पहला पाठ : होशेआ का ग्रन्थ 8:4-7,11-13
4) उन्होंने मेरी अनुमति लिये बिना राजाओं का अभिशेक किया। उन्होंने मुझ से पारामर्श किये बिना नेताओं को नियुक्त किया। उन्होंने अपने सोने और चांदी से अपने लिए ऐसी देवमूर्तियाँ बनायीं, जो उनके विनाश का कारण बन जायेंगी।
5) समरिया! तुम्हारी बछडे की देवमूर्ति वीभत्स है। मेरा क्रोध उन लोगों को भडक उठा है। वे बहुत समय तक अपने को निर्दोष प्रमाणित नहीं कर सकेंगे;
6) क्योंकि वह देवमूर्ति इस्राएल से आयी, किसी कारीगर ने उसे बनाया है और वह कोई देवता है ही नहीं। समारिया का वह बछड़ा टुकडे-टुकडे कर दिया जायेगा।
7) इस्राएल पवन बोता है, किन्तु वह आँधी लुनेगा। वह उस डण्ठल के सदृश है, जिस में बाल नहीं लगती और गेहूँ पैदा नहीं होता। यदि उस में गेहूँ पैदा भी होता, तो विदेशी उसे खा जाते।
11) एफ्राईम ने अपनी वेदियों की संख्या बढायी, किन्तु वे उसके लिए पाप का कारण बन गयी।
12) मैंने उसे बहुत-से नियम लिख कर दिये हैं, किन्तु उसने उन्हें किसी अपरिचित के नियम माना है।
13) वे अपनी ही इच्छा के अनुसार बलि चढाते हैं और बलिपशु का मांस खाते हैं, किन्तु प्रभु उन्हें स्वीकार नहीं करता। वह अनके अपराध याद करता है और उन्हें पापों का दण्ड देता है। वे फिर मिस्र देश जायेंगे।
सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 9:32-38
32) वे बाहर निकल ही रहे थे कि कुछ लोग एक गॅूगे अपदूत ग्रस्त मनुष्य को ईसा के पास ले आये।
33) ईसा ने अपदूत को निकला और वह गूँगा बोलने लगा। लोग अचम्भे में पड़ कर बोल उठे, ’’इस्राएल में ऐसा चमत्कार कभी नहीं देखा गया है’’।
34) परन्तु फ़रीसी कहते थे, ’’यह नरकदूतों के नायक की सहायता से अपदूतों को निकलता है’’।
35) ईसा सभागृहों में शिक्षा देते, राज्य के सुसमाचार का प्रचार करते, हर तरह की बीमारी और दुबर्लता दूर करते हुए, सब नगरों और गाँवों में घूमते थे।
36) लोगों को देखकर ईसा को उन पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थके माँदे पड़े हुए थे।
37) उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, ’’फसल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं।
38) इसलिए फ़सल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फ़सल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे।’’