अय्यूब(योब) का ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42• पवित्र बाइबल
अध्याय 2
1 एक दिन फिर ऐसा हुआ कि स्वर्गदूत प्रभु के सामने उपस्थित हुए। शैतान भी उनके साथ आया।
2 प्रभु ने शैतान से कहा, “तुम कहाँ से आये हो?” शैतान ने प्रभु को उत्तर दिया, “मैंने पृथ्वी का पूरा चक्कर लगाया”।
3 प्रभु ने शैतान से कहा, “क्या तुमने मेरे सेवक अय्यूब पर ध्यान दिया है? पृथ्वी भर में उसके समान कोई नहीं; वह निर्दोष और निष्कपट है, वह ईश्वर पर श्रद्धा रखता और बुराई से दूर रहता है। तुमने अकारण ही उसकी तबाही करने के लिए मुझे उकसाया है, फिर भी वह पहले की तरह निर्दोष है।”
4 शैतान ने प्रभु को उत्तर दिया, “चमड़ी के बदले चमड़ी। मनुष्य अपने प्राण बचाने के लिए अपना सर्वस्व दे देगा।
5 आप हाथ बढ़ा कर उसके शरीर पर प्रहार कीजिए, तो वह निश्चिय ही आपके मुँह पर आपकी निन्दा करेगा।”
6 प्रभु ने शैतान से कहा, “अच्छा! मैं उसे तुम्हारे हवाले करता हूँ; किन्तु तुम उसे जीवित रहने दो”।
7 इसके बाद शैतान प्रभु के सामने से चला गया और उसने अय्यूब को सिर से पैर तक दर्दनाक फोड़ों से भर दिया।
8 अय्यूब राख के ढेर पर बैठ कर एक ठीकरे से फोड़े साफ करने लगा।
9 उसकी पत्नी ने उस से कहा, “क्या तुम अब तक अपने को निर्दोष मानते हो? ईश्वर की निन्दा करो और मर जाओ।”
10 अय्यूब ने उत्तर दिया, “तुम मूर्ख स्त्री की तरह बकती हो। हम ईश्वर से सुख स्वीकार करते हैं, तो दुःख क्यों न स्वीकार करें?” इतना होने पर भी अय्यूब ने अपने मुँह से कोई पाप नहीं किया।
11 जब अय्यूब के तीन मित्रों ने उसकी समस्त विपत्तियों के बारे में सुना, तो वे अपने-अपने यहाँ से उसके पास आयेः तेमा से एलीफ़ज़, शुअह से बिलदद और नामात में सोफ़र। उन्होंने मिल कर संवेदना प्रकट करने और सान्त्वना देने के लिए उसके पास जाने का निश्चय किया।
12 जब वे उसे दूर से देख कर पहचान तक न पाये, तो ज़ोरों से रोने लगे। उन्होंने अपने-अपने वस्त्र फाडे़ और आसमान की ओर राख फेंक कर उसे अपने सिर पर डाल लिया।
13 वे उसके पास सात दिन और सात रात जमीन पर बैठे रहे। उन में कोई भीउस से एक शब्द तक न बोल सका; क्योंकि उन्होंने अनुभव किया कि उसका दुःख अपार है।