15 तू मुझे बुलाता और मैं उत्तर देता; तू अपने हाथों की कृति की प्रतीक्षा करता।
16 तब तू मेरा एक-एक क़दम नहीं गिनता, बल्कि मेरा पाप अनदेखा करता।
17 तू मेरा अपराध थैली में मुहरबन्द करता और मेरा अधर्म ढक देता!
18 जिस तरह पहाड़ टूट कर टुकड़े-टुकड़े हो जाता और चट्टान अपने स्थान से हट जाती है;
19 जिस तरह वर्षा पत्थर को घिस देती और जलधाराएँ मिट्टी बहा ले जाती हैं, उसी तरह तू मनुष्य की आशा चकनाचूर कर देता है।
20 तू उसे मारता और वह सदा के लिए चला जाता है। तू उनका चेहरा बिगाड़ कर उसे भगा देता है।
21 उसके पुत्र सम्मानित है, तो इसे इसका पता नहीं चलता। वे तिरस्कृत हो जाते हैं, किन्तु उसे इसकी जानकारी नहीं होती।
22 उसे केवल अपने ही शरीर की पीड़ा का अनुभव होता है। वह अपने लिए ही शोक मनाता है।