पहला पाठ : होशेआ का ग्रन्थ 11:1-4,8c-9,12

1) इस्राएल जब बालक था, तो मैं उसे प्यार करता था और मैंने मिस्र देश से अपने पुत्र को बुलाया।

2) मैं उन लोगों को जितना अधिक बुलाता था, वे मुझ से उतना ही अधिक दूर होते जाते थे। वे बाल-देवताओं को बलि चढाते और अपनी मूर्तियों के सामने धूप जलाते थे।

3) मैंने एफ्राईम को चलना सिखाया। मैं उन्हें गोद में उठाय करता था, किन्तु वे नहीं समझे कि मैं उनकी देखरेख करता था।

4) मैं उन्हें दया तथा प्रेम की बागडोर से टहलाता था। जिस तरह कोई बच्चे को उठा कर गले लगाता है, उसी तरह मैं भी उनके साथ व्यवहार करता था। मैं झुक कर उन्हें भोजन दिया करता था।

8) मेरा हृदय यह नहीं मानता, मुझ में दया उमड आती है।

9) मैं अपना क्रोध भडकने नहीं दूँगा, मैं फिर एफ्राईम का विनाश नहीं करूँगा, क्योंकि मैं मनुय नहीं, ईश्वर हूँ। मैं तुम्हारे बीच परमपावन प्रभु हूँ- मुझे विनाश करने से घृणा है।

सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 10:7-15

7) राह चलते यह उपदेश दिया करो- स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।

8) रोगियों को चंगा करो, मुरदों को जिलाआ, कोढि़यों को शुद्ध करो, नरकदूतों को निकालो। तुम्हें मुफ़्त में मिला है, मुफ़्त में दे दो।

9) अपने फेंटे में सोना, चाँदी या पैसा नहीं रखो।

10) रास्ते के लिए न झोली, न दो कुरते, न जूते, न लाठी ले जाओ; क्योंकि मज़दूर को भोजन का अधिकार है।

11) ’’किसी नगर या गाँव में पहुँचने पर एक सम्मानित व्यक्ति का पता लगा लो और नगर से विदा होने तक उसी के यहाँ ठहरो।

12) उस घर में प्रवेश करते समय उसे शांति की आशिष दो।

13) यदि वह घर योग्य होगा, तो तुम्हारी शान्ति उस पर उतरेगी। यदि वह घर योग्य नहीं होगा, तो तुम्हारी शान्ति तुम्हारे पास लौट आयेगी।

14) यदि कोई तुम्हारा स्वागत न करे और तुम्हारी बातें न सुने तो उस घर या उस नगर से निकलने पर अपने पैरों की धूल झाड़ दो।

15) मैं तुम से यह कहता हूँ- न्याय के दिन उस नगर की दशा की अपेक्षा सोदोम और गोमोरा की दशा कहीं अधिक सहनीय होगी।