अय्यूब(योब) का ग्रन्थ

अध्याय : 1234567891011121314151617181920 21222324252627282930313233343536373839404142

अध्याय 17

1 मेरा मन टूट गया है, मेरे दिन समाप्त हो रहे हैं, मेरी लिए क़ब्र रही बाक़ी है।

2 मेरे निन्दक मेरे चारों ओर खड़े हैं, उनका उपहास मुझे सोने नहीं देता।

3 प्रभु! तू ही मेरे लिए ज़मानत दे, मेरे लिए ऐसा कोई भी नहीं करेगा।

4 तूने उनकी बुद्धि कुण्ठित कर दी, इसलिए तू उन्हें विजय नहीं दिला।

5 जो मनुष्य झूठ बोल कर अपने मित्र की सम्पत्ति हरता है, वह दोषी है और उसकी सन्तान दुःख में दिन काटेगी।

6 मैं सब के लिए उपहास का पात्र बन गया हूँ लोग मेरे मुँह पर थूकते हैं।

7 मेरी आँखें दुःख के कारण धुंँधला गयी हैं। मेरे अंग घुल कर छाया मात्र हो गये हैं।

8 धर्मी लोग यह देख कर दंग रह जाते हैं और निर्दोष के मन में पाखण्डी के प्रति क्षोभ उत्पन्न होता है,

9 फिर भी धर्मात्मा अपने मार्ग से नहीं भटकेगा; जिसने हाथ निर्दोष हैं, उसका बल बढ़ता ही जायेगा।

10 तुम सब आओं और अपने तर्क फिर प्रस्तुत करो। तुम लोगों में एक भी बुद्धिमान नहीं मिलेगा।

11 मेरे दिन बीत चुके हैं, मेरी योजनाएँ और मेरे मन के सभी स्वप्न मिट गये हैं।

12 किन्तु वे रात को दिन में बदलते है। वे कहते हैं कि प्रकाश हाने वाला है, जब कि अन्धकार छा जाता हैं।

13 मुझे कोई आशा नहीं रही। अधोलोक मेरा आवास है, जहाँ मेरा बिस्तर बिछाया गया है।

14 मैं क़ब्र से बोला, “तू मेरा पिता है!” कीड़ों से, “तुम मेरी माँ या बहनें हो!”

15 इसलिए कहाँ है मेरी आशा? मेरा सौभाग्य कौन देख सकता है?

16 वे मेरे साथ अधोलोक में उतरेंगे। वे मेरे साथ मिट्टी में मिल जायेंगे।