जुलाई 01, 2023, शनिवार
वर्ष का बारहवाँ सप्ताह
📒 पहला पाठ : उत्पत्ति 18:1-15
1) इब्राहीम मामरे के बलूत के पास दिन की तेज गरमी के समय अपने तम्बू के द्वार पर बैठा हुआ था कि प्रभु उस को दिखाई दिया।
2) इब्राहीम ने आँख उठा कर देखा कि तीन पुरुष उसके सामने खडे हैं। उन्हें देखते ही वह तम्बू के द्वार से उन से मिलने के लिए दौड़ा और दण्डवत् कर
3) बोला, ”प्रभु! यदि मुझ पर आपकी कृपा हो, तो अपने सेवक के सामने से यों ही न चले जायें।
4) आप आज्ञा दे, तो मैं पानी मंगवाता हूँ। आप पैर धो कर वृक्ष के नीचे विश्राम करें।
5) इतने में मैं रोटी लाऊँगा। आप जलपान करने के बाद ही आगे बढ़ें। आप तो इसलिए अपने सेवक के यहाँ आए हैं।”
6) उन्होंने उत्तर दिया, ”तुम जैसा कहते हो, वैसा ही करो”। इब्राहीम ने तम्बू के भीतर दौड़ कर सारा से कहा ”जल्दी से तीन पसेरी मैदा गूंध कर फुलके तैयार करो”।
7) तब इब्राहीम ने ढोरों के पास दौड़ कर एक अच्छा मोटा बछड़ा लिया और नौकर को दिया, जो उसे जल्दी से पकाने गया।
8) बाद में इब्राहीम ने दही, दूध और पकाया हुआ बछड़ा ले कर उनके सामने रख दिया और जब तक वे खाते रहे, वह वृक्ष के नीचे खड़ा रहा।
9) उन्होंने इब्राहीम से पूछा, ”तुम्हारी पत्नी सारा कहाँ है?” उसने उत्तर दिया, ”वह तम्बू के अन्दर है”।
10) इस पर अतिथि ने कहा, ”मैं एक वर्ष के बाद फिर तुम्हारे पास आऊँगा। उस समय तक तुम्हारी पत्नी को एक पुत्र होगा।”
11) इब्राहीम और सारा, दोनो बूढ़े हो चले थे; उनकी आयु बहुत अधिक हो गयी थी और सारा का मासिक धर्म बन्द हो गया था।
12) इसलिए सारा हँसने लगी और उसने अपने मन में कहा, ”क्या मैं अब भी पति के साथ रमण करूँ? मैं तो मुरझा गयी हूँ और मेरा पति भी बूढ़ा हो गया है।”
13) किन्तु प्रभु ने इब्राहीम से कहा, ”सारा यह सोच कर क्यों हँसी कि क्या सचमुच बुढ़ापे में भी मैं माता बन सकती हूँ?
14) क्या प्रभु के लिए कोई बात कठिन है? मैं अगले वर्ष इसी समय तुम्हारे यहाँ फिर आऊँगा और तब सारा को एक पुत्र होगा।”
15) सारा ने कहा, ”मैं नहीं हँसी”, क्योंकि वह डर गयी। किन्तु उसने उत्तर दिया, ”तुम निश्चय ही हँसी थी।”
📒 सुसमाचार : मत्ती 8:5-17
5) ईसा कफरनाहूम में प्रवेश कर ही रहे थे कि एक शतपति उनके पास आया और उसने उन से यह निवेदन किया,
6) “प्रभु! मेरा नौकर घर में पड़ा हुआ है। उसे लक़वा हो गया है और वह घोर पीड़ा सह रहा है।”
7) ईसा ने उस से कहा, “मैं आ कर उसे चंगा कर दूँगा”।
8) शतपति नें उत्तर दिया, “प्रभु! मैं इस योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे यहाँ आयें। आप एक ही शब्द कह दीजिए और मेरा नौकर चंगा हो जायेगा।
9) मैं एक छोटा-सा अधिकारी हूँ। मेरे अधीन सिपाही रहते हैं। जब मैं एक से कहता हूँ – ’जाओ’, तो वह जाता है और दूसरे से- ’आओ’, तो वह आता है और अपने नौकर से-’यह करो’, तो वह यह करता है।”
10) ईसा यह सुन कर चकित हो गये और उन्होंने अपने पीछे आने वालों से कहा, “मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ – इस्राएल में भी मैंने किसी में इतना दृढ़ विश्वास नहीं पाया”।
11) “मैं तुम से कहता हूँ – बहुत से लोग पूर्व और पश्चिम से आ कर इब्राहीम, इसहाक और याकूब के साथ स्वर्गराज्य के भोज में सम्मिलित होंगे,
12) परन्तु राज्य की प्रजा को बाहर, अन्धकार में फेंक दिया जायेगा। वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।”
13) शतपति से ईसा ने कहा, “जाइए आपने जैसा विश्वास किया, वैसा ही हो जाये।” और उस घड़ी उसका नौकर चंगा हो गया।
14) पेत्रुस के घर पहुँचने पर ईसा को पता चला कि पेत्रुस की सास बुखार में पड़ी हुई है।
15) उन्होंने उसका हाथ स्पर्श किया और उसका बुखार जाता रहा और वह उठ कर उनके सेवा-सत्कार में लग गयी।
16) संध्या होने पर लोग बहुत-से अपदूतग्रस्तों को ईसा के पास ले आये। ईसा ने शब्द मात्र से अपदूतों को निकाला और सब रोगियों को चंगा किया।
17) इस प्रकार नबी इसायस का यह कथन पूरा हुआ- उसने हमारी दुर्बलताओं को दूर कर दिया और हमारे रोगों को अपने ऊपर ले लिया।