अय्यूब(योब) का ग्रन्थ
अध्याय : 1 • 2 • 3 • 4 • 5 • 6 • 7 • 8 • 9 • 10 • 11 • 12 • 13 • 14 • 15 • 16 • 17 • 18 • 19 • 20 • 21 • 22 • 23 • 24 • 25 • 26 • 27 • 28 • 29 • 30 • 31 • 32 • 33 • 34 • 35 • 36 • 37 • 38 • 39 • 40 • 41 • 42
अध्याय 23
1 तब अय्यूब ने उत्तर देते हुए कहा:
2 आज भी मेरी वाणी में विद्रोह है। उसका हाथ मुझ अभागे पर भारी है।
3 ओह! यदि मैं जानता कि वह कहाँ मिलेगा, तो मैं उसके सामने उपस्थित हो जाता।
4 मैं अपना मामला पेश करता और अपनी सफ़ाई में अनेक तर्क प्रस्तुत करता।
5 तब मैं उसका उत्तर सुनता और उसके शब्दों पर विचार करता।
6 क्या वह मुझ पर कठोर अभियोग लगाता? कभी नहीं! वह ध्यान से मेरी बात सुनता।
7 वहाँ निष्कपट व्यक्ति अपना पक्ष प्रस्तुत करता और मैं अपने न्यायकर्ता के सामने निर्दोष ठहरता।
8 मैं जब पूर्व की ओर जाता हूँ, तो वह नहीं मिलता; पश्चिम की ओर जाता हूँ, तो वह मुझे वहाँ नहीं दिखाई देता।
9 मैं उसे उत्तर में खोजता, किन्तु उसे वहाँ नहीं देखता; मैं लौट कर उसे दक्षिण में ढूँढ़ता, किन्तु वह नहीं मिलता।
10 फिर भी वह मेरा आचरण जानता है। मैं उसकी परीक्षा में स्वर्ग की तरह शुद्ध ठहरूँगा।
11 मैं उसके पदचिन्हों पर चलता रहा, मेरे पैर उसके मार्ग से नहीं भटके।
12 मैं उसकी आज्ञाओं के पालन से विचलित नहीं हुआ, मैंने उसके वचनों को अपने हृदय में संचित रखा।
13 किन्तु वह प्रभु है। उसका विरोध कौन करेगा? वह जो चाहता है, वही हो कर रहेगा।
14 वह अपने मन की अन्य योजनाओं की तरह मेरे विषय में भी अपनी योजना पूरी करेगा।
15 मैं उसके सामने आतंक से काँपता हूँ; मैं जितना अधिक सोचता हूँ, उतना अधिक भयभीत हो जाता हूँ।
16 ईश्वर ने मेरा साहस छीन लिया, सर्वशक्तिमान् ने मुझे आतंकित कर दिया।
17 फिर भी अन्धकार ने मुझे नहीं डराया, बल्कि मैं अज्ञात भविष्य से घबराता हूँ।